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NASAR
ना कोई दबाव ना किसी पर्दे की ओट में लिखता हूँ, "मैं जो भी लिखता हूँ , डंके की चोट पर लिखता हूँ" ना कोई 'दबाव' ना किसी पर्दे की ओट में लिखता हूँ, "मैं जो भी लिखता हूँ , डंके की चोट पर लिखता हूँ" -NASAR __________
vibrant.writer
चुनाव और विरोधी (Micro Tale) #चुनाव और #विरोधी #microtale चुनाव के समय में वो, विरोधी पार्टी की भाषा बोलता था, डंके की चोट पर वह हमें झूठा कहे, तब हमसे सहन नहीं होता
Vibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ मै उस दधीच की हड्डी का एक गौरवशाली अंश हूँ हां मै भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का वंश हूं.... 💪कोई माई का लाल है जो माफी मंगवा ले मुझसे😡💪 #हां_मैं_ब्राह्मण_हूं... सर्वप्रथम मैं एक भारतीय हूँ और ब्राह्मण मेरा कुल है और मुझे अपने भारतीय होने एवं ब्राह्मण होने पर अभिमान है... और मैं गर्व से डंके की चोट पर कहता हूँ की मैं भारतवर्ष के ब्राह्मणं कुल का वंशज हूँ, था और हमेशा रहूँगा....और मेरे सनातन धर्म के प्रत्येक व्यक्ति से मुझे परस्पर उसी प्रकार लगाव है जिस प्रकार मैं अपने भाई बंधू से करता हूँ.... परन्तु यदि कोई मेरे कुल के प्रति कोई द्वेष भाव रखता है तो मैं उसका निसन्देह विरोध करूँगा.... 💪💪💪 🙏🚩जय दादा परशुराम🚩🙏 मैं जन्म से ब्राह्मण हूँ और मरते समय तक सुद्ध शाकाहारी ब्राह्मण ही मरूँगा, कर्म से पंडित ना भी बन पाऊँ लेकिन जाती से गर्व से कहूंगा कि हां हां मैं एक ब्राह्मण हूँ।। #हां_मैं_ब्राह्मण_हूं ✍️Vibhor vashishtha Vs Meri Diary #Vs❤❤ मै उस दधीच की हड्डी का एक गौरवशाली अंश हूँ हां मै भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का वंश हूं.... 💪कोई माई का लाल ह
Sonam kuril
गरजते बादलों से पूछती हैं जिज्ञासा मेरी, बेटियां गरजती,अच्छी,लगती क्यों नहीं, चुप रही हर चोट, हर प्रहार पर, वेदनाइये,उसकी व्यथा, क्यों किसी को चुभती नहीं, गरजते बादलों से पूछती हैं जिज्ञासा मेरी, बेटियां गरजती,........ रुपरेखा, मापदंड, सीमाएं, मर्यादाएं, क्यों स्त्रियों पर ही थोपी गयी, लूट ली जब आबरू एक बेटी की, चुप रही, ना लड़ सकी, ना बेटा, ना बाप, कौन संभाले, कौन बचाएं, कौन थामेगा हाँथ, डरकर ज़माने की कुरीत से, चाहकर भी माँ चुप रह गयी, पूछती हैं जिज्ञासा..., बेटियां गरजती,...., चाहता था एक बाप बेटी बन जाये अफसर, सीख दी अगर हो गलत चुप रहना नहीं, बोलना डंके की चोट पर, रोकेगा जमाना अगर सच के साथ जाएगी, तिरस्कारेंगे, धिकारेंगे भी तुझे, जो अगर तू कुरीतियों से लड़कर, समाज के बेढंग ढांचे के विरुद्ध जाएगी, पर दहाड़ना तू शेरनी सी, चाहे कितनी भी हो रास्तों में अटकले, तू बन पहाड़ बादलों से लड़ना,और गर्जना..| पर....... पर खामोश हो गयी वो दहाड़, फँस कर इस ज़माने की कुरीतियों के शोर में , पुछती हैं जिज्ञासा मेरी......, बेटियां गरजती,....... ©Sonam kuril गरजते बादलों से पूछती हैं जिज्ञासा मेरी, बेटियां गरजती,अच्छी,लगती क्यों नहीं, चुप रही हर चोट, हर प्रहार पर, वेदनाइये,उसकी व्यथा, क्यों किसी
Sachin Ratnaparkhe
एक कविता दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगे के खिलाफ नफ़रती आग का तुम मजा लीजिए अपनी आंखो में आंसू सजा लीजिए, लाशे बिछती रही और तुम सोते रहे, मुफ्त में बंट रही वो क़ज़ा लीजिए। उनसे तुम्हारी लाचारी देखी न गई, तुमसे तुम्हारी तरफदारी पूछी न गई, तुम यह वाले हो या फिर वो वाले हो, मौत देने से पूर्व जानकारी की न गई। जो सामने आया उनके वो मरते चले, इक कौम का सफ़ाया वो करते चले, तुम सोते रहो तुमको फर्क क्या, वो मारते चले ओ तुम मरते चले। उनको कभी नहीं था तुमसे कोई वास्ता, तुमने खुद ही चुना था पतन का रास्ता, तुम संपोलो को दूध पिलाते रहे मगर, मौका पाते ही पार कर दी पराकाष्ठा। तुम उनकी नज़रों में काफ़िर ही हो, तुम अलग रास्तों के मुसाफिर ही हो, वो चलते है जब ऐसे चलते है वो, जैसे लेकर तुम्हारी मौत हाज़िर हो। यह कविता व्यंगतामक है जो कुंभकरण की नींद सोते हुए एवम् अपनी दुनिया में खोए हुए हिन्दुओं के प्रति कटाक्ष करती है जिन्हे अपनी अस्तित्व की कोई