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अपर्णा विजय
ऑनलाइन क्लास की व्यथा तुमको रहे बताएं स्क्रीन पर बैठी बैठी टीचर स्वर व्यंजन सिखलाए इधर क्लास का समय हुआ बिटिया को रहे उठाएं अल्टी पलटी होती है पर उसकी आंख नहीं खुल पाए जैसे तैसे उठ कर बैठी , पर बाल रहे बिखराए ठंडी थी तो बच गए हम भी टोपा दिया लगाए हमने भी कर ऑन केमरा लेपटॉप दिया चलाए ड्रेस पहन कर बैठी बिटिया टीचर रही बुलाए सास बजाती घंटी टनटन ,सुर छुटकू रहा मिलाए झाड़ पोंछती बाई भी देखो ,स्क्रीन पर नाच दिखाएं आंख मींचकर बच्चे बैठै समझ कछु ना आए इंग्लिश का ई हिंदी का ह सब ऊपर से ही जाए जोड़ घटाना गणित का देखो सबके होश उड़ाए टीचर की हालत भी पतली कैसे सब सिखलाए भूख लगी थी पेट था खाली कैसे कलम चलाएं बंद कैमरा करके बच्चे, नाश्ता रहे चबाएं कीमत इस पढ़ाई की सबकी आंखें रही चुकाए बोझ नहीं कांधे पर लेकिन ,नंबर चश्मे का बढ़ जाए ऑनलाइन क्लास की व्यथा तुमको रहे बताएं स्क्रीन पर बैठी बैठी टीचर स्वर व्यंजन सिखलाए ©अपर्णा विजय #online education #Teachersday
#online education #Teachersday #कविता
read moreJyotshna Rani Sahoo
UNPREPARED I had an unprepared dream That's why couldn't full fill in time Life has given me another chance With new opportunities for my dream to enhance I learnt from my last mistake This time I will not let my dream to brake. #unprepared #yqbaba
Satya Priy Dwivedi
पर फर्क इतना पड़ा है कि अब अध्यापक अध्यापन कम और राजनीति ज़्यादा करते है, नैतिकता को चढ़ा सूली पर चढ़ा छात्रों की बेबसी पर हसते है। खुद को संघर्षो का मसीहा बताते है, पर छात्रों के लिए संघर्ष से मुखरते है।। ये सच है, ये भारद्वाज की डगरी है, साहब ये छात्रों और अध्यापको की नगरी है। महान ऋषियों के तपो की भूमि है, इस मिट्टी पर शहीदों ने शहादत चूमि है।। अध्यापक एक शब्द नही व्यवसाय नही है किंचित भी, देख पतन समाज का क्या है ज़रा सा आप चिंतित भी? एक गुरु ही तो देश के भविष्य का निर्माता कहाता है, अपने ज्ञान के सूक्ष्म गुणो से देश को युगों युगों का ऋणी कर जाता है।। ये सरस्वती की नगरी आप अध्यापको से ही थी, ये विद्वानों की भूमि उसी ऋषि परंपरा से ही थी। आन है आपको अपने फ़र्ज़ की फर्जी में फ़ज़ीहत न करवाना आप, यदि कलंकित ही करना है प्रयाग, तो भूमि छोड़ जाना आप।। झूठे आदर्शो की बुनियादों पर सपनो के महल बनाते है, खुद हो चुके है भ्रष्ट और ईमानदारी का पाठ पढ़ाते है। लालच की गंदी बिसात पर भविष्य फांसा करते है, टिक-टिकिया पर निगाह गड़ाए ये आया-जाया करते है।। जो मर्यादा की मर्यादा में रहना सिखलाते है, और आशीष से राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते है। मर्यादित बोल, मर्यादित भाव और राष्ट्र भाव अब कौन जगायेगा? क्या शिक्षक धर्म सीखाने फिरसे कोई शांतिदूत कुरुक्षेत्र में आएगा? non-quality education and teachers
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