Find the Latest Status about जर्मन शेपूट from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, जर्मन शेपूट.
i am Voiceofdehati
आज से कुछ वर्ष पहले ,फ्रांस ,जर्मन और स्वीडन ने.. इराक और सीरिया से आए शांतिप्रियों को अपने यहां शरण दी थी आज वही शरणार्थी पूरे जर्मन ,फ्रांस और स्वीडन को जला रहे है। हमारे देश में इसे गंगा जमुनी तहजीब कहते है। आज से कुछ वर्ष पहले ,फ्रांस ,जर्मन और स्वीडन ने.. इराक और सीरिया से आए #शांतिप्रियों को अपने यहां शरण दी थी आज वही #शरणार्थी पूरे जर्मन ,फ्र
Ravi Shankar Kumar Akela
देशभक्ति, किसी देश, राष्ट्र या राजनीतिक समुदाय के प्रति लगाव और प्रतिबद्धता की भावना । देशभक्ति (देश के प्रति प्रेम) और राष्ट्रवाद (किसी के राष्ट्र के प्रति वफादारी) को अक्सर पर्यायवाची माना जाता है, फिर भी देशभक्ति की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी में राष्ट्रवाद के उदय से लगभग 2,000 साल पहले हुई थी। फ्रेंको-जर्मन युद्ध ©Ravi Shankar Kumar Akela #Yaari देशभक्ति, किसी देश, राष्ट्र या राजनीतिक समुदाय के प्रति लगाव और प्रतिबद्धता की भावना । देशभक्ति (देश के प्रति प्रेम) और राष्ट्रवाद (क
SANGHARSH KE MOTI
सुभाष चंद्र बोस आओ मिलकर याद करे , जन जन ह्रदय विजेता को , उस 'सुभाष' बलिदानी को, नेताओं के नेता को , था ,अलग ही "बोस" का ओरा , माने लोहा दुश्मन, भी गोरा , घुमा रूस ,जर्मन , जापान , स्वतंत्र हो भारत , यही ध्येय प्रधान , 'फॉरवर्ड ब्लॉग' का गठन किया , हिन्द फौज का संचलन किया , कहां ! खून के बदले आज़ादी दुंगा , कीमत लेष ना मेँ कम लुंगा , हैं ! रोष लहू में तो आजाओं , खाकर कसम ये दिखलाओं , अब दिल्ली सिंहासन दूर नहीं , सुनते ही लहू की नदी बही, तन- मन समर्पण भारत को किया , जब तक जिया देश हित जिया , है , अमर 'सुभाष' सदा क्रांतिकारी विचारों में , समय-समय पर आती है ,विभूतियाँ अलग अलग किरदारों में ©SANGHARSH KE MOTI आओ मिलकर याद करे , जन जन ह्रदय विजेता को , उस 'सुभाष' बलिदानी को, नेताओं के नेता को , था ,अलग ही "बोस" का ओरा , माने लोहा दुश्मन, भी गोरा ,
Manjeet Singh Thakral
अखबार का हॉकर सड़क पर चिल्ला रहा था कि सरकार ने जनता का विश्वास खो दिया है अब कड़े परिश्रम, अनुशासन और दूरदर्शिता के अलावा कोई रास्ता नही बचा
_Ankahe_Alfaaz__
दुनिया में उजाला फेहलाना , क्या इतना आसान है ऐ दोस्त , तो अक्सर उस गरीब के झोपड़े में अँधेरा और उस अमीर के बंगले में रोशनी क्यों होती है जो अपनी तनख्वा दारु में उड़ा देता है , उन लोगो तक ये रोशनी क्यों नहीं पहुँच पाती जो उस रोशनी से अपने जीवन को रोशन करना चाहते है । विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा।
Vibha Katare
काली अंधेरी रात का सफर, शहर से दूर वियाबान जंगल के बीच से जाती सड़क, तेज आंधी और तूफान, अचानक बिगड़ गई मेरी कार, अब, मैं , मेरी कार, तेज बारिश , घना जंगल और ऊदबिलावों की आवाज़.. कुछ कदम जब मैं चली, आगे एक पुरानी हवेली दिखी.. हवेली से किसी के कदमों की आवाज़ आना, कम्बल में खुद को लपेटे उस परछाईं का मेरी तरफ आना, फिर अपने काँपते बूढ़े हाथों से लालटेन जलाना.. उफ़ !! ये ख़ौफ़नाक कल्पनाएँ.. अब मेरे कमरे की खिड़की से सटी अधबनी इमारत में भूत दिखना ही बाकी है मुझे। विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा।
S. Bhaskar
बस बंद कर अब मन्द जन को स्वाभिमान सीखाना, बंद कर अब अंधेरे रास्तों में लालटेन जलाना। यहां लोगों में दासता का ही राग विद्यमान है, यहां दिखता चाटुकारिता का ही प्रमाण है, जो मिट्टी को सोना व राख को भी बनाते महान है, ये तो बिना तरकश के बिकते हुए कमान है, छोड़ दे अब इनकी तू अस्मत को बचाना, बस बंद कर अंधेरे को लालटेन जलाना। इन जड़ बुद्धि ने खुद को गुलामी में जकड़ रखा है, यहां बस मूक मुखड़ा और लंबी जबान कर रखा है, ये ना सुधरेंगे हमने इनको करीब से परखा है, गुलामी की जंजीरें इनके प्रिय मित्र और सखा है, बस छोड़ दे ये नहीं चाहते सही रास्ते पर आना, बंद कर अंधेरे रास्तों में लालटेन जलाना। तू खुद अपनी नजरों में गिरता चला जाएगा, पर इनमें कोई खास अंतर ना ला पाएगा, चंद पल तो सुधरेंगे फिर वही कहानी तू दोहराएगा, तेरे अकेले से कभी बदलाव सामने नहीं आएगा, तू बस बंद कर इन मूक लोगों को अमूक बनाना, बस बंद कर लोगों के खातिर अंधेरे में लालटेन जलाना। विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा।
Swatantra Yadav
आज फिक्र जिक्र से आजाद कर दिया उसे और वो नासमझ खुद को परिंदा समझ रहा है जिसकी रूह ने तासीर न पढ़ी जिंदगी की कभी वो खुद को जिंदा समझ रहा है,परिंदा समझ रहा है दो हाथियों का लड़ना सिर्फ़ दो हाथियों के समुदाय से संबंध नहीं रखता दो हाथियों की लड़ाई में सबसे ज़्यादा कुचली जाती है घास, जिसका हाथियों के
स्वतन्त्र यादव
आज फिक्र जिक्र से आजाद कर दिया उसे और वो नासमझ खुद को परिंदा समझ रहा है जिसकी रूह ने तासीर न पढ़ी जिंदगी की कभी वो खुद को जिंदा समझ रहा है,परिंदा समझ रहा है दो हाथियों का लड़ना सिर्फ़ दो हाथियों के समुदाय से संबंध नहीं रखता दो हाथियों की लड़ाई में सबसे ज़्यादा कुचली जाती है घास, जिसका हाथियों के