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रघुराम
ऐसे कई लोग हैं जो शरीफ मान लेते हैं अपने को। पर अपने भावों से नाको तिल्ला कर डालते हैं यारो को।। गली गली घूमा करते,तन पर ,रख वस्त्र झीना। फब्तियों का शिकार बना लेते वो स्वयं अपने आप को।। फब्तियों के चोट से जब दिल ए दर्द होता उनको। झल्ला कर नाराजगी झटकते यारो को।। यारा,तुमने यह क्या कह डाला,ना कहते तो क्या हो जाते। पर उनके शेख चिल्ली यारा,रहते हरदम शेखी बघारने को।। यारो,ईसलिय देव यह कहता है,रहो हरदम शालीन और सभ्य खेल कूद और मस्ती से कभी ना करो वूमिल अपने छवि को।। ©Deoprakash Arya #AprilFool सभ्य बनो।
#AprilFool सभ्य बनो।
read moreपूर्वार्थ
वाह रे सभ्य समाज समय पुराना था तन ढँकने को कपड़े न थे, फिर भी लोग तन ढँकने का,प्रयास करते थे । आज कपड़ों के भंडार हैं,फिर भी तन दिखाने का प्रयास करते हैं,समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था, आवागमन,के साधन कम थे। फिर भी लोग परिजनों से,मिला करते थे। आज आवागमन के,साधनों की भरमार है। फिर भी लोग न मिलने के,बहाने बनाते हैं । समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था,घर की बेटी, पूरे गाँव की बेटी होती थी। आज की बेटी ही पड़ोसी से ही असुरक्षित हैं । समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था, लोग, नगर-मोहल्ले के बुजुर्गों का,हालचाल पूछते थे । आज माँ-बाप तक को,वृद्धाश्रम में डाल देते हैं । समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था,खिलौनों की कमी थी । फिर भी मोहल्ले भर के बच्चों के,साथ खेला करते थे । आज खिलौनों की भरमार है,,पर बच्चे मोबाइल की जकड़ में बंद हैं । समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था,गली-मोहल्ले के पशुओं तक को रोटी दी जाती थी ।, आज पड़ोसी के बच्चे भी,भूखे सो जाते हैं । समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था,नगर-मोहल्ले मे आए अपरिचित का भी पूरा,परिचय पूछ लेते थे । आज तो पड़ोसी के घर,आए अतिथि का नाम भी,नहीं पूछते । समाज सभ्य जो हो गया हैं । वाह रे सभ्य समाज ©पूर्वार्थ # वाह रे सभ्य समाज
# वाह रे सभ्य समाज #Poetry
read morePraveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी वासनाओ का खुला बाजार अंग अंग का आकर्षण गर्माता है सभ्य समाज देख देख शर्माता है बन्धनों में कोई नही बंधता रिलेशन लिव में,चरित्रों को गवाता है पल दो पल का सुख है सब जीवन मे अपनेपन का सुख नही पाता है जीवन साथी जीवन भर के लिये भारतीय परम्पराओ को ठुकराता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" सभ्य समाज देख देख शर्माता है
सभ्य समाज देख देख शर्माता है #कविता
read moreLiinnse
We think "love" is to give, share, a feeling But *Love* in the purest form is a #SacrificE.# ©Liinnse meaning
meaning #Thoughts #sacrifice
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