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Sircastic Saurabh
Divya Joshi
कुछ ख्वाब बस ख्वाब ही रह जाते हैं। समय कितना परिवर्तित कर देता है सब कुछ। इस वक़्त ने मुझसे मेरी स्वतंत्र अभिव्यक्ति छीनी है। उन्मुक्तताएँ लील गया ये। इस वक़्त ने हँसी छीनी है। इसने आत्मविश्वास छीना है। बुद्धिमत्ता से लेकर स्मरण शक्ति जो मेरी सबसे बड़ी विशेषता थी, वो भी छीन ली। इसने जो रिक्तियां भरी हैं, कभी मिट नहीं पाएंगी। मैं जो लिखना चाहती थी वे शब्द, वे भाव इसने छीने और भर दी गहरी नीरसता, उदासी और अनिश्चितताएं। पर हाँ! इतनी नकारात्मकताओं के बावजूद इस वक्त ने मुझमें जो साहस पैदा किया उसके लिए इसकी आभारी हूँ। समर्पण का भाव मुझमें शुरू से रहा, लेकिन इस वक़्त ने मुझमें बसे उस समर्पण भाव को दुगुना किया। इसने रिश्तों की अहमियत बताई और अपने पराए का बोध कराया। इसी वक्त ने बताया कि मैं उतनी कमज़ोर नहीं हूँ, जितना मैं खुद को समझती हूँ। बल्कि हर आँसूं को पोंछ कर चट्टान की तरह हर मुसीबत के सामने खड़े रह जाने की काबिलियत भी है मुझमें। ये वक्त ही है जिसने मुझे बताया कि जितना...... नीचे कैप्शन में पढ़ें... ©Divya Joshi #Time मनकही: एहसान वक्त के कुछ ख्वाब बस ख्वाब ही रह जाते हैं। समय कितना परिवर्तित कर देता है सब कुछ। इस वक़्त ने मुझसे मेरी स्वतंत्र अभिव्य
Rahul Joshi
Mehfil-e-Mohabbat
रौशनी भी है और हवा भी है इसका मतलब कहीं खुदा भी है ©Mehfil-e-Mohabbat ✍️♥️ नवीन जोशी ♥️✍️
अनिता कुमावत
इस "आदर्शवाद" को किताबों में ही रहने दो जीवन जीने में "व्यावहारिकता " जरुरी है ना ...!!!! आज "हिमांशु जोशी जी " का "छाया मत छूना मन " पढ़ा और कुछ ख्याल 😊 साथ ही कुछ सवाल आदर्शवाद से क्या मिलता है आखिर ???
Vandana
एक अनोखी चीज हाथ लगी है। देखो तो बहुत खास लगी है । पढ़ोगे तो चकरा जाओगे, कैसे कैसे बातें भूल जाओगे, "आदमी की सोच उसे कहां ले जाती है। विचारों को वह कैसे सजाती है। एक नवयुवती छज्जे पर बैठी है, केश खुले हुए हैं और चेहरे को देखकर लगता है कि वह उदास है। उसकी मुख मुद्रा देखकर लग रहा है कि जैसे वह छत से कूदक
Vaseem Akhthar
ईद तो आई है लेकिन, अब वो बात ही ना रही देख मातम हर तरफ, मनाने की ख्वाहिश ही ना रही इक तरफ़ वबा तो दूजी तरफ़ ज़ालिमों का कहर देख इंसानियत की हालत, झेलने की ताक़त ही ना रही गले लगना तो दूर, मुसाफः से भी डर रहा इंसान भाइयों में गर्म-जोशी की, अब वो हालत ही ना रही ज़ुल्म इंतिहा को है, हाथ धरे है आलम-ए-इस्लाम गीदड़ को भी ललकार ने की, वो जुर्रत ही ना रही खुदावंद दूर कर, इन सियाह घटाओं को 🤲 अब और बर्दाश्त करने की, वो हिम्मत ही ना रही कहर=मुसीबत। मुसाफः हाथ मिलाना। गर्म-जोशी=जोश और मुहब्बत के साथ मिलना عید تو آئی ہے لکین، اب وہ بات ہی نا رہی دیکھ ماتم ہر طرف، منانے کی خو