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यशवंत कुमार
अमावस के अंधेरे में। Read in caption... My second Last poetry before leaving. अमावस के अंधेरे में। एक दीप जला अमावस के अंधेरे में। नीरवता निशा की भंग हुई। आंखें खुली बंद जगत की। काली चादर फिर से नवरंग हुई। छट गए दुखों
यशवंत कुमार
नहीं आ सकती तो मत आओ, नहीं आ सकती तो मत आओ, अपनी मुस्कुराहट ही भेज दो। एक बार करा दे तेरा आभास मुझे, बस अपनी इतनी-सी आहट ही भेज दो।। ......... 🌹नहीं आ सकती तो मत आओ,🌹 नहीं आ सकती तो मत आओ, अपनी मुस्कुराहट ही भेज दो। एक बार करा दे तेरा आभास मुझे, बस अपनी इतनी-सी आहट ही भेज दो।। बह
kavi manish mann
फल, फूल, शीतल छांँव, आजीवन भेंट करता रहा। हरियाली को तरसता सूखा दरख़्त, असहाय खड़ा मौन, स्तब्ध सोचता रहा। कई बरस हो गए यूंँ ही खड़ा रहा, कई रोग, अनेकों तूफ़ानों को खेलता रहा। अफ़सोस दरख़्त अब बूढ़ा हो चला, लेकिन अब भी हर शख्स पत्थर फेंकता रहा। पानी की एक बूंँद भी न दे सका, जिससे ताउम्र लालची लाभ लेता रहा। स्वार्थपूर्ति कर मनुष्य भूल जाता है, "मन" ताउम्र सोच इसी आग में जलता रहा। शीर्षक~ सूखा दरख़्त फल, फूल, शीतल छांँव, आजीवन वितरित करता रहा। हरियाली को तरसता सूखा दरख़्त, असहाय खड़ा मौन, स्तब्ध सोचता रहा। कई बरस हो ग
आदित्य शेखर त्रिपाठी (जज़्बाती_कलम)
क्यों खोए खोए से लगते हो मुरझाए से क्यों हार गए क्यों आशायें तुम छोड़ रहे क्यों विचलित हो विपदा तो आनी जानी है ये जीवन है इसकी यही करुण कहानी है। धरो धैर्य तुम केशव सा अर्जुन से मन को शांत करो तुम विपदा के घर पे हल्ला बोलो कुछ चोट करो कुछ वार करो तुम मत छोड़ो दामन साहस का इस आंधी का प्रतिकार करो ये सारी सृष्टि तुम्हारी है आगे बढ़कर अधिकार करो। क्यों खोए खोए से लगते हो मुरझाए से क्यों हार गए क्यों आशायें तुम छोड़ रहे क्यों विचलित हो विपदा तो आनी जानी है ये जीवन है इसकी यही करुण कहा
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
मैं सूखा दरख़्त कभी हरा-भरा था, फूलों और फलों से मैं भरा-भरा था, मुझ पर भी खग कलरव करते थे, मेरी छाया में सभी आराम करते थे। अब बिल्कुल सूखा दरख़्त हो गया, मुझे तो अब कुछ भी सूझता नहीं, मेरे अपने जिसे हमनें जन्म दिया, कोई भी अब मुझको पूछता नहीं। भरा पूरा मेरा हंसता खेलता परिवार, पर मैं इनके बीच तन्हा ही रहता हूँ, खुशियो से परिपूर्ण सभी हरे भरे हैं, पर मैं हरियाली को तरसता रहता हूँ। जब तक मैं सब कुछ देने में सक्षम था, सब पास में रहकर करते थे मुझे प्यार, चौथेपन में किसी काम का रहा नहीं, क्यों बदल गया अपनों का व्यवहार। "स्नेहिल सुप्रभात सभी को...💐❤️💐" आप सभी के शुभ दिवस की शुभ कामना 🌺🙏 "दोस्तों, इस दुनिया में किसी का भी जीवन परिपूर्ण नहीं है । हर किसी की कु
Vibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ शून्य सी छवि के ठहरे, पर हमने भी सभाले असरार अनगिनत हैं.... बड़ा बोझिल सा है ह्रदय अब मेरा, ह्रदय पर भार अनगिनत हैं..... वो तमा कोशिशें हैं सुलझाने की, पर उलझे वो तार अनगिनत हैं..... कुछ एक दो ही हैं मुझे समझने वाले, कहने को तो मेरे भी यार अनगिनत है...... ना किनारा नज़र में, ना कश्ती सफर में,पर हाँ पतवार अनगिनत हैं.... जब ज्यादा डूब जाते हैं तेरे गम में, वो मेरी छटपटाहट, बेचैनी के, किरदार अनगिनत हैं.... जमींदोज होते हुए भी खुद से खुद को संभालने के मेरे किस्से, ऐ यार अनगिनत हैं..... कहीं पर दृष्टि एक है मेरी, तो फिर कहीं मेरे इजहार अनगिनत हैं..... बरसों से है सब्र में ठहरे फिर भी इंतजार, अनगिनत हैं..... हमें आशायें मौत से थी.... और हमारे अपनों को हमसे आशायें हज़ार ,अनगिनत हैं.... बड़ा बोझिल सा है ह्रदय अब मेरा, ह्रदय पर भार अनगिनत हैं..... वो तमा कोशिशें हैं सुलझाने की, पर उलझे वो तार अनगिनत हैं..... ✍️Vibhor Vashishstha Vs Meri Diary #Vs❤❤ शून्य सी छवि के ठहरे, पर हमने भी सभाले असरार अनगिनत हैं.... बड़ा बोझिल सा है ह्रदय अब मेरा, ह्रदय पर भार अनगिनत हैं..... वो
Vibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ हैं ये सब माटी के प्रसंग, सब माटि में एक दिन मिल जायेंगे...... कण कण से जो बनकर थे उभरे, कण कण में ही घुल जाएंगे...... फिर एक उदय होगा नव जीवन, फिर से आँख खोल मुस्कायेंगे..... फिर नयी आशायें जगेंगी मन में, और फिर स्वप्न पंख फैलाएँगे..... हैं ये सब माटी के प्रसंग, सब माटि में एक दिन मिल जायेंगे...... माटि में एक दिन मिल जायेंगे...... 🙏🌺🙏हर हर महादेव शिव शंभु🙏🌺🙏 ✍️Vibhor vashishtha vs Meri Diary #Vs❤❤ हैं ये सब माटी के प्रसंग, सब माटि में एक दिन मिल जायेंगे...... कण कण से जो बनकर थे उभरे, कण कण में ही घुल जाएंगे...... फिर
Parul Sharma
मोक्ष एक सोपानवत प्रक्रिया है जो मौन के किसी चरण से शुरू होती है, मौन तीन तरह का होता है शारिरिक मौन--- इसमें जीवन पूरा होने पर शरीर ही समाप्त, बाहृय या आंतरिक अवस्था से कोई सरोकार नहीं,इसमें संभावनायें व्यवहार के अनुसार अधपकी रह जाती है मानसिक मौन--इसमें मस्तिष्क मौन धारण कर लेता है और प्रतिउत्तर की प्रतिक्रिया हेतु प्रतिक्षक बना रहता है जबतक कि मनमुताबिक परिस्थिती ना बने या बनायी जाये हृदयिक मौन---यह मौन का अंतिम पड़ाव है आशायें अपेक्षाओं की द्योतक नहीं रहती तो यहाँ ना उत्तर है ना प्रतिउत्तर, ना क्रिया है ना प्रतिक्रिया ना आदी ना अंत ना कोई लेनदेन सब कुछ शून्य है यहाँ कोई निकासद्वार नहीं ये मृत्यु नहीं ये मोक्ष की पहली अवस्था है यहाँ से ज्ञान का संज्ञान शुरू होता है। जो अंन्त तक जाने के लिये है क्योंकि विकास कभी उत्क्रमित नहीं होता एकदिशिय होता ©Parul Sharma #Travel मोक्ष एक सोपानवत प्रक्रिया है जो मौन के किसी चरण से शुरू होती है, मौन तीन तरह का होता है शारिरिक मौन--- इसमें जीवन पूरा होने पर