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हिमांशु Kulshreshtha
White यह मत पूछ एहसास की शिद्दत क्या थी, धूप ऐसी थी कि साये को भी जलते देखा। ©हिमांशु Kulshreshtha बस यूँ ही..
बस यूँ ही..
read moreAkash gautam s n
दुनिया तो कह रही हैं कि वो भूूल गया है उम्मीद कह रही है तू इंतजार कर ©Akash gautam s n #Travelstories इंतजार कर बस
#Travelstories इंतजार कर बस
read morevish
खयालों में बस नही है मेरा बस तुम्हारे खयालों में खोई रहती हूँ जानती हूँ अब तुम्हारे पास वक़्त नहीं है फिर भी उस वक़्त को ढूंढती हूँ क्या ये शिकायत मुझे ही है या सभी को इसका जवाब ढूँढतीं हूँ ये जो वक़्त का फ़ासला आया है हमारे बीच मैं उसकी ख़ता ढुँढती हूँ कामयाबी आपको हर लम्हा मिले ये दुआ करतीं हूँ बस आपके कुछ लम्हों में खुद को ढूँढती हूँ प्यार में जो सज़ा मिली है हमे मैं उस गुनाह को ढूँढती हूँ जिंद़गी ©vish # खयालों में बस नही मेरा
# खयालों में बस नही मेरा
read moreKiran Chaudhary
मैं कोई एक बहुत अच्छी ज़िन्दगी नहीं चाहती, मैं बस एक ज़िन्दगी चाहती हूँ, शांति वाली।। ©Kiran Chaudhary मैं बस एक ज़िन्दगी चाहती हूं..
मैं बस एक ज़िन्दगी चाहती हूं..
read moreBharadwaj Dilip
a-person-standing-on-a-beach-at-sunset जिंदगी हमारी गफलत में बदल गई। एक ही पल में हमारी मोहब्बत नफरत बदल गई। ब्रेक अप हुआ हमारा मोहब्बत की बस में। और बदकिस्मती तो देखो हमारी मोहतरमा बिना बस का किराया दिए ही निकल गई ©Bharadwaj Dilip #बस का किराया
#बस का किराया
read morePraveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी दीवालें बस कलेंडर बदलती दिन महीना साल गुजर जाते है जीवन एक पहेली की तरह है उलझन में हम सब उलझ जाते है आईने के समाने जब चेहरा लाते झुर्रियों के बल उम्र गवाते है आंकलन अगर करे बीते वर्षों का पाने से ज्यादा गवाते है बहकते रहते इस कालचक्र के हाथों में कठपुतली भर जैसे नाच नचाते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #worldpostday दीवालें बस कलेंडर बदलती
#worldpostday दीवालें बस कलेंडर बदलती
read moreहिमांशु Kulshreshtha
White जब पहली बार जो देखा तुम को धड़कनों में अजब हलचल सी महसूस की मैंने तेरी आँखों में जो देखी एक हसीन दुनियाँ मैंने अपनी दुनियाँ को भुला दिया मैंने ©हिमांशु Kulshreshtha बस यूँ ही.
बस यूँ ही.
read moreShashi Bhushan Mishra
बस इतने में हांफ रहे हो, डर से थर-थर कांप रहे हो, मारे जाओगे एक दिन सब, आस्तीन के सांप रहे हो, रंग बदलने में तुम माहिर, गिरगिट के भी बाप रहे हो, सिर्फ़ सियासत धर्म-कर्म है, फूंक दिया घर ताप रहे हो, पोल खुली तो बिल में दुबके, तुम कब रस्ता नाप रहे हो, पढ़े-लिखे भी बैल बुद्धि ही, लगते झोलाछाप रहे हो, भूंक रहे अपनी गलियों से, कभी तो लल्लन टाप रहे हो, 'गुंजन' घड़ा फूटना तय था, अबतक भरते पाप रहे हो, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra #बस इतने में#
#बस इतने में#
read moreF M POETRY
White दिल धड़कता है बस तुम्हारे लिए.. कितने मक्कार लफज़ थे तेरे.. यूसुफ़ आर खान.... ©F M POETRY #दिल धड़कता है बस....
#दिल धड़कता है बस....
read moreहिमांशु Kulshreshtha
White सच से दूर, फरेब की जिंदगी जी रहे हैं दूरियाँ हैं मीलों की दिलों में फिर भी अपना कह रहे है ©हिमांशु Kulshreshtha बस यूँ ही...
बस यूँ ही...
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