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Anchal Tiwari
ईश्वरः पाषाणे लभ्यते किन्तु मानवः मनुष्ये न लभ्यते। वयं ईश्वरं वदामः यत् भवता निर्मिते जगति भवतः किमपि किमर्थं न प्राप्नुमः।परन्तु किं वयं स्वयमेव तेषां सदृशाः भवितुम् अर्हति। पत्थर में ईश्वर मिल सकता है लेकिन मनुष्य में मनुष्य नहीं मिलता । हम ईश्वर से कहते हैं कि आप की बनाई इस दुनिया मे कोई आप सा क्यों नही मिलता, परंतु क्या हम खुद उनके जैसा बन पाते हैं। हर हर महादेव ❤️ ©Anchal Tiwari ईश्वरः पाषाणे लभ्यते किन्तु मानवः मनुष्ये न लभ्यते। वयं ईश्वरं वदामः यत् भवता निर्मिते जगति भवतः किमपि किमर्थं न प्राप्नुमः।परन्तु किं वयं स
अशेष_शून्य
°_श्रीरुद्राष्टकं_° तुलसीदास कृत "शिव रुद्राष्टकम्" (रुद्र + अष्टक) रुद्र ( शिव) के आठ श्लोकों के समूह में से अष्टम् श्लोक -🌸 ______________🌷ॐ🌷______________ हे कल्याणकारी परमेश्वर ! हे परमपिता ! तुम्हें नमन _____________🌷🙏🌷______________ श्लोक ::- न जानामि योगं जप
Vishw Shanti Sanatan Seva Trust
Divyanshu Pathak
मय्यावेश्य मनो ये मां नित्य युक्त उपासते ! श्रद्धया परयोपेतारस्ते मे युक्तात्मा मताः !! : श्री कृष्ण कहते हैं कि जो श्रद्धायुक्त उपासक मेरे सगुण रूप की उपासना करते हैं वो मुझे अतिउत्तम लगते हैं । गी. अ. 12/02 : जो जीवात्मा अपनी इन्द्रियों को वश में किए मन बुद्धि को स्थिरकर ज्ञानयोग से मेरे निराकार स्वरूप की उपासना करते हैं वो मुझे ही प्राप्त होते है । गी. अ.-12/03-04 : अपने सभी कर्मों को मुझे अर्पितकर मेरे नामरूप का गुणगान करते हैं,उनका कल्याण भी मैं शीघ्र ही करता हूँ । गी. अ.- 12/06-07 एवं सततयुक्त ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ! ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः !! : हे कृष्ण मुझे ये बताओ😊 किस तरह से आपको प्राप्त किया
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हरे कृष्ण हरे हरे ©Vishw Shanti Sanatan Seva Trust हरिनाम कीर्तन महिमा - नाम जपत मंगल दिशा दसहुँ By: Dr. Krishna भगवन्नाम अनंत माधुर्य, ऐश्वर्य और सुख की खान है। नाम और नामी में अभिन्नता होती