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Kunal Kishore Singh

हिन्दू साधुओं का पालघर में हत्या। #पालघर #हिन्दुसाधूस #palghar #Hindu #HinduSadhus #MobLynching #nojotovideo

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Aryan Verma

आज तूफ़ान तुमसे टकराएगा# आज तूफ़ान तुमसे टकराएगा पाल घर में हुई हत्या, को याद दिलाएगा। निहत्थे साधुओं का खिला चेहरा याद तो होगा, अपने भाइ #Religion #Collab #yqdidi #yqhindi #yqquotes #yqshayari #bestyqhindiquotes

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क्या याद है पालघर की कहानी ?








 आज तूफ़ान तुमसे टकराएगा#
आज तूफ़ान तुमसे टकराएगा 
पाल घर में हुई हत्या, 
को याद दिलाएगा।
निहत्थे साधुओं का खिला चेहरा 
याद तो होगा,
अपने भाइ

Piyush Shukla

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आईये हम सब मिलकर भगवान श्री कृष्ण का आह्वाहन करते हैं - लौट आओ कृष्ण फिर से इस धरा पर बिन तुम्हारे प #Krishna #whenIpendown #श्रीकृष्णजन्माष्टमी

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लौट आओ कृष्ण फिर से इस धरा पर
बिन तुम्हारे पाप हमको हैं डराते ।

द्रोपदी के चीर पर संकट बड़े हैं
बिन किसी भी राह के अर्जुन खड़े हैं
गालियाँ देते हुए शिशुपाल कितने
रोज़ ही शासन की गद्दी पर चढ़े हैं

कंस लेता धार चोला साधुओं का
धूर्त के सब जाप हमको हैं डराते ।

खो रही हैं प्रेम की सब सभ्यताएं
अब नही कोई यहाँ बंशी बजाएं
राह तकती राधिका अब तक खड़ी है
गोपियों ने नीर से रच दी प्रथाएं

प्रेम का फिर स्वर सजा दो इस धरा पर
चीखते संताप हमको हैं डराते । श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आईये हम सब मिलकर भगवान श्री कृष्ण का आह्वाहन करते हैं - 

लौट आओ कृष्ण फिर से इस धरा पर
बिन तुम्हारे प

Sonam kuril

दुनिया में भाँति भाँति के मनुष्य है , कुछ भ्रमित है कुछ चकित है , कुछ ज्ञानी कुछ अज्ञानी है , अन्धविश्वास, पाखंड का ऐसा चक्र्व्यूह रचा ह

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दुनिया में भाँति भाँति के मनुष्य है ,
कुछ भ्रमित है कुछ चकित  है ,
कुछ ज्ञानी  कुछ अज्ञानी  है ,
अन्धविश्वास, पाखंड  का ऐसा चक्र्व्यूह रचा है ,
जो तोड़ सके  वही अर्जुन  है ,
मानवता मर सी गयी है ,
इंसानियत सिसकियाँ  ले रही ,
रो रही रूह  धरती  की ,
की सारी सृष्टि को आगोश में अपने ले रही ,
साधुओं का बोल बाला है ,
जोगिया बन औरत का जिस्म लूट रहा ,
राजनीति के दंगल में,
जनता का मरना तय रहा ,
जो देश बचने निकला था ,
वही देश को लूट रहा ,
ये दुनिया जंग  का मैदान हुई ,
अपना ही अपने का घर तोड़ रहा ,
कौन अपना कौन पराया है ,
यहां हर कोई मतलब से बोल रहा ,
जो गरीब थे गरीब ही रह गए ,
ऊँचे तबकों में ऊँचे ही पहुंच गए ,
जिसे न प्यार मिला वो प्यार ढूंढ रहा ,
जिसे मिला उसे कदर नहीं ,
प्यार नहीं जिस्म का व्यापार हुआ ,
जैसे सारा संसार कोठा हुआ ,
कलयुग देखो कैसा मुँह फाड़ रहा ,
अपना ही अपने का दुश्मन हुआ,
अभी वक़्त है संभाल सको तो संभल जाना ,
कल हो न हो किसे पता | दुनिया में भाँति भाँति के मनुष्य है ,
कुछ भ्रमित है कुछ चकित  है ,
कुछ ज्ञानी  कुछ अज्ञानी  है ,
अन्धविश्वास, पाखंड  का ऐसा चक्र्व्यूह रचा ह

Abhishek Mishra

अयोध्या की कलम से ...... धन्य हुई ये भूमि बन गई जब जन्मभूमि चौदह वर्ष के बाद फ़िर अयोध्या झूमी | ......

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            लॉर्ड राम                           
अयोध्या की कलम से
...... 
धन्य हुई ये भूमि
बन गई जब जन्मभूमि
चौदह वर्ष के बाद
फ़िर अयोध्या झूमी |
......

अभि "एक रहस्य"

अयोध्या की कलम से ...... धन्य हुई ये भूमि बन गई जब जन्मभूमि चौदह वर्ष के बाद फ़िर अयोध्या झूमी | ......

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            लॉर्ड राम                           
अयोध्या की कलम से
...... 
धन्य हुई ये भूमि
बन गई जब जन्मभूमि
चौदह वर्ष के बाद
फ़िर अयोध्या झूमी |
......

Vikas Sharma Shivaaya'

एकादशी:- हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बा #समाज

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एकादशी:-
हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं।

एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है इसलिए एकादशी को हरि वासर या हरि का दिन भी कहा जाता है।

एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य का अर्चन-वंदन करने की प्रेरणा देने वाला व्रत ही 'एकादशी व्रत' है।

एकादशी का नाम मास पक्ष:-
कामदा एकादशी- चैत्र शुक्ल
वरूथिनी एकादशी- वैशाख कृष्ण
मोहिनी एकादशी -वैशाख शुक्ल
अपरा एकादशी -ज्येष्ठ कृष्ण
निर्जला एकादशी- ज्येष्ठ शुक्ल
योगिनी एकादशी- आषाढ़ कृष्ण
देवशयनी एकादशी -आषाढ़ शुक्ल
कामिका एकादशी- श्रावण कृष्ण
पुत्रदा एकादशी- श्रावण शुक्ल
अजा एकादशी- भाद्रपद कृष्ण
परिवर्तिनी एकादशी- भाद्रपद शुक्ल
इंदिरा एकादशी -आश्विन कृष्ण
पापांकुशा एकादशी- आश्विन शुक्ल
रमा एकादशी -कार्तिक कृष्ण
देव प्रबोधिनी एकादशी -कार्तिक शुक्ल
उत्पन्ना एकादशी- मार्गशीर्ष कृष्ण
मोक्षदा एकादशी- मार्गशीर्ष शुक्ल
सफला एकादशी- पौष कृष्ण
पुत्रदा एकादशी- पौष शुक्ल
षटतिला एकादशी -माघ कृष्ण
जया एकादशी- माघ शुक् ल
विजया एकादशी- फाल्गुन कृष्ण
आमलकी एकादशी- फाल्गुन शुक्ल
पापमोचिनी एकादशी- चैत्र कृष्ण
पद्‍मिनी एकादशी- अधिक मास शुक्ल
परमा एकादशी -अधिक मास कृष्ण

पुत्रदा एकादशी:-
 पुत्रदा एकादशी को वैकुंठ एकादशी भी कहते हैं- पुत्रदा एकादशी के पुण्य फल से व्यक्ति को पुत्र की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. पंचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी या वैकुंठ एकादशी व्रत रखा जाता है. पुत्रदा एकादशी व्रत हर संतानहीन दंपत्ति को रखने के लिए कहा जाता है. 

विष्णु सहस्रनाम( एक हजार नाम) आज 312 से 322 नाम 
 
312 नहुषः भूतों को माया से बाँधने वाले
313 वृषः कामनाओं की वर्षा करने वाले
314 क्रोधहा साधुओं का क्रोध नष्ट करने वाले
315 क्रोधकृत्कर्ता क्रोध करने वाले दैत्यादिकों के कर्तन करने वाले हैं
316 विश्वबाहुः जिनके बाहु सब और हैं
317 महीधरः महि (पृथ्वी) को धारण करते हैं
318 अच्युतः छः भावविकारों से रहित रहने वाले
319 प्रथितः जगत की उत्पत्ति आदि कर्मो से प्रसिद्ध
320 प्राणः हिरण्यगर्भ रूप से प्रजा को जीवन देने वाले
321 प्राणदः देवताओं और दैत्यों को प्राण देने या नष्ट करने वाले हैं
322 वासवानुजः वासव (इंद्र) के अनुज (वामन अवतार)

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

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©Vikas Sharma Shivaaya' एकादशी:-
हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बा

N S Yadav GoldMine

#City भगवान विष्णु ने जहां लिया था वराह अवतार वहां स्नान करने से मिलता है पुण्य अपार पढ़िए इस मंदिर का इतिहास !! 🎀🎀 {Bolo Ji Radhey Radhey} व #पौराणिककथा

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भगवान विष्णु ने जहां लिया था वराह अवतार वहां स्नान करने से मिलता है पुण्य अपार पढ़िए इस मंदिर का इतिहास !! 🎀🎀
{Bolo Ji Radhey Radhey}
वराह भगवान मंदिर :- भगवान विष्णु ने जहां लिया था वराह अवतार, वहां स्नान करने मिलता है पुण्य अपार मिलता है।

🌴 भगवान वराह की नगरी कासगंज जिले का सोरों। देश के विभिन्न राज्यों की श्रद्धा एवं आस्था से जुड़ी हरिपदी गंगा। आने वाले 15 दिन यहां पर देश भर से श्रद्धालुओं का आना होगा। 16 दिसंबर से शुरू हो रहे मार्ग शीर्ष मेले को लेकर आस्था की नगरी तैयार है। त्रयोदशी को नागा साधुओं का शाही स्नान होगा। साल में एक बार लगने वाली पंचकोसीय परिक्रमा भी एकादशी को वराह मंदिर से शुरू होती है। पूर्णिमा को अंतिम एवं चतुर्थ स्नान के साथ में मेले का समापन होता है।

🌴 कासगंज से करीब 12 किमी दूर स्थित सोरों में हरिपदी गंगा (हर की पैड़ी) के तट पर लगने वाले मेले में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। उप्र के साथ मध्य प्रदेश और राजस्थान से तो लोग यहां आते ही हैं, अन्य प्रदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग स्नान करने के लिए यहां आते हैं। पूर्णिमा तक चलने वाले मेले में चार स्नान होते हैं। सबसे ज्यादा महत्व एकादशी के स्नान का है। माना जाता है इस दिन वराह भगवान ने यहां पर व्रत रखा था। त्रयोदशी को होने वाला तीसरा स्नान सिर्फ साधु संतों एवं नागा बाबाओं का ही खास तौर पर रहता है। एकादशी एवं द्वादशी को श्रद्धालु स्नान करते हैं तो अंतिम एवं चौथा स्नान पूर्णिमा को होता है। द्वादशी को वराह भगवान की यात्रा निकलती है। N S Yadav. 

यह है मान्यता :- 🌴 भगवान विष्णु ने वराह अवतार के रूप में दैत्यराज को मारकर उसके द्वारा रसातल में रखी गई पृथ्वी को दंत के अग्रभाग पर धारण कर जल से बाहर इसी स्थान पर निकाला था। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को व्रत रखा था, दूसरे दिन द्वादशी को वराह रूप त्याग दिया। इस पुण्य तिथि के उपलक्ष्य में यह मेला प्राचीन काल से यहां लगता आ रहा है।

हिरण्याक्ष से पृथ्वी को मुक्त कराया :- 🌴 कासगंज जनपद की सोरों तीर्थ नगरी रहस्यों की नगरी कहा जाता है। सृष्टि का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने वराह के रूप में अवतार लिया था। यह अवतार भगवान ने वराह (शूकर) के रूप में लिया, तभी से इस नगरी का नाम शूकर क्षेत्र हो गया। शूकर क्षेत्र सोरों में एक नहीं अनेक आस्था के केन्द्र हैं। वराह भगवान मंदिर के महंत विदिहानंद बताते हैं कि शूकर सोरों तो महिमा से भरा पड़ा है। हमारे यहां कई अवतार हुए हैं।  

🌴 दशावतारों में दो जलचर और दो वनचर, दो भूप, चार विप्र के अवतार हैं। जलचर में कक्ष और मक्ष आते हैं। वनचर वराह भगवान और नरसिंह भगवान हैं। दो भूपों में श्रीराम और श्रीकृष्ण आते हैं। चार विप्र हैं- परशुराम, बावन, बुद्ध, कपिल भगवान। ये सभी दशावतार में आते हैं। इस अवतार में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर और पृथ्वी को जल पर स्थापित किया था। हिरण्याक्ष ने जल के अंदर पूरी पृथ्वी को छिपा दिया था। बहुत बलशाली था दैत्य। उससे देवता भी हार गए थे। भगवान ने वराह का अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को मुक्त कराया

भगवान ने रखा था एकादशी का व्रत :- 🌴 तीर्थ पुरोहित सोरों विक्रम पांडे बताते हैं कि मान्यता है कि यहां भगवान ने वराह (तृतीय अवतार) के रूप में एकादशी के दिन व्रत रखकर पंचकोसी की परिक्रमा की थी। बाद में हिरण्याक्ष का वध कर हरिपदीय गंगा कुंड को नाखूनों से खोदकर अपने प्राण कुंड में त्याग दिये थे। तभी से इस कुंड में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। मृत पूर्वजों की अस्थियां विसर्जन करने से उनकी आत्मा का शांति मिलती है। विसर्जन की जाने वाली अस्थियां 72 घंटे यानि तीन के दिन के अंदर पानी में घुल मिलकर रेणु रूप हो जाती है। तभी से मार्गशीर्ष मेले का शुभारंभ हुआ था।

©N S Yadav GoldMine #City भगवान विष्णु ने जहां लिया था वराह अवतार वहां स्नान करने से मिलता है पुण्य अपार पढ़िए इस मंदिर का इतिहास !! 🎀🎀
{Bolo Ji Radhey Radhey}
व

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏श्री श्री 1008 सतगुरु श्री बावा लाल दयाल महाराज जी का 667वां जन्मोत्सव :-💐🎂🍨🍎🚩 विक्रमी सम्वत 1412 सन 1356 माघ शुक्ला द्वितीया सोमवार को पि #समाज

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🙏श्री श्री 1008 सतगुरु श्री बावा लाल दयाल महाराज जी का 667वां जन्मोत्सव :-💐🎂🍨🍎🚩

विक्रमी सम्वत 1412 सन 1356 माघ शुक्ला द्वितीया सोमवार को पिता भोला राम कुलीन क्षत्री और माता कृष्ण देवी जी के घर बावा लाल दयाल जी ने जन्म लिया। आठ वर्ष की आयु में ही धर्म ग्रंथ पढ़ डाले। पिता जी ने उन्हें अपनी गाय और भैंस चराने के लिए जंगल में भेजा। नदी किनारे एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे। इतने में साधुओं का एक झुंड उधर आ निकला और उनके प्रमुख संत ने देखा कि कड़कती धूप में भी वृक्ष की छाया में कोई अंतर नहीं पड़ा जबकि दूसरे वृक्षों की छाया अपने स्थान से दूर हो गई है। उनके और निकट आने पर उन्होंने देखा कि बालक के सिर पर शेष नाग ने छाया कर रखी है, इतने में बालक ने उठ कर बड़े महात्मा जी को प्रणाम किया जिनका नाम चैतन्य स्वामी था। उन्होंने बावा लाल को कहा कि बेटा “हरिओम तत सत ब्रह्म सच्चिदानंद कहो’ और भक्ति में हर समय मग्न रहो।

इतने में एक शिष्य ने कहा कि सबको भूख सता रही है। इस पर स्वामी चैतन्य जी ने कुछ चावल ले कर मिट्टी के बर्तन में डाले और अपने पांवों का चूल्हा बना कर योग अग्नि से उन्हें पकाया। पल भर में चावल बन गए और सबने खाए। बाद में हांडी को फोड़ दिया और तीन दाने बावा लाल दयाल  को भी दिए जिससे उनकी अंतदृष्टि खुल गई और घर आकर माता-पिता से स्वामी चैतन्य जी को अपना गुरु बनाने की अनुमति लेकर उनकी मंडली में शामिल हो गए।

कुछ समय उन्हें अपने साथ रखने के बाद उन्होंने बावा लाल जी को स्वतंत्र रूप से भ्रमण की आज्ञा दे दी और उन्होंने धर्म प्रचार जोर-शोर से शुरू कर दिया जिससे दिल्ली, नेपाल, यू.पी.सी.पी. पंजाब में आपके प्रति लोगों का श्रद्धा भाव बढ़ा, इतना ही नहीं काबुल के बहुत से पठानों ने अपना गुरु माना है। सिंध में भी बहुत से मुसलमानों ने उन्हें अपना पीर माना है और उन्होंने उनकी कब्र भी बना रखी है।

बावा लाल जी लाहौर से हरिद्वार पहुंचे। गंगा किनारे हिमालय में कई वर्षों तक रह कर तपस्या करने के पश्चात वह गांव सहारनपुर आ गए और उन्होंने गांव के उत्तर की ओर एक गुफा में तप करना प्रारंभ कर दिया। एक बार वह जंगल में घूम रहे थे कि उन्हें प्यास लगी मगर आसपास पानी न होने से एक गाय चराने वाले लड़के से एक बिना बछड़े वाली गाय से ही दूध निकाल कर अपनी प्यास बुझा ली तो इस चमत्कार की खबर सारे क्षेत्र में फैल गई। इनके आश्रम में हिन्दू और मुसलमान आ आकर जब अपनी मनोकामनाएं पूरी करने लगे तो उनके विरोधियों ने सूबेदार खिजर खां के कान भरे कि एक काफिर जादू टोने करके लोगों को गुमराह कर रहा है और भारी तादाद में मुसलमान भी उसके शिष्य बन गए हैं। उनमें एक प्रमुख मुसलमान फकीर हाजी कमल शाह का मकबरा आज भी आश्रम में है।

भारत भर में तमाम वैष्णव पूज्य स्थानों में दरबार ध्यानपुर का विशेष पूज्य स्थान माना जाता है। न केवल हिन्दुओं अपितु अफगानिस्तान के मुसलमान पठानों में भी यह पूर्ण आदर भाव पाता रहा है। अंग्रेज शासकों की कूटनीति के कारण देश के बंटवारे के परिणामस्वरूप आज हिन्दू और मुसलमान आपस में उलझ रहे हैं। आज से 660 वर्ष पूर्व हालांकि वैष्णव हिन्दू संत बावा लाल दयाल जी महाराज तथा अन्य कई महापुरुषों ने लगातार एकता के लिए प्रयत्न जारी रखे जिनमें उस समय के मुस्लिम हुक्मरानों ने भी अपना योगदान दिया है। इसमें विशेष कर ताजमहल के निर्माता मुगल शहंशाह शाहजहां और उसके बड़े बेटे राजकुमार दारा शिकोह पेश रहे। दारा शिकोह ने अपनी पुस्तक हसनत-उल-आरिफिन में लिखा है कि बावा लाल जी एक महान योगी हैं। इनके समान प्रभावशाली और उच्च कोटि का कोई महात्मा हिन्दुओं में मैंने नहीं देखा है।

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 514 से 525 नाम
514 विनयितासाक्षी प्रजा की विनयिता को साक्षात देखने वाले
515 मुकुन्दः मुक्ति देने वाले हैं
516 अमितविक्रमः जिनका विक्रम (शूरवीरता) अतुलित है
517 अम्भोनिधिः जिनमे अम्भ (देवता) रहते हैं
518 अनन्तात्मा जो देश, काल और वस्तु से अपरिच्छिन्न हैं
519 महोदधिशयः जो महोदधि (समुद्र) में शयन करते हैं
520 अन्तकः भूतों का अंत करने वाले
521 अजः अजन्मा
522 महार्हः मह (पूजा) के योग्य
523 स्वाभाव्यः नित्यसिद्ध होने के कारण स्वभाव से ही उत्पन्न नहीं होते
524 जितामित्रः जिन्होंने शत्रुओं को जीता है
525 प्रमोदनः जो अपने ध्यानमात्र से ध्यानियों को प्रमुदित करते हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏श्री श्री 1008 सतगुरु श्री बावा लाल दयाल महाराज जी का 667वां जन्मोत्सव :-💐🎂🍨🍎🚩

विक्रमी सम्वत 1412 सन 1356 माघ शुक्ला द्वितीया सोमवार को पि

Unconditiona L💓ve😉

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