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Varsha Sharma
आख़िरी प्रेम कविता.... (Part-2) सुनो.... तुम आ तो रहे हो न..? लेकिन हां... तुम थोडा जल्दी ही आना.... वैसे मुझे मालूम है की देर से आना तो, पुरानी आदत है न तुम्हारी...! जैसे.
Varsha Sharma
आख़िरी प्रेम कविता.... (Part-2) सुनो.... तुम आ तो रहे हो न..? लेकिन हां... तुम थोडा जल्दी ही आना.... वैसे मुझे मालूम है की देर से आना तो, पुरानी आदत है न तुम्हारी...! जैसे.
Devesh Varshney
जिंदगी एक पहेली सी , अनजानी अकेली सी, जी लो तो जलेबी सी, नहीं तो सूनी हवेली सी।।। जिंदगी एक पहेली सी अनजानी अकेली सी, जी लो तो जलेबी सी, नहीं तो सूनी हवेली सी।।।
Anita Najrubhai
विरान हवेली में रहेते है जहाँ कोई जाता नहीं है घुंघरू की आवाज़ आना आती हैं चमगादड़ उडती है सांप बिच्छु चलते हैं ऐसे विरान हवेली में किसी इन्सान की रूह भटकती है ©Anita Najrubhai #हवेली
Sunita Chhattani
उस गांव में जो हवेली थी वो .. कुछ खंजर हों चुकी थीं कुछ डरावनी सी.. जैसे किसिकी परछाई थी वहा. जो धुंधली तस्वीर में... पर नज़र से परे ..... कुछ मिठास भरा स्वर जो धीमे धीमे कोई नाम लिए गुनगुना रहा हो.... लेकिन. एक बात पूछना चाहती थी जो कुछ सवाल जवाब किसिका इंतजार था. बरसों पहले से हैं ,... वोही सुनसान जगह पर,सुनसान राहें जो,किसी मंजिल की तलाश में गुम हो जो कुछ कह रही हो. ,... मानो, कुदरत को भी तरस आता हों... तेज़ आंधी में उड़ी, हवाओं का झोंका आया... और सबकुछ बिखर गया. ... . पहले की तरह...... ©Sunita Chhattani हवेली
Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
"ये ऊंची-ऊंची इमारतें" ये शहरों की ऊंची-ऊंची,इमारतें बता रही जनसंख्या के आंकड़े गर अब भी हम लोग न सम्भले बहुत जल्द होंगे बड़े-बड़े हादसे कम चीजों से ज्यादा की चाहते इससे हो रही,हादसों की आहटें बढ़ रहा,भूमि पर अतिरिक्त बोझ कत्ल हो रहे,नित ही,भू कालजे बिगड़ रहा,पारिस्थिकी संतुलन मनुष्य का बहुत बिगड़ गया,मन बहुत बढ़े,प्रकृति छेड़छाड़ मामले कुल्हाड़ी,पांवों पर खुद ही मार रहे ये शहरों की ऊंची-ऊंची,इमारतें मिटा रही गांवों की मासूमियतें फूल दब रहे है,पत्थरो के तले बहुत बिगड़ गई,हमारी आदतें गर वक्त रहते हम लोग न सुधरे बढ़ी जनसंख्या,पार करेंगी हदें भुखमरी से बढ़ेगी,इतनी मौतें एक आम खाने,मरेंगे सो-सो जने प्रकृति से जो गर छोड़ेंगे जड़ें फिर तो हम सूखकर ऐसे मरेंगे, जैसे जेठ दुपहरी में बदन जले व्यर्थ की आधुनिकता छोड़ चले जो भी कार्य प्रकृति को हानि दे वो कार्य हम लोग कभी न करे जितना हम प्रकृति से जुड़ सके, वो कार्य हम लोग अवश्य ही करे प्रकृति मां की गोद मे सोने चले ओर अपने सारे ही गम भूल चले ये ज़माने की ऊंची-ऊंची इमारतें आज तक कोई संग लेकर न चले जिओ-जीने दो,सिद्धांत पर चले ओर निःस्वार्थ कर्म करते हुए चले जिसने जिंदादिली के जलाये दीये उस रोशनी से,तम जगमगाने लगे दिल से विजय विजय कुमार पाराशर-"साखी" ©Vijay Kumar उपनाम-"साखी" ऊंची-ऊंची इमारते #City
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