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Parasram Arora
जीवन मे लक्ष्य है बहुत धन पाने के पदपाने के. यश पाने के परमात्मा पाने के लेकिन सारे लक्ष्य बेमानी है क्योंकि ये सभी लक्ष्य हमेँ बाँधने वाले है हवाओ पऱ करनी हो सवारी तों लक्षो से आशिकी तोड़नी पड़ेगी लक्ष्य हीन होने पर ही मिलेगा अनंत वही जो कालांतर मे होना चाहतें है हम तभी आनद की उपलब्धि भी होगी वही आनद जो बिखरेगा बंटेगा और अंत मे यही आंनद मुक्ति का पथ भी प्रशस्त करेगा ©Parasram Arora लक्ष्य हीन
Ankit Mishra
सोना कमाना और खाना जिन्दगी को मैं तीन किस्ते ही अता कर रहा हू मुझको मालूम है कि कितनी तल्खियॉ है मुझमें मुझको गिला है कि तुझ संग क्या खता कर रहा हू रंग हीन
Raja Kumar
सवोपरि सम्मान बुद्धि हीन ©Raja Kumar सवोपरि सम्मान बुद्धि हीन
Parasram Arora
क्या इस ब्रह्माण्ड मे कोई ऐसा भी ग्रह है जहाँ आदमी ख्वाब हीन एक लम्बी नींद ले सकता हो? और ज़ब वो उठ कर पहली आनद दाई अंगड़ाई ले तों उसे लग सके कि उसने आज एक न्या ताज़ा दिन पा लिया है लेकिन अब इस नये दिन मे उसे आगे क्या करना है? क्योंकि आगे के लिये न तों उसके पास कोई ख्वाब है न कोई पूर्व अवधारणा है और न ही कोई ब्लू प्रिंट किसी कल्पना का है जिसे उसे साकार करना है आज वो ये सोचने पर विवश हुआ है कि जहाँख्वाब औरकल्पना का कोई औचित्य नही होता वहा आदमी. क्या करता होगा और अपना जीवन व्यतीत कैसे करता होगा l ©Parasram Arora एक ख्वाब हीन लम्बी नींद
Parasram Arora
इस रंग भूमि के खुले मंच पर हर कोई अपने मन भावना को ढूंढ़ने मे लगा है अपनी पीड़ा को छुपाने मे कितने सक्षम है हम इसका आभास हमारी खोखली हंसी मे साफ नज़र आता है हा कभी मिल जाती है सुख की शीतल. छाँव अनजाने मे लेकिन दुख की तीखी धूप तो सदा तपाती रहती है तन को मन को कभी लगता है अमावस जीवन की पीगई है चाँदनी रातो की स्निग्ध रौशनी को शुक्र है परमात्मा ने आयु की सीमाएं निर्धारित कर रखी है वरना पता नहीं क्या होता परिणाम इस अवसादग्रस्त अर्थहीन जीवन का #St एक अर्थ हीन जीवन.........
Parasram Arora
ये अर्थहीन संवाद और विवादों का घेरा ये शेरो की गुफा मे गीदड़ो का बसेरा ये विवादित बयानों की निरंकुशता और दिलो को चीर देने वाली असवेधानिक भाषा ये तर्कों की अशशीलता और विवशताओं की पीड़ा अपमान और कलंक से बोझिल... अनुभूति विहीन आकारहीन तम मे बतियाने को तरसता हुआ. ये जीवन का विवर्ण खुशक चेहरा... और शिशिर. के कोहरो मे डूबा हुआ ये जनतन्त्र ज़ो जूझ रहा हैँ आज भीiवहशत और दहशत की साज़िशो से ज़ो आज भी दीवारों पर टांग देने वाली परम्पराओं से अपने को मुक्त नही. कर पाया हैँ ©Parasram Arora ये अर्थ हीन संवाद #yogaday