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Stories related to सदोष मनुष्यवध

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Dr. Alpana suhasini

एक शे'र--- सदोष हिसारी

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कैसे कैसे दिन दिखाए ज़िंदगी, 
हम तो तुझसे बाज़ आए ज़िंदगी, 
ग़ैर के कूचे में या फिर मयकदे, 
इस तरह काटी सज़ाए ज़िंदगी .
    ----सदोष हिसारी  एक शे'र---
सदोष हिसारी

RUPAM AHLAWAT

सदोष हिसारी की क्षणिकाएँ

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Dr. Alpana suhasini

एक शे'र--- सदोष हिसारी

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कैसे कैसे दिन दिखाए ज़िंदगी, 
हम तो तुझसे बाज़ आए ज़िंदगी, 
ग़ैर के कूचे में या फिर मयकदे, 
इस तरह काटी सज़ाए ज़िंदगी .
    ----सदोष हिसारी एक शे'र---
सदोष हिसारी

Dr. Alpana suhasini

एक शे'र--- सदोष हिसारी

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कैसे कैसे दिन दिखाए ज़िंदगी, 
हम तो तुझसे बाज़ आए ज़िंदगी, 
ग़ैर के कूचे में या फिर मयकदे, 
इस तरह काटी सज़ाए ज़िंदगी .
    ----सदोष हिसारी  एक शे'र---
सदोष हिसारी

vikas yashkirti

सदोष हिसारी की कविता #EmotiveTalks

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Dr. Alpana suhasini

सदोष हिसारी जी की रचना---

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उस दिन सारा शहर उदास था !
कोई हलचल ,भागम - भाग 
कोई ऊहापोह नहीं थी 
लोग अपने - आप से रूठे हुए - से चल रहे थे 
चेहरा - चेहरा बुझा - मलिन था 
अनमने सब लग रहे थे 
इक घोर मुर्दा शांति में 
लिपटा पड़ा था शहर सारा !
 
न तो सिले थे लब ही किसी के 
न ही लगा था आज़ादी पर 
कोई अंकुश किसी तरह का 
फिर भी लेकिन उस दिन सारा आलम 
एकदम चुप - चुप सा था !
 
बात पता ये चली कि उस दिन --
अख़बारों में सिर्फ़ छपी थीं
 गीत- कला -कविता की बातें 
घोटालों का ,बलात्कार का 
अपहरणों का ज़िक्र नहीं था 
लूटपाट की ,हत्याओं की 
आगज़नी की ख़बर नहीं थी
 नहीं छपे थे अभिनेत्रियों के 
बदन उघाड़े फ़ोटो उस दिन 
बस इतनी -सी बात हुई थी 
जिस दिन  सारा शहर उदास था !!
            ------श्री सदोष हिसारी सदोष हिसारी जी की रचना---

RUPAM AHLAWAT

रचना-श्री सदोष हिसारी स्वर-अल्पना सुहासिनी

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Pallavi Goel

आढ्यो वापि दरिद्रो वा दु:खित: सुखितोऽपि वा। निर्दोषो वा सदोषो वा वयस्य: परमा गति:।। चाहे धनी हो या निर्धन, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या #FriendshipDay #international_friendship_day

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संस्कृतं मम जीवनध्येयम्

आढ्यो वापि दरिद्रो वा दु:खित: सुखितोऽपि वा।
निर्दोषो वा सदोषो वा वयस्य: परमा गति:।।

चाहे धनी हो या निर्धन, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या सदोष - मित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा सहारा होता है ।

Source- किष्किन्धाकाण्ड अष्टम सर्ग

©Pallavi Goel आढ्यो वापि दरिद्रो वा दु:खित: सुखितोऽपि वा।
निर्दोषो वा सदोषो वा वयस्य: परमा गति:।।

चाहे धनी हो या निर्धन, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या
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