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RAVI PRAKASH
White तारे भी चमकते हैं बादल भी बरसते हैं, आप तो हमारे दिल में हो, फिर भी हम मिलने को तरसते हैं !! ©RAVI PRAKASH #car बादल भी बरसते हैं
Ghumnam Gautam
White आज नहीं तो कल होना है इस मुश्किल को हल होना है करते हैं वो ठहराव पसन्द और मुझे हलचल होना है बात बरसने की सुनकर इनकार है उन्हीं के होठों पर कहते जो नहीं थकते थे― "यार हमें बादल होना है" ©Ghumnam Gautam #Emotional #बादल #ghumnamgautam #मुश्किल
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read moreGurudeen Verma
White शीर्षक- इस ठग को क्या नाम दे --------------------------------------------------------- बड़े नम्बरी होते हैं वो आदमी, जो करते हैं शोषण छोटे आदमी का, और छीन लेते हैं उधारी चुकाने के नाम पर, गरीब आदमी की जमीन और आजादी। लेते हैं काम छोटे आदमी को, कोल्हू के बैल की तरह दिनरात, एक वर्ष की मजदूरी बीस हजार देकर, जबकि होते हैं खर्च पाँच हजार एक माह में। लेता है ब्याज बहुत वो आदमी, छोटे आदमी को देकर उधार रुपये, बड़े ही ठाठ होते हैं इन आदमियों के, जिनके होते हैं मकां महलनुमा। होती है उनकी जिंदगी राजा सी, जिनके एक ही आदेश पर, हो जाते हैं सारे काम, और हाजिर नौकर चाकरी में। कमाता होगा इतने रुपये वह आदमी, मेहनत की कमाई से कभी भी नहीं, बनाता है वह अपनी इतनी सम्पत्ति, भ्रष्टाचार और दो नम्बर की कमाई से। लेकिन एक ऐसा आदमी भी है, जो लेता है बड़े आदमी से भी ज्यादा दाम, करता नहीं रहम वो अपने भाई पर भी, और कोसता है वह बड़े आदमी, इस ठग को क्या नाम दे।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #कविता
कविता
read moreKalpana Srivastava
White बादल सिर्फ आकाश में ही नहीं होते हमारे जीवन में भी होती हैं। सुख के बादल, दुःख की काले बादल, ये तो क्षण - क्षण बदलते रहते हैं। कभी सुख तो कभी दुःख पर दुःख में जो अपना विवेक खो दे, उसे खुद के व्यवहार पर एक बार विचार करना चाहिए। दुःख में किया गया बुरा व्यवहार, और विवेकहीन फैसले अक्सर भारी क्षति करते हैं। ©Kalpana Srivastava #बादल
Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
कविता #शायरी
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