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Sunil Kumar Maurya Bekhud
मुझे याद है वो दिन जब तुम कामयाब हो गए थे परदेश मैं फूले नहीं समाया था, अश्क पलकों में छुपाया था तुम्हें देते हुए आदेश तुमने छुए थे मेरे पाव, मेरे दिल में हुआ था घाव रहा न पास कुछ भी शेष इल्म मुझको नहीं था तुम नही फिर आओगे आखिरी भेंट है अब स्मृति में रह जाओगे रोक लेता तुम्हें, मुझको न लगती ठेस आखिरी सांस तक तुमको न n सुधि आई मेरी चिता को आग भी गैरों ने ही लगाई मेरी काश इक बार तो आते मेरे दरवेश ©Sunil Kumar Maurya Bekhud # परदेश
Nischal Narendra Thapa
परदेशि हु महोदय जहा रातमा निद्रा होइन चिन्ता लाग्ने गर्छ😭 ©Nischal Narendra Thapa परदेश
vimlesh Gautam https://youtube.com/@jindgikafasana6684
इन बारिश की बदलियों से कह दो जरा कहीं और मोहब्बत की बारिश कर दें मेरे महबूब परदेश गयें हैं।। ©Vimlesh Gautam # परदेश
दीपेश
उड़ते पंछियों को भी तलाश है हम रुकें कही यही तो आश है बैठा है तू तो क्यूं भला उदास है मन तेरे भी मैं उड़ू ये आश है घर तेरा है घोंसला तो पास है उड़ना रुकना कुछ नही है सुख कहा ये खास है चल के कोई उड़ के कोई दौड़ कोई तर के कोई कर रहा प्रवास है लौटना घर ही मगर सभी की आश है लौट पाए या को जाए चलता मगर हर एक लेके यही आश है उड़ते पंछियों को भी तलाश है ©दीपेश #परदेश #सफर
CalmKrishna
................ ©CalmKrishna परदेश। #दिवाली #दीपावली #घर #दूर #नजदीक #परदेश #देश #oneliner
Prashant Mishra
मैं अपना गाँव-घर,बगिया-बगीचे छोड़ आया हूँ मेरे दीदार को बेताब दरीचे छोड़ आया हूँ मुझे इस जिंदगी में कुछ कदम आगे को जाना है बनिस्बत मैं कई रिश्तों को पीछे छोड़ आया हूँ -- प्रशान्त मिश्रा यात्रा परदेश की
Heera Rathod
बैठी जोवूं बाटड़ी विपदा विरह विशेष साजन बिन कुण साम्भल़े पीव बसे परदेस पाती में लिख मेलियो साजन ने संदेश आप बिना नहीं आवड़े पीव बसे परदेस आठूं पौहर औजको काया करे कलेस चैन आवे न चित्त में पीव बसे परदेस आवे ओल़ूं आपरी दिलड़ो घणो दुखेस अंसवन भीजी अँगीया पीव बसे परदेस सायधण सूनी सेज में मनमथ मार मरेस कल़पै कंचन कामिनी पीव बसे परदेस काग उडावै कालियौ सुगन विचारे शेष ड्योढ़ी बैठी डगमगै पीव बसे परदेस बण बैरण दे बादल़ी ठेठ काल़जे ठेस बिलखी ऊभी बारणै पीव बसे परदेस आज बरस मत आंगणे सुण इंदर संदेश मैं मर जावां मेंह में पीव बसे परदेस 🙏🏻🙏🏻 Heera Rathod🙏🏻🙏🏻 पीव बसे परदेश
NG India
मेरे सतगुरू है परदेश लिखूँ कस पाती । मेरा उमड़ा जोबन ज्ञान विरह की छाती ।।टेर।। सुख सम्पति परिवार कुटुम्ब दुखदाई ।यह बादल की सी छाँह-सदा थिर नाहिं।। मेरे दिल ने दिया फरेब दोष नहिं कोई ।में भरम कूप में पड़ा रहा घबराई ।। सूखा रक्त्त अरू माँस सोच दिन राती ।मेरे सतगुरू हैं परदेश लिखूँ कस पाती(1) सुरत निरत हरकारे खबर पहुँचावें।तब शब्द की रेल चढ़ाय तुरत बुलवावें ।। मैं रहूँ गुरू के संग सोच सब त्यागी ।बिन वर्षा झड़ियाँ लगी जाई तहाँ लागी।। मेरे सतगुरू हैं परदेश लिखूँ कस पाती (2) सती चढ़ी सत शब्द निरख उजियाली ।ऊपर चढ़ कर लखा सूरज जहाँ लाली ।। चाँदनी चौक में जाय भँवरगढ़ लागी ।रवि लखा रौशनी द्वार अँधेरे त्यागी ।। चढ़ सतपुरूष दीदार किया बहु भाँती ।मेरे सतगुरू हैं परदेश लिखूँ कस पाती (3) अलख अगम के पार लखा राधास्वामी ।अकथ अगम अनाम रूप वह दवामी ।। उनसे मिलकर फिर आज हुई मदमाती ।मेरे सतगुरू हैं परदेश लिखूँ कस पाती (4) *राधास्वामी* राधास्वामी सन्तभजनावली -11 सतगुरु हैं परदेश ।