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Lucky Shivhare
ऐसे याद आकर ... बेचैन न किया करो...! ये सितम ही काफी है... कि बहुत दूर हो #तुम..!! मेरे कान्हा जी ।। ©Lucky Shivhare #Kanhaiya #lordkrishna #kahna_love #kahnaji #LuckyShivhare
SATISH KUMAR KAMBOJ
एक बार राजा कॄष्णदेव राय तेनाली राम के किसी तर्क से बहुत प्रसन्न हुए और बोले, “तेनाली, तुमने आज मुझे प्रसन्न कर दिया, एसके बदले, मैं एक पूरा नगर तुम्हें उपहार स्वरुप देता हूँ।” तेनाली ने झुककर उनको धन्यवाद कहा। इसके बाद कई दिन बीत गए, परन्तु राजा कॄष्णदेव राय ने अपना वचन पूरा नहीं किया। वे तेनाली को एक नगर उपहार में देने का अपना वचन भूल गए थे। राजा के इस प्रकार वचन भूल जाने से तेनाली बडा परेशान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। परन्तु फिर भी राजा को उनका वचन याद दिलवाना तेनाली को अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए वह एक उचित मौके की तलाश में था। एक दिन एक अरबी व्यक्ति विजयनगर आया, उसके पास एक ऊँट था। लोगों की भारी भीड ऊँट को देखने के लिए इकट्ठी हो गई, क्योंकि उनके लिए वह एक अजूबा था । उन्होंने ऊँट के बारे में सुना था, पर कभी ऊँट देखा नहीं था। राजा एवं तेनाली भी ऊँट नामक इस अजीबो-गरीब जानवर को देखने आए। दोनों एक साथ खडे हुए ऊँट को देख रहे थे। राजा बोले, तेनाली, निःसन्देह ऊँट एक विचित्र जानवर है। इसकी लम्बी गर्दन तथा कमर पर दो कूबड हैं। मैं हैरान हूँ कि भगवान ने ऐसा विचित्र तथा बदसूरत प्राणी पॄथ्वी पर क्यों भेजा?” राजा कॄष्णदेव राय की इस बात पर तेनाली को जवाब देने का अवसर मिला और वह सदैव की तरह आज भी अपने उत्तर के साथ तैयार था । वह बोला, “महाराज, शायद …. शायद क्या बल्कि अवश्य ही यह ऊँट अपने पूर्वजन्म में कोई राजा रहा होगा और शायद इसने भी कभी किसी को उपहार स्वरुप नगर देने का वचन दिया होगा और फिर बाद में भूल गया होगा। अतः दण्ड के रूप में ईश्वर ने इसे इस प्रकार का रुप दिया होगा।” पहले तो राजा को यह तेनाली की एक बुद्धिपूर्ण काल्पनिक कहानी लगी, परन्तु कुछ समय पश्चात ही उन्हे तेनाली को दिया हुआ अपना वचन याद आ गया। अपने शाही महल में वापस आते ही राजा ने तुरन्त कोषाध्यक्ष को बुलाया और उसे निर्देश दिया कि वह लिखित रुप में प्रबन्ध करे जिसके अनुसार राजा ने तेनाली राम को पूरा एक नगर उपहार स्वरुप प्रदान किया है। पूरा एक नगर उपहार स्वरुप ग्रहण करने के पश्चात तेनाली ने राजा को धन्यवाद दिया। और इस प्रकार एक बार फिर तेनाली ने अपनी बुद्धिमानी से काम लेकर राजा को उसका भूला हुआ वचन याद दिलाया। ©SATISH KUMAR KAMBOJ ऊट का कुबड़ हास्यास्पद कहानी #story #story_of_life #kahani #Kahaniyaan #kahaniya
ऊट का कुबड़ हास्यास्पद कहानी #story #story_of_life #kahani #Kahaniyaan #kahaniya #प्रेरक
read morelamhon k ehsaas by Priyanka
#FourlinePoetry Kahani Ankahi Kuch kahania ankahi hoti h, Jin k liye alfaaz nahi hote...! Kuch kahania aisi b hoti h, Jin k liye barbaad nahi hote...! 4_lines_waale_gehre_jazbaat ©lamhon k ehsaas by Priyanka #KahaniAnkahi #kahani #ankahi #fourlinepoetry
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read moreThaneshwar
एक गाँव में एक मजदुर रहा करता था जिसका नाम हरिराम था | उसके परिवार में कोई नहीं था | दिन भर अकेला मेहनत में लगा रहता था | दिल का बहुत ही दयालु और कर्मो का भी बहुत अच्छा था | मजदुर था इसलिए उसे उसका भोजन उसे मजदूरी के बाद ही मिलता था | आगे पीछे कोई ना था इसलिये वो इस आजीविका से संतुष्ट था | एक बार उसे एक छोटा सा बछड़ा मिल गया | उसने ख़ुशी से उसे पाल लिया उसने सोचा आज तक वो अकेला था अब वो इस बछड़े को अपने बेटे के जैसे पालेगा | हरिराम का दिन उसके बछड़े से ही शुरू होता और उसी पर ख़त्म होता वो रात दिन उसकी सेवा करता और उसी से अपने मन की बात करता | कुछ समय बाद बछड़ा बैल बन गया | उसकी जो सेवा हरिराम ने की थी उससे वो बहुत ही सुंदर और बलशाली बन गया था |  गाँव के सभी लोग हरिराम के बैल की ही बाते किया करते थे | किसानों के गाँव में बैल की भरमार थी पर हरिराम का बैल उन सबसे अलग था | दूर-दूर से लोग उसे देखने आते थे |हर कोई हरिराम के बैल के बारे में बाते कर रहा था | हरिराम भी अपने बैल से एक बेटे की तरह ही प्यार करता था भले खुद भूखा सो जाये लेकिन उसे हमेशा भर पेट खिलाता था एक दिन हरिराम के स्वप्न में शिव का नंदी बैल आया उसने उससे कहा कि हरिराम तुम एक निस्वार्थ सेवक हो तुमने खुद की तकलीफ को छोड़ कर अपने बैल की सेवा की हैं इसलिये मैं तुम्हारे बैल को बोलने की शक्ति दे रहा हूँ | इतना सुनते ही हरिराम जाग गया और अपने बैल के पास गया | उसने बैल को सहलाया और मुस्कुराया कि भला एक बैल बोल कैसे सकता हैं तभी अचानक आवाज आई बाबा आपने मेरा ध्यान एक पुत्र की तरह रखा हैं मैं आपका आभारी हूँ और आपके लिए कुछ करना चाहता हूँ यह सुनकर हरिराम घबरा गया उसने खुद को संभाला और तुरंत ही बैल को गले लगाया | उसी समय से वह अपने बैल को नंदी कहकर पुकारने लगा | दिन भर काम करके आता और नंदी से बाते करता | गरीबी की मार बहुत थी नंदी को तो हरिराम भर पेट देता था लेकिन खुद भूखा सो जाता था यह बात नंदी को अच्छी नहीं लगी उसने हरिराम से कहा कि वो नगर के सेठ के पास जाये और शर्त रखे कि उसका बैल नंदी सो गाड़ी खीँच सकता हैं और शर्त के रूप में सेठ से हजार मुहरे ले लेना | हरिराम ने कहा नंदी तू पागल हो गया हैं भला कोई बैल इतना भार वहन कर भी सकता हैं मैं अपने जीवन से खुश हूँ मुझे यह नहीं करना लेकिन नंदी के बार-बार आग्रह करने पर हरिराम को उसकी बात माननी पड़ी | एक दिन डरते-डरते हरिराम सेठ दीनदयाल के घर पहुँचा | दीनदयाल ने उससे आने का कारण पूछा तब हरिराम ने शर्त के बारे में कहा | सेठ जोर जोर से हँसने लगा बोला हरिराम बैल के साथ रहकर क्या तुम्हारी मति भी बैल जैसी हो गई हैं अगर शर्त हार गये तो हजार मुहर के लिये तुम्हे अपनी झोपड़ी तक बैचनी पड़ेगी |यह सुनकर हरिराम और अधिक डर गया लेकिन मुँह से निकली बात पर मुकर भी नहीं सकता था| शर्त का दिन तय किया गया और सेठ दीनदयाल ने पुरे गाँव में ढोल पिटवाकर इस प्रतियोगिता के बारे गाँव वालो को खबर दी और सभी को यह अद्भुत नजारा देखने बुलाया | सभी खबर सुनने के बाद हरिराम का मजाक उड़ाने लगे और कहने लगे कि यह शर्त तो हरिराम ही हारेगा | यह सब सुन सुनकर हरिराम को और अधिक दर लगने लगा और उससे नंदी से घृणा होने लगी वो उसे कौसने लगा बार बार उसे दोष देता और कहता कि कहाँ मैंने इस बैल को पाल लिया मेरी अच्छी भली कट रही थी इसके कारण सर की छत से भी जाऊँगा और लोगो की थू थू होगी वो अलग | अब हरिराम को नंदी बिलकुल भी रास नहीं आ रहा था | वह दिन आ गया जिस दिन प्रतियोगिता होनी थी | सौ माल से भरी गाड़ियों के आगे नंदी को जोता गया और गाड़ी पर खुद हरिराम बैठा | सभी गाँव वाले यह नजारा देख हँस रहे थे और हरिराम को बुरा भला कह रहे थे | हरिराम ने नंदी से कहा देख तेरे कारण मुझे कितना सुनना पड़ रहा हैं मैंने तुझे बेटे जैसे पाला था और तूने मुझे सड़क पर लाने का काम किया | हरिराम के ऐसे घृणित शब्दों के कारण नंदी को गुस्सा आगया और उसने ठान ली कि वो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ायेगा और इस तरह हरिराम शर्त हार गया सभी ने उसका मजाक उड़ाया और उसे अपनी झोपड़ी सेठ को देनी पड़ी | अब हरिराम नंदी के साथ मंदिर के बाहर पड़ा हुआ था और नंदी के सामने रो रोकर उसे कोस रहा था उसकी बाते सुन नंदी को सहा नहीं गया और उसने कहा बाबा हरिराम यह सब तुम्हारे कारण हुआ | यह सुन हरिराम चौंक गया उसने गुस्से में पूछा कि क्या किया मैंने ? तुमने भांग खा रखी हैं क्या ? तब नंदी ने कहा कि तुम्हारे प्रेम के बोल के कारण ही भगवान ने मुझे बोलने की शक्ति दी | और मैंने तुम्हारे लिये यह सब करने की सोची लेकिन तुम उल्टा मुझे ही कोसने लगे और मुझे बुरा भला कहने लगे तब मैंने ठानी मैं तुम्हारे लिये कुछ नहीं करूँगा लेकिन अब मैं तुमसे फिर से कहता हूँ कि मैं सो गाड़ियाँ खींच सकता हूँ तुम जाकर फिर से शर्त लगाओ और इस बार अपनी झोपड़ी और एक हजार मुहरे की शर्त लगाना | हरिराम वही करता हैं और फिर से शर्त के अनुसार सो गाड़ियाँ तैयार कर उस पर नंदी को जोता जाता हैं और फिर से उस पर हरिराम बैठता हैं और प्यार से सहलाकर उसे गाड़ियाँ खीचने कहता हैं और इस बार नंदी यह कर दिखाता हैं जिसे देख सब स्तब्ध रह जाते हैं और हरिराम शर्त जीत जाता हैं | सेठ दीनदयाल उसे उसकी झोपड़ी और हजार मुहरे देता हैं | कहानी की शिक्षा : प्रेम के बोल कहानी से यही शिक्षा मिलती हैं कि जीवन में प्रेम से ही किसी को जीता जा सकता हैं | कहते हैं प्रेम के सामने ईश्वर भी झुक जाता हैं इसलिये सभी को प्रेम के बोल ही बोलना चाहिये | ******हिंदी कहानी ******* ©Thaneshwar #kahani #kahaniya