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Dimple_thought21

आंखों में चुभते है #Sad_Status {**श्री राधा **} @Gudiya***** Shrivas abhishek pratap singh Sethi Ji

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Urmeela Raikwar (parihar)

#Thinking जाओ तुम

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White जाओ तुम, 
फिर ना लौटना, 

written by 
Urmee ki Diary

©Urmeela Raikwar (parihar) #Thinking जाओ तुम

Urmeela Raikwar (parihar)

#library ले जाओ

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Unsplash टेरी यादों के पन्नो के बीच,
ढूंढ सकों तो ले जाओ संग. 
written by 
Urmee ki Diary

©Urmeela Raikwar (parihar) #library ले जाओ

vish

# खयालों में बस नही मेरा

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खयालों में बस नही है मेरा
बस तुम्हारे खयालों में खोई रहती हूँ
जानती हूँ अब तुम्हारे पास वक़्त नहीं है
फिर भी उस वक़्त को ढूंढती हूँ
क्या ये शिकायत मुझे ही है या सभी को
इसका जवाब ढूँढतीं हूँ
ये जो वक़्त का फ़ासला आया है हमारे बीच
मैं उसकी ख़ता ढुँढती हूँ
कामयाबी आपको हर लम्हा मिले
ये दुआ करतीं हूँ
बस आपके कुछ लम्हों में खुद को ढूँढती हूँ
प्यार में जो सज़ा मिली है हमे
मैं उस गुनाह को ढूँढती हूँ


जिंद़गी

©vish # खयालों में बस नही मेरा

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर जो हाथों में हुनर और आंखों में आग रखते हैं, वही तो दुनिया बदलने का ख्वाब रखते हैं।

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Unsplash जो हाथों में हुनर और आंखों में आग रखते हैं,
वही तो दुनिया बदलने का ख्वाब रखते हैं।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
जो हाथों में हुनर और आंखों में आग रखते हैं,
वही तो दुनिया बदलने का ख्वाब रखते हैं।

Vivek Maurya

बदल जाओ वक्त के साथ

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Unsplash बदल जाओ वक्त के साथ या फिर वक्त बदलना सीखो मजबूरियों को मत कोसो हर हाल में चलना सीखो

©Vivek Maurya बदल जाओ वक्त के साथ

मनोज कुमार झा "मनु"

#december तुम्हीं आ जाओ

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दिसंबर का महीना  तुम्हीं आकर के अब बचा लो मुझे,
बहुत कम बचा हूं दिसम्बर की तरह।।

©मनोज कुमार झा "मनु" #december तुम्हीं आ जाओ

Kumar Kundan

भूल जाओ मुझे#

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Rajesh Kumar

तेरी आंखों का नशा

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यह न पूछो कि मैं कैसे जिया करता हूं
अपने जख्मों को मैं कैसे सिया करता हूं
असहनीय दर्द को मिटाने के लिए
तेरी आंखों का जाम पिया करता हूं

©Rajesh Kumar तेरी आंखों का नशा

Shashi Bhushan Mishra

#बस इतने में#

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बस इतने में  हांफ  रहे हो,
डर से थर-थर कांप रहे हो,

मारे जाओगे एक दिन सब,
आस्तीन  के  सांप  रहे हो,

रंग बदलने में  तुम  माहिर,
गिरगिट के भी बाप रहे हो,

सिर्फ़ सियासत धर्म-कर्म है,
फूंक दिया घर  ताप रहे हो,

पोल खुली तो बिल में दुबके,
तुम कब रस्ता  नाप रहे हो,

पढ़े-लिखे भी बैल बुद्धि ही,
लगते   झोलाछाप   रहे हो,

भूंक रहे  अपनी  गलियों से,
कभी तो लल्लन टाप रहे हो,

'गुंजन' घड़ा फूटना तय था,
अबतक  भरते  पाप रहे हो,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #बस इतने में#
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