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Madhav Jha
यात्रा ही केवल लेखक का होना तय नही करता। पूर्णतः मन का विचार केवल साहित्य पर निर्भर नही। एक दृष्टीकोण से ये सही है मगर लेखक अपने मन का प्रतिनिधि है। एक साहित्यकार और एक गंवार दोनो ही लेखक हो सकते हैं। केवल उनमें मन के भाव का उद्गम होना उनके परिस्थिति और समय के अनुसार जन्म लेता या मिट जाता है। अब.. घट ही पट है और पट ही घट है। ये सिद्धान्त के अनुसार अगर एक घड़ा ही कपड़ा है तो आश्चर्य है कैसे। एक घड़ा मिट्टी का अंश है। वहीं एक कपड़ा जो उसी मिट्टी से कपास के द्वारा बना वह भी मिट्टी है। जैसे एक शरीर मिट्टी है, मरणोपरांत जब भस्मविभूषित होता है तो बचती केवल मिट्टी है। सार्विक तातपर्य है कारण और उसके करण। ऐसे ही लेखक है जो मन से उपजता है और अथाह है। एक लेखक का परिचय
NAGENDRA MOHAN SHUKLA
कोई मन्दिर बनाता है कोई मस्ज़िद बनाता है l कोई दीवार पर चढ़ कर अज़ान सबको सुनाता है ll फ़क़ीरों की नस्ल के हूँ मेरा मज़हब नहीं कोई l मेरा परवरदिगारां तो मेरे दिल मे समाता है ll - नागेन्द्र 'मोहन' शुक्ल नागेन्द्र 'मोहन' शुक्ल लेखक - तनहाइयों की शाम
Creative Parsur
Pratibha Ahire
आदर्श राजा राम आदर्श पुत्र राम आदार्ष भ्राता राम आदर्श पती राम आदर्श पिता राम आदर्श मित्र राम आणि आदर्श शत्रू सुध्दा राम श्रीरामचंद्र म्हणजेच मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम यांच्या सम जीवन व्हावे पण आधी रामाला समजून घ्यावे हे श्री रामा तुम्हाला समजून घेण्याची आणि तुमच्या सम जीवन जगण्याची आम्हा शक्ती दे. ©Pratibha Ahire श्री रामचंद्र.