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Ankit Singh
कभी-कभी किसी पालतू जानवर को खोना किसी इंसान को खोने से ज्यादा दर्दनाक होता है क्योंकि पालतू जानवर के मामले में, आप उससे प्यार करने का नाटक नहीं कर रहे थे। ©Ankit Singh कभी-कभी किसी पालतू जानवर को खोना किसी इंसान को खोने से ज्यादा दर्दनाक होता है क्योंकि पालतू जानवर के मामले में, आप उससे प्यार करने का नाटक न
ਸੀਰਿਯਸ jatt
HintsOfHeart.
"यूँ ही कुछ मुस्काकर तुमने परिचय की वो गाँठ लगा दी! कभी कभी यूँ हो जाता है गीत कहीं कोई गाता है गूँज किसी उर में उठती है तुमने वही धार उमगा दी जाने कौन लहर थी उस दिन तुमने अपनी याद जगा दी"¹ ©HintsOfHeart. #त्रिलोचन_शास्त्री #यूँ_ही_कुछ_मुस्काकर_तुमने 1.वह आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य
HintsOfHeart.
"कहते हैं, धरती पर सब रोगों से कठिन प्रणय है लगता है यह जिसे, उसे फिर नींद नहीं आती है दिवस रुदन में, रात आह भरने में कट जाती है मन खोया-खोया, आँखें कुछ भरी-भरी रहती है भीगी पुतली में कोई तस्वीर खड़ी रहती है"¹ ©HintsOfHeart. #रामधारी_सिंह_'दिनकर' के काव्य नाटक #उर्वशी' से। 1.इसके लिए 1972 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
HintsOfHeart.
■ उनको प्रणाम! "जो छोटी–सी नैया लेकर उतरे करने को उदधि–पार; मन की मन में ही रही¸स्वयं हो गए उसी में निराकार! उनको प्रणाम! जो उच्च शिखर की ओर बढ़े रह–रह नव–नव उत्साह भरे; पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि कुछ असफल ही नीचे उतरे! उनको प्रणाम!"* ©HintsOfHeart. #They_also_serve_who_stand_and_wait. * नागार्जुन
Ravendra
Ravindra Singh
न लेता ख़ैर न खबर कोई मेरी… न लेता ख़ैर न खबर कोई मेरी , तू भूल गया है , या मुझे भूलने का नाटक कर रहा है । तू ऐसा तो बिल्कुल न था , ज़रूर कोई बात है । बता जरा, तू क्यूँ इतना बदल रहा है । मुझे यक़ीन है , मेरी यादें तेरे दिल में करतीं हैं बसेरा , क्या विचार ? तेरे दिल में मेरे लिए खल रहा है । न लेता ख़ैर न खबर कोई मेरी… बता तेरी लगी आदत को मैं भुलाऊँ कैसे , तूने तो समझा लिये ख़ुद को , ख़ुद को मैं समझाऊँ कैसे । एक तू ही है जिसका ज़िक्र , मेरा दिल हर बार करता है , तू नहीं कर रहा अब , इसे मैं बताऊँ कैसे । तुझसे आग्रह है , न कर ख़ाली इस दिल को , जो कभी तेरा घर रहा है । न लेता ख़ैर न खबर कोई मेरी , तू भूल गया है, या मुझे भूलने का नाटक कर रहा है । ©Ravindra Singh न लेता ख़ैर न खबर कोई मेरी… न लेता ख़ैर न खबर कोई मेरी , तू भूल गया है, या मुझे भूलने का नाटक कर रहा है । तू ऐसा तो बिल्कुल न था , ज़रूर
Shaarang Deepak
Shaarang Deepak
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक