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Pooja Singh Rajput 🎓
त्रैतायुग में धर्म के तीन पैर थे। इस युग में पाप की मात्रा 25% और पुण्य की मात्रा 75% थी। द्वापर में धर्म के दो पैर ही रहे। इस युग में पाप की मात्रा 50% और पुण्य की मात्रा 50% थी। कलिकाल में धर्म के पैरों का कोई नामोनिशान नहीं है। इस युग में पाप की मात्रा 75% और पुण्य की मात्रा 25% ही रह गए है। -pooja singh rajput✍🍁 #वैदिककाल#भगवान#आनादीकाल#आदिकाल#कर्म#निशाचर#युग
Shipra Pandey ''Jagriti'
कुछ मुलाक़ातों की कोई परिधि नहीं होती, बस उनमें लुत्फ़ -ए -कलाम हो, फिर चाहे सुब्ह हो शब या शाम हो..! श़फ़क़त- ए आबशार/ हसरत -ए दीद हमें करीब ले आई, किसी दायरे में नहीं बधी थी हमारी मुलाक़ात बस हम ना मिलकर भी बेइंतहा मिलते थे ऐसी थी अपनी मुलाक़ात..!! शिप्रा पाण्डेय 'जागृति' ©Kshipra Pandey कुछ मुलाक़ातों की कोई सीमा कोई पृष्ठभूमि तय नहीं होती बस हो जाती हैं। # मुलाक़ात
कुछ मुलाक़ातों की कोई सीमा कोई पृष्ठभूमि तय नहीं होती बस हो जाती हैं। # मुलाक़ात
read moreMalishka Sharma
जब मैं उस पोस्टर की तरह क्लिक करने में सक्षम थी ,जो स्टूडियो पृष्ठभूमि होता था#photography#phonography#includedinmyalbum
जब मैं उस पोस्टर की तरह क्लिक करने में सक्षम थी ,जो स्टूडियो पृष्ठभूमि होता थाphotographyphonographyincludedinmyalbum
read moreVibha Katare
कागज और कलम के बीच भाव बोता हाथ.. हाथ किसी जज का, लिख देता है न्याय.. हाथ किसी पुलिस का, लिखे किसी और के अपराध.. हाथ किसी वैद्य का, लिखता है उपचार.. हाथ पत्रकार का, लिखे समाचार.. हाथ किसी योगी का, वैराग्य लिखे.. हाथ ज्योतिषी का, भाग्य लिखे.. हाथ किसी प्रेमी का प्रीत लिखे.. या विरह के गीत लिखे.. जो भाव कोई लिख न सके, एक कवि की कल्पना, वह दुर्लभ संगीत लिखे । 'कागज़ और कलम के बीच' प्रथम पंक्ति तथा इस रचना की पृष्ठभूमि Anuup Kamal Agrawal जी की रचना से प्रेरित । Thank you Sir 🙏 #cinemagraph #कागज़ #
'कागज़ और कलम के बीच' प्रथम पंक्ति तथा इस रचना की पृष्ठभूमि Anuup Kamal Agrawal जी की रचना से प्रेरित । Thank you Sir 🙏 #cinemagraph #कागज़ # #हाथ #कवि
read moreR S D
18 जून 11 से 11,30 बजे कवि के साथ काॅफी पटल पर आप काआना अपेक्षित है। कबीर दास की पृष्ठभूमि पर सुनें,,स्वरूप दिनकर,,,,,धन्यवाद् !!
read morexyz
तुझे ख़्वाब नहीं हक़ीक़त बनाना है यह COLLAB के लिए खुला है।✨💫 अपने सुसज्जित विचारों व शब्दों के साथ इस पृष्ठभूमि को सजायेंl✒️✒️ • PROFOUND WRITERS द्वारा दी गई इस चुनौती
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read moreAshish Mishra
मुरझाते पल भी बीत जाएंगे, कल फिर से नए पल आएंगे। माना आज अंधेरा ज्यादा है, मगर कल खिलखिलाती रोशनी संग लाएंगे। मत हो उदास गर साथ किसी का छूट जाए, क्योंकि इस जीवन के सफ़र में पथिक कई और आएंगे। यह COLLAB के लिए खुला है।✨💫 अपने सुसज्जित विचारों व शब्दों के साथ इस पृष्ठभूमि को सजायेंl✒️✒️ • PROFOUND WRITERS द्वारा दी गई इस चुनौती
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read moreAshish Mishra
तजुर्बा ज़िंदगी में बहुत ज़रूरी है, चाहे अच्छा हो या बुरा हर, मुश्किलों में डटे रहना ज़रूरी है। कभी परेशानियों से लड़कर तो कभी, हालातों में उलझकर सम्भलना सीखा है। तजुर्बा बहुत कुछ सिखाता है ज़िंदगी में, कभी अपनों में गैरों की तो कभी, गैरों में अपनों की पहचान करना। यह COLLAB के लिए खुला है।✨💫 अपने सुसज्जित विचारों व शब्दों के साथ इस पृष्ठभूमि को सजायेंl✒️✒️ • PROFOUND WRITERS द्वारा दी गई इस चुनौती
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read moreAshish Mishra
दो पंछी बैठकर सोचते हैं, कि अब घोंसला कहाँ बनाया जाए। जहाँ हम बेफ़िक्र होकर रह सकें, और हमें दर-बदर भटकना न पड़े। क्योंकि आज हर तरफ़ ये समझदार, इंसान एक घोंसला हटा कर दूसरा, घोंसला बनाते जा रहे हैं। न जाने ये कैसी समझदारी है, कि एक घर हटा कर दूसरा घर सजा रहे हैं। उन्हें अपने बचपन का वो घोंसला याद आता है, जहाँ वो खेलते कूदते बड़े हुए और, बड़े घोसले के लिए अपने घर को छोड़ आए कहीं। यह COLLAB के लिए खुला है।✨💫 अपने सुसज्जित विचारों व शब्दों के साथ इस पृष्ठभूमि को सजायेंl✒️✒️ • PROFOUND WRITERS द्वारा दी गई इस चुनौती
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