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virutha sahaj
~ माईने ग़जल के ~ कहतें हैँ सब ग़जल है कोशिश ,दुःख जताने की पर मैं कहती हूँ, ग़जल है कोशिश टूटे दिलों की आवाज सुनाने की। कहतें हैँ सब ग़जल पिरो देती है, आंसुओं को मोती में पर मैं कहतीं हूँ ,मोती भी सिसक जाती है ग़जल की साँसों में । ©virutha sahaj #माइने ग़ज़ल के
virutha sahaj
ज्यों पड़ती है बूंद कोई विमल पे....... वैसे ही इख़्तियार हुए मुझे माईने गजल के...... माईने गजल के......। ©virutha sahaj #माईने ग़ज़ल के
K L MAHOBIA
White लगी आग घर में उसे तो बुझा दो। बुझा दीप घर का उसे तो जला दो। कहां से चले थे कहां आ गए हम जगे तम कहर की खबर को छुपा दो। जहां में भले की करो बात हर-दिन इसी से जहां से , बुरे को मिटा दो। खुशी है जहां में न शिकवा शिकायत भली ज़िन्दगी है जहां फिर निभा दो। सज़ा क्या लिखा है उसे तुम मुझे भी लिखी तो नहीं है किसी को वफ़ा दो। मिटा जिंदगी इश्क में आदमी है। उसी आदमी का मुझे तुम पता दो। दवा से बड़ी चीज हमको मिली है। मिटे रोग उसका कि ऐसी दवा दो। ✍️ के एल महोबिया ©K L MAHOBIA #ग़ज़ल - के एल महोबिया
Kumar Manoj Naveen
अजीब दास्तां है सुनाए न बने, पर बिन कहे भी दिल कैसे रहें। बच्चे थे तब सोचते थे कब होंगे हम बड़े, अब सोचते है क्यों हुए हम बड़े? न होते बड़े,न होती जिम्मेदारी, रोजी-रोटी के संघर्षों से सदा होती दूरी। ना आफिस की होती चिंता, न बास शब्द कोई जानता? होती नही हमारी शादी, न होते बीबी- बच्चे, नहीं होती रोज किच-किच। घर में शांति होती। क्या नजारा होता? बस अपना ही राज होता। घर तब हमारा होता। मां-पापा, भाई-बहन सब साथ होते, एक-दूसरे संग हिल-मिल दिन बिताते। मां के हाथ की रोटी का स्वाद होता, पापा के डांट का बस अख्तियार होता। पर प्रकृति के नियमों पर जोर चलता कहां है? होता वही है जो विधना ने लिख दिया है। ***नवीन कुमार पाठक (मनोज)***** ©Kumar Manoj प्रकृति के नियम#
प्रकृति के नियम#
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