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Anil Ray
समस्त पहचान का अस्थायी अस्तित्व नाम-रूप तक भी माता-पिता द्वारा पाया.. क्या था मुझमें मेरा कुछ भी नही यार तुझसे मिलन में मेरा 'मैं' भी जैसे खो गया.. पूछना खुदा से मेरी 'तड़फ' को तुम क्यों कोई मुझसे मिलकर भी जुदा हो गया.. बनाकर परी पर कतरे गये बंदिशों में चारों ओर दीवारों से मर्यादा महल हो गया.. पाक इबादत इश्क़ में खुदा समझा था और देखो अब वो खुदा भी पत्थर हो गया.. अनिल अनल जलाती है मेरी रूह तक क्यों जिस्म -टुकड़ों का समाज भिन्न हो गया.? ©Anil Ray विचारार्थ लेखन.................✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 विवाह एक नापाक गठबंधन है चाहे इसे जो नाम दे कोई ? इसका जन्म नेकनीयत की भावना से नहीं बल्कि सुरक्ष