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Nilam Agarwalla
White दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है तो क्या जुदाई की राह हमवार हो रही है ज़रा सा मुझ को भी तजरबा कम है रास्ते का ज़रा सी तेरी भी तेज़ रफ़्तार हो रही है उधर से भी जो चाहिए था नहीं मिला है इधर हमारी भी उम्र बे-कार हो रही है शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है बस इक तअ'ल्लुक़ ने मेरी नींदें उड़ा रखी हैं बस इक शनासाई जाँ का आज़ार हो रही है यहाँ से क़िस्सा शुरूअ' होता है क़त्ल-ओ-ख़ूँ का यहाँ से ये दास्ताँ मज़ेदार हो रही है ये लोग दुनिया को किस तरफ़ ले के जा रहे हैं ये लोग जिन की ज़बान तलवार हो रही है शकील जमाली ©Nilam Agarwalla #गजल
Arora PR
White माना कि इस महफिल में शिरकत करने वाले चेहरे गमगीन और बुझे हुऐ दिख रहे है इसके बावजूद अगर महफ़िल खूबसूरती से सजायी जाये और थोड़े ठहाके गुजने लगे तो महफिल में नई जान फूकी जा सकती है और बुझे चेहरों पर मुस्कान भी लाइ जा सकती है ©Arora PR सजी हुई महफिल
सजी हुई महफिल #कविता
read moreSarkaR
White कंभक्त नशा ही तो है जो नहीं होता, बोतले खाली हो गयी अकेले महफिल में! ©SarkaR #महफिल
Arora PR
White आज तक़ मैंने कभी लिखी नहीं कोई ग़ज़ल या नज़्म.. और न ही मुझे लिखने का कोई तजुर्बा हासिल हुआ हैं पर अपने दर्द क़ो कभी कभी अपनी तन्हाई के किनारे बैठ कर गुनगुना कर अपने दिल की ख़ुशक महफ़िल क़ो आबाद करने की कोशिश जरूर कर लेता हूँ ©Arora PR ख़ुशक महफिल
ख़ुशक महफिल #कविता
read moreRaxx
अकेले ही महफ़िल खुद की सजानी पड़ती है यारो, फिर लोग आते हैं कारवां बनते चला जाता... ©Raxx #Nightlight महफिल
#Nightlight महफिल #विचार
read moreSunil Kumar Maurya Bekhud
वही शाम वही रात वही तारे हैं मगर मायूस दिल वही नजारे हैं लगा था कल जंग जीत कर आए आज बैठे हैं जैसे जिंदगी से हारे हैं मेरी जहां से खफा हो चांद गया गम मैं डूबे मिलते नहीं किनारे हैं गुल खिले खुशबू से घुट रहा है दम आज बेखुद हमें तड़पा रही बहारें हैं ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #गजल
Dr. Alpana suhasini
न जाने क्या ज़माना चाहता है, मेरी ख़ुशियां मिटाना चाहता है। मेरी मासूमियत को छीन कर क्यों, मुझे शातिर बनाना चाहता है. अभी कोई कमी बाक़ी है शायद, जो फिर से आज़माना चाहता है। मिटाकर तीरगी अब ज़िन्दगी से, उजाले में वो आना चाहता है। निगाहों से लगे सीधा जिगर पर, वो इक ऐसा निशाना चाहता है । परिंदे की है बस इतनी सी ख़्वाहिश, नशेमन फिर बसाना चाहता है। अल्पना सुहासिनी ©Dr. Alpana suhasini #गजल#गजल_सृजन #
Sunil Kumar Maurya Bekhud
गजल करवट बदल बदल कर क्यूं रात बितातें हैं इक नाम क्यों जमीं पर लिखतें हैं मिटाते हैं मालूम है डगर में लुट जातें हैं मुसाफिर गर लुट गए तो फिर क्यों अब शोर मचाते हैं कट कर पतंग कोई आती न लौट करके धागे में बांध फिर क्यूं खुशियों को उड़ाते हैं ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #गजल