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Stories related to महफिल में बार बार गजल

Mahesh Patel

सहेली... गजल... लाला....

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White सहेली......
आंखें उसकी सजल है..
बातें उनकी सरल है..
घूंघट में मिला हुआ चेहरा कमल है..
कैसे कहूं यारों..
वह गीत है वह मित भी है..
यह दर्द में डूबी हुई.. 
फिर कोई हमारी गजल है..
लाला..…..

©Mahesh Patel सहेली... गजल... लाला....

As. Bhardwaj

महफिल में चल रहीं थीं बुराई हमारी.....As.bhardwaj

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White महफिल में चल रहीं थीं बुराई हमारी,
हम पहुंचे तो बोले बहुत लंबी उम्र है तुम्हारी....🖤

©As. Bhardwaj महफिल में चल रहीं थीं बुराई हमारी.....As.bhardwaj

poet-Akash kumar

#गजल 7:30

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Poet Kuldeep Singh Ruhela

#lovelife में बेरोजगार होके तेरी महफिल में आया हूं कुछ नाश्ता वास्ता करवा देना में मोहब्बत का पैगाम लाया हूँ

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Unsplash में बेरोजगार होके 
 तेरी महफिल में आया हूं 
कुछ नाश्ता वास्ता करवा देना
 में मोहब्बत का पैगाम लाया हूँ

©Poet Kuldeep Singh Ruhela #lovelife में बेरोजगार होके 
 तेरी महफिल में आया हूं 
कुछ नाश्ता वास्ता करवा देना
 में मोहब्बत का पैगाम लाया हूँ

Mohan Sardarshahari

# गजल

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Unsplash दोस्तों से मुश्किल है हकीकत छुपाना 
जैसे हवा से अलग रवानी को रखना। 

जिंदगी के अनुभव बेशक अलग-अलग होंगे 
मुश्किल नहीं मगर एक दूजे की कहानी समझना। 

इशारों में समझाना बहुत कर लिया 
चलो दोस्तों से करते हैं वही व्यवहार बचकाना। 

यदि कभी कुछ सुनाना पड़े दोस्तों को 
बस याद उनकी एक-एक शैतानी दिलाना। 

मिलकर यदि किसी दोस्त से छलक जाए आंसू 
शाम को उड़ा देना उनको तेरे नाम के पैमाना। 

देखी होंगी दशकों में कई नायाब इमारतें तूने 
होना हो रूबरू जवानी से, बार-२ तेरे कॉलेज जरूर जाना।।

©Mohan Sardarshahari # गजल

Parasram Arora

पहली बार

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White आज तुम पहली बार  अदालत के
 पर र्कोटे मे अपना हलफिया  बयान दर्ज़ कराने आये हो

जो कुछ तुमने देखा और सुना था  सब सच सच बया कर देना 


इस जिंदगी का गणित अलग हैँ इसका फलसफा भी अलग हैँ 
आज तक तुमने सब कुछ दिमाग़ से सोचा था आज तुम अपने दिल से सोचना

©Parasram Arora पहली बार

Satish Deshmukh

गजल

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White वाटले होते मला की वाटिका आहे
जिंदगी सारी इथे शोकांतिका आहे

शेतमालाची फुकट बोली तुम्ही लावा
कास्तकाराला कुठे उपजीविका आहे

वाटते वाचून घ्यावे मी तुला आता
केवढी सुंदर तुझी अनुक्रमणिका आहे

भिमरायाचा उजळ माथा बघितल्यावर
वाटतो हा सूर्यही आता फिका आहे

बारशाचे एवढे कौतुक नको ना रे
जन्म माझा तेरवीची पत्रिका आहे

©Satish Deshmukh गजल
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