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INDIA CORE NEWS
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अंकुरनामा
उसको लगता है मुझे उसकी ही नजर लग जाती है इसलिए अक्सर वो मेरी नजर उतारा करती है। घुमा कर लौ सात बार मेरे ऊपर से फिर उसे अपनी चप्पल से मारा करती है लगा कर फिर काला टीका मेरे माथे पर फिर से छुप छुप कर मुझे निहारा करती है। ©अंकुरनामा #happypromiseday उसको लगता है मुझे उसकी ही नजर लग जाती है इसलिए अक्सर वो मेरी नजर उतारा करती है। घुमा कर लौ सात बार मेरे ऊपर से फिर उसे अपन
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
76th Mahatma Gandhi Punyatithi तानाशाही में पैरों की रफ्तार को रूकवाया गया*माजूर को चलवाया गया.... इतना हीं नहीं गूंगों को जुबां से बुलवाया गया, और बहरों को गिटार सुनवाया गया..... "शमा"अस्मिता के लुटेरों को*एजाज_ए_इकराम से नवाजा गया*आईन_ए _अदल को*ओहदे से उतारा गया... इतना ही नहीं*बेबाक सुखनवर को बेरोजगार से नवाजा गया,*लूले से सितार बजवाया गया.... #shamawritesBebaa ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #76thMahatmaGandhiPunyatithi #तानाशाही में पैरों की रफ्तार को रूकवाया गया*माजूर को चलवाया गया.....अपाहिज इतना हीं नहीं गूंगों को जुबां से ब
RV Chittrangad Mishra
अमरगढ़ की अमर गाथा चित्रांगद की कलम से खून से लतपथ ये है इतिहास अपने अमरगढ का, जिनको वर्णित करने में हर शब्द मेरे रो दिये है | है नमन उन वीरों को जो खून से सींचे अमरगढ़, और अमरगढ को अमर करने में खुद को खो दिये है | सन अट्ठारह सौ अट्ठावन तारीख अट्ठारह नवंबर, की बताने जा रहा हूं आंसू में डूबी कहानी | अंग्रेजों और देश के दीवानों का वो युद्ध भीषण, वीरों के लहू के रंग मे थी रंगी राप्ती की पानी | क्रूर अंग्रेजों ने जब बर्बरता से कहर ढाई, खौल उठा खून वीरों के हृदय का हिंदुस्तानी | बांध माथे पर कफन सेना फिर बल्लाराव जी की, बढ़ चली आगे छुड़ाने गोरों से अपनी गुलामी | जान का परवाह ना कर लड़ रहे थे वीर सैनिक, अंग्रेजों की गोलियों से आज इनका सामना था | हम जिएं या ना जिएं परवाह ना इस बात की थी, देश हो आजाद हर इक जुबां पर ये कामना था | देखना मुमकिन ही नही सोंचना भी जिसको मुश्किल, ऐसे हादसों सबने सीने से लगा लिया | हाथ को भी हाथ ना दिखाई दे वो अंधियारा, ऐसे में हाथों ने हथियारों को उठा लिया | घाट उतारा मौत के ग्रैफोर्ड कमाण्डर को वीरों ने, कब्र इसकी अमरगढ में आज भी इसकी निशां है | कर्नल कॉक्स और रोक्राफ्ट फिर सेना लेकर घेर लिया, सैनिकों को गोरों की बढ़ा गोलियों से सामना है | लड़ते लड़ते सैनिकों की सांस अब रूकने लगी थी, हाय रे क्या दृश्य होगा हो गया पतझड़ अमरगढ | देश के अस्सी दिवाने जान का बलिदान देकर, अमरगढ़ के नाम पर वो कर दिये खुद को समर्पण | जो बचे थे वीर कूदे जां बचाने राप्ती में, देख उनके काले बालों को गोरों ने मारी गोली | दे दिया वीरों ने अंतिम सांस भी इस अमरगढ को, देश की आजादी खातिर खून से खेले थे होली | है नमन उन मांओ को जिन आंचल में ना लाल लौटा, रह गया आंचल सिमट उस आंचल को शतशत नमन है | है नमन उस प्रेयसी को अपना जो सिंदूर खोई, ऐसी सूनी मांग को भी मेरा ये शतशत नमन है | नमन है उन बहन बेटियो को कि जिसने प्यार खोई, ऐसी राखी और लोरी रहित जीवन को नमन है | है नमन उनको कि जिनसे शौर्य है इस अमरगढ का, और अमरगढ को अमर करने में खुद को खो दिये है | है नमन उन वीरों को जो खून से सींचे अमरगढ़ और अमरगढ को अमर करने में खुद को खो दिये है | ©RV Chittrangad Mishra अमरगढ़ की अमर गाथा चित्रांगद की कलम से खून से लतपथ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मैं तो जीवन से हूँ हारा , ढूढे़ से न मिलता किनारा । लुढ़क रहा हूँ लोटे जैसा , कोई भी न होता सहारा ।। मैं तो जीवन से हूँ हारा .... कितने अच्छे दिन बचपन के , खेला कूदा खाया सोया । जो चाहा वो पा लेता था , बेशक थोड़ा सा था रोया ।। लेकिन इस पन में है देखा, कर लेते हैं सभी किनारा । मैं तो जीवन से हूँ हारा ... रिश्तों में भी प्रेम बसाया , बहुत जगत में नाम कमाया । टूटी पतंग तो देखा हमने , इसी धूल ने मुझे उठाया ।। चलो पढ़े रामायण गीता , वह ही सबको पार उतारा । मैं तो जीवन से हूँ हारा ..... जब तक कर्म बुरे था करता , हर पल हर दम सब था चोखा । तब जितना हमने सोचा था , आँख खुली तो सब था धोखा ।। वह भी न देते है सहारा , जिनको था प्राणों से प्यारा ।। मैं तो जीवन से हूँ हारा .... मैं तो जीवन से हूँ हारा , ढूढ़े से न मिलता किनारा । लुढ़क रहा हूँ लोटे जैसा , कोई भी न होता सहारा ।। ०९/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मैं तो जीवन से हूँ हारा , ढूढे़ से न मिलता किनारा । लुढ़क रहा हूँ लोटे जैसा , कोई भी न होता सहारा ।। मैं तो जीवन से हूँ हारा .... कितने
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
अहिंसा छन्द 212 122 2 राम नाम बोता जा । पार घाट होता जा ।। जन्म मृत्यु के धागे । भाग्य आपके जागे ।।१ लेख भाग्य होता है । कौन आज रोता है ।। झूठ मोह माया है । देख धूल काया है ।।२ खेल क्यों रचाया है । प्रीति आज माया है ।। दास जो बनेगा तू । दुष्ट से जलेगा तू ।।३ श्याम का सहारा है । राम भी हमारा है ।। पार वो उतारा है । कष्ट जो निवारा है ।।४ २२/११/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR अहिंसा छन्द 212 122 2 राम नाम बोता जा । पार घाट होता जा ।।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
अहिंसा छन्द 212 122 2 राम नाम बोता जा । पार घाट होता जा ।। जन्म मृत्यु के धागे । भाग्य आपके जागे ।।१ लेख भाग्य होता है । कौन आज रोता है ।। झूठ मोह माया है । देख धूल काया है ।।२ खेल क्यों रचाया है । प्रीति आज माया है ।। दास जो बनेगा तू । दुष्ट से जलेगा तू ।।३ श्याम का सहारा है । राम भी हमारा है ।। पार वो उतारा है । कष्ट जो निवारा है ।।४ २२/११/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR अहिंसा छन्द 212 122 2 राम नाम बोता जा । पार घाट होता जा ।।
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