Find the Latest Status about रशमी रथी from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, रशमी रथी.
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
Ravi Sharma
हर रथी को अपने रथ पे मान था है समर ही शेष बस ये भान था ।। क्रोध आंखों से टपकता दीखता बस समर में मृत्यु का ही गान था।। पक्ष और प्रतिपक्ष में स्वजन खड़े थे बस विधि का निष्ठुर, ये विधान था।। to be continued...... ©Ravi Sharma हर रथी को अपने रथ पे मान था है समर ही शेष बस ये भान था ।। क्रोध आंखों से टपकता दीखता बस समर में मृत्यु का ही गान था।। पक्ष और प्रतिपक्ष मे
Muskan Singh
हर मनुष्य भिन्न है,हर इक कुशल नहीं होगा श्राप विराजमान है, जीवन सरल नहीं होगा अंधकार है मेरा रथी, और मैं उसका सारथी प्रिय मेरे साथ भविष्य, उज्जवल नहीं होगा स्त्री हैं कई, मधुर वाणी शीतल जल समान परंतु तुम्हारे जितना कोई, चपल नहीं होगा मूल्य है तुम्हारा, किसी एक की ही दृष्टि में हर इक की दृष्टि में, तू बहुमूल्य नहीं होगा पुष्प की सुगंध ही दर्शाती है, प्रेम स्वभाव परंतु किसने कहा, पुष्प त्रिशूल नहीं होगा dimpal🥀 ©Muskan Singh हर मनुष्य भिन्न है,हर इक कुशल नहीं होगा श्राप विराजमान है, जीवन सरल नहीं होगा अंधकार है मेरा रथी, और मैं उसका सारथी प्रिय मेरे साथ भविष्य,
रजनीश "स्वच्छंद"
संस्कृति।। आदि से अनंत तक, डाकुओं से संत तक। मैं ही तेरा सार हूँ, कृष्ण से कबीर पंथ तक। रौशन हुआ मैं जल रहा, कम्पित धरा में चल रहा। मैं विष्णु और महेश हूँ, ये जग है मुझमे पल रहा। विष पीये मैं नीलकंठ, मथुरा काशी धाम हूँ। कृष्ण की उदंडता हूँ, राम का प्रणाम हूँ। भीष्म का प्रण हूँ मैं, वृहद समर का रण हूँ मैं। तूणीर हूँ अर्जुन का मैं, दाउ भीम का घन हूँ मैं। मैं प्रलय, मैं शांत धार, विजेता का मैं कंठ हार। मैं दवानल मैं प्रबल, मैं वेदश्लोक मैं हूं सार। मैं वेद भी पुराण भी, मैं हूँ रथी सुजान भी। कृष्ण सा मैं सारथी, वाणी भी मैं कृपाण भी। मैं सीख हूँ, मैं ज्ञान हूँ, आधुनिक भी और पाषाण हूँ। मैं द्वंद्व द्वेष क्लेश हूँ, मैं ही विधि और त्राण हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" संस्कृति।। आदि से अनंत तक, डाकुओं से संत तक। मैं ही तेरा सार हूँ, कृष्ण से कबीर पंथ तक। रौशन हुआ मैं जल रहा,
N S Yadav GoldMine
रोते हुए एश्वर्यशाली प्रज्ञा चक्षु राजा धृतराष्ट्र देखते ही आँसुओं से उनका गला भर आया पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅{Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व एकादश अध्याय: श्लोक 1-24 📒 वैशम्पायन उवाच वैशम्पायन जी कहते हैं – राजन ! वे सब लोग हस्तिनापुर से एस ही कोस की दूरी पर पहुँचे होंगे कि उन्हें शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य, द्रोणकुमार अश्वत्थामा और कृतवर्मा – ये तीनों महारथी दिखायी दिये, रोते हुए एश्वर्यशाली प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र देखते ही आँसुओं से उनका गला भर आया और वे इस प्रकार बोले-पृथ्वीनाथ महाराज ! आपका पुत्र अत्यन्त दुष्कर कर्म करके अपने सेवकों सहित इन्द्रलोक में जा पहुँचा ह। भरतश्रेष्ठ ! दुर्योधन की सेनासे केवल हम तीन रथी ही जीवित बचे हैं। 📒 आपकी अन्य सारी सेना नष्ठ हो गयी। राजा धृतराष्ट्र से ऐसा कहकर शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य पुत्र शोक से पीडित हुई गान्धारी से इस प्रकार बोले-देवि ! आपके सभी पुत्र निर्भय होकर जूझते और बहु-संख्यक शत्रुओं का संहार करते हुए वीरोचित कर्म करके वीरगति को प्राप्त हुए हैं।निश्चय ही वे शस्त्रों द्वारा जीते हुए निर्मल लोकोंमें पहुँचकर तेजस्वी शरीर धारण करके वहाँ देवताओंके समान विहार करते होंगे। उन शूरवीरों मे से कोई भी युद्ध करते समय पीठ नहीं दिखा सका है। किसी ने भी शत्रुके हाथ नहीं जोडे़ हैं। सभी शस्त्र के द्वारा मारे गये हैं। 📒 इस प्रकार आपके शत्रुओं का रण भूमि में संहार करके हम तीनों भागे जा रहे है। अब यहाँ ठहर नहीं सकते। क्योंकि अमर्ष में भरे हुए वे महाधनुर्धर वीर पाण्डव वैर का बदला लेने की इच्छा से शीघ्र यहाँ आयेंगे। यशस्विनि ! अपने पुत्रों के मारे जानेका समाचार सुनकर सदा सावधान रहनेवाले पुरुष प्रवर पाण्डव हमारा चरणचिन्ह देखते हुए शीघ्र ही हम लोगों का पीछा करेंगे। रानीजी ! उनके पुत्रों और सम्बन्धियों का विनाश करके हम यहाँ ठहर नहीं सकते; अत: हमें जाने की आज्ञा दिजिये और आप भी अपने मन से शोक को निकाल दीजिये। 📒 इस प्रकार युद्ध में जो शस्त्र द्वारा मृत्यु होती है, उसे प्राचीन महर्षि क्षत्रिय के लिये उत्तम गति बताते है; अत: उनके लिये आपको शोक नहीं करना चाहिये। महारानी ! उनके शत्रु पाण्डव भी विशेष लाभ में नहीं है। अश्वत्थामा को आगे करके हमने जो कुछ किया है, उसे सुनिये। भीमसेन ने आपके पुत्र को अधर्म से मारा है, यह सुनकर हम लोग भी पाण्डवों के सोते हुए शिविरमें जा पहुँचे और पाण्डव वीरों का संहार कर डाल। द्रु पद के पुत्र धृष्ट्द्युम्न आदि सारे पांचाल मार डाले गये और द्रौपदी के पॉंचों पुत्रों को भी हमने मार गिराया। 📒 (फिर वे धृतराष्ट्र से बोले) राजन् ! आप भी हमें जाने की आज्ञा प्रदान करें और महान् धैर्यका आश्रय लें, केवल क्षात्र धर्म पर दृष्टि रखकर इतना ही देखें कि उनकी मृत्यु कैसे हुई है ? भारत ! राजा से ऐसा कहकर उनकी प्रदक्षिणा करके कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्मामा ने मनीषी राज धृतराष्ट्र की ओर देखते हुए तुरंत ही गंगा तट की ओर अपाने घोड़े हाँक दिये। राजन् वहाँसे हटकर वे सभी महारथी उद्विग्न हो एक दूसरे से विदाले तीन मार्गों पर चल दिये। 📒 शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य तो हस्तिनापुर चले गये, कृतवर्मा अपने ही देशकी ओर चल दिया और द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने व्यास-आश्रम की राह ली। महात्मा पाण्डवों का अपराध करके भय से पीडित हुए वे तीनों वीर इस प्रकार एक दूसरे की ओर देखते हुए वहाँ से खिसक गये। राजा धृतराष्ट्र से मिलकर शत्रुओंका दमन करनेवाले वे तीनों महामनस्वी वीर सूर्योदयसे पहले ही अपने अभीष्ट स्थानों की ओर चल पड़े। राजन्! तदनन्तर महारथी पाण्डवों ने द्रोणपुत्र अश्वत्थामा-के पास पहुँचकर उसे बलपूर्वक युद्ध में पराजित किया। 📒 इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के अन्तर्गत जल प्रदानिक पर्व में कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा का दर्शनविषयक ग्यारहवॉं अध्याय पूरा हुआ। ©N S Yadav GoldMine #Aurora रोते हुए एश्वर्यशाली प्रज्ञा चक्षु राजा धृतराष्ट्र देखते ही आँसुओं से उनका गला भर आया पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅{Bolo Ji Radhey Radhey}
N S Yadav GoldMine
सभी शस्त्र के द्वारा मारे गये हैं इस प्रकार युद्ध में जो शस्त्रद्वारा मृत्यु होती है पढ़िए महाभारत !! 📒📒 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व एकादश अध्याय: श्लोक 1-24 राजा धृतराष्ट्र से कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा की भेंट और कृपाचार्य का कौरव-पाण्डवोंकी सेना के विनाश की सूचना देना। 📒 वैशम्पायन उवाच वैशम्पायनजी कहते हैं – राजन ! वे सब लोग हस्तिनापुर से एक ही कोस की दूरी पर पहुँचे होंगे कि उन्हें शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य, द्रोणकुमार अश्वत्थामा और कृतवर्मा-ये तीनों महारथी दिखायी दिये, रोते हुए एश्वर्यशाली प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र देखते ही आँसुओं से उनका गला भर आया और वे इस प्रकार बोले- पृथ्वीनाथ महाराज ! 📒 आपका पुत्र अत्यन्त दुष्कर कर्म करके अपने सेवकों सहित इन्द्रलोक में जा पहुँचा है। भरतश्रेष्ठ ! दुर्योधन की सेना से केवल हम तीन रथी ही जीवित बचे हैं। आपकी अन्य सारी सेना नष्ठ हो गयी’। राजा धृतराष्ट्र से ऐसा कहकर शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य पुत्र शोक से पीडित हुई गान्धारी से इस प्रकार बोले - देवि ! 📒 आपके सभी पुत्र निर्भय होकर जूझते और बहु-संख्यक शत्रुओं का संहार करते हुए वीरोचित कर्म करके वीरगति को प्राप्त हुए हैं। निश्चय ही वे शस्त्रों द्वारा जीते हुए निर्मल लोकों में पहुँच कर तेजस्वी शरीर धारण करके वहाँ देवताओंवके समान विहार करते होंगे। उन शूरवीरों मे से कोई भी युद्ध करते समय पीठ नहीं दिखा सका है। किसी ने भी शत्रुके हाथ नहीं जोडे़ हैं। 📒 सभी शस्त्र के द्वारा मारे गये हैं। इस प्रकार युद्ध में जो शस्त्रद्वारा मृत्यु होती है, उसे प्राचीन महर्षि क्षत्रिय के लिये उत्तम गति बताते है; अत: उनके लिये आपको शोक नहीं करना चाहिये। महारानी ! उनके शत्रु पाण्डव भी विशेष लाभ में नहीं है। अश्वत्थामा को आगे करके हमने जो कुछ किया है, उसे सुनिये। 📒 भीमसेन ने आपके पुत्र को अधर्म से मारा है, यह सुनकर हम लोग भी पाण्डवों के सोते हुए शिविरमें जा पहुँचे और पाण्डव वीरों का संहार कर डाल। द्रुपद के पुत्र धृष्ट्द्युम्न आदि सारे पांचाल मार डाले गये और द्रौपदी के पॉंचों पुत्रों को भी हमने मार गिराया। इस प्रकार आपके शत्रुओं का रणभूमि में संहार करके हम तीनों भागे जा रहे है। अब यहाँ ठहर नहीं सकता। 📒 क्योंकि अमर्ष में भरे हुए वे महाधनुर्धर वीर पाण्डव वैर का बदला लेने की इच्छाबसे शीघ्र यहाँ आयेंगे। यशस्विनि ! अपने पुत्रों के मारे जाने का समाचार सुनकर सदा सावधान रहने वाले पुरुष प्रवर पाण्डव हमारा चरण चिन्ह देखते हुए शीघ्र ही हम लोगों का पीछा करेंगे। रानीजी ! 📒 उनके पुत्रों और सम्बन्धियों का विनाश करके हम यहाँ ठहर नहीं सकते अत: हमें जाने की आज्ञा दिजिये और आप भी अपने मन से शोक को निकाल दीजिये। ( फिर वे धृतराष्ट्र से बोले -- राजन् ! आप भी हमें जाने की आज्ञा प्रदान करें और महान् धैर्य का आश्रय लें, केवल क्षात्र धर्मपर दृष्टि रखकर इतना ही देखें कि उनकी मृत्यु कैसे हुई है? 📒 भारत ! राजासे ऐसा कहकर उनकी प्रदक्षिणा करके कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्मामा ने मनीषी राज धृतराष्ट्र की ओर देखते हुए तुरंत ही गंगा तट की ओर अपने घोड़े हाँक दिये। राजन् वहाँ से हटकर वे सभी महारथी उद्विग्न हो एक दूसरे से विदा ले तीन मार्गों पर चल दिये। शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य तो हस्तिनापुर चले गये, 📒 कृतवर्मा अपने ही देश की ओर चल दिया और द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने व्यास-आश्रम की राह ली। महात्मा पाण्डवों का अपराध करके भयसे पीडित हुए वे तीनों वीर इस प्रकार एक दूसरे की ओर देखते हुए वहाँ से खिसक गये। 📒 राजा धृतराष्ट्र से मिलकर शत्रुओं का दमन करनेवाले वे तीनों महामनस्वी वीर सूर्योदय से पहले ही अपने अभीष्ट स्थानों की ओर चल पड़े। राजन्! तदनन्तर महारथी पाण्डवों ने द्रोणपुत्र अश्वत्थामा-के पास पहुँचकर उसे बलपूर्वक युद्धबमें पराजित किया। ।। राव साहब एन एस यादव।। 📒 इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्री पर्व के अन्तर्गत जल प्रदानिक पर्व में कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा का दर्शन विषयक ग्यारहवॉं अध्याय पूरा हुआ। पटौदी, गुरुग्राम, हरियाणा।। ©N S Yadav GoldMine #delhiearthquake सभी शस्त्र के द्वारा मारे गये हैं इस प्रकार युद्ध में जो शस्त्रद्वारा मृत्यु होती है पढ़िए महाभारत !! 📒📒 {Bolo Ji Radhey
N S Yadav GoldMine
हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 1-21 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय। ऐसा कहकर गान्धारी देवी ने वहीं खड़ी रहकर अपनी दिव्य दृष्टि से कौरवों का वह सारा विनाश स्थल देखा। गान्धारी बड़ी ही पतिव्रता, परम सौभाग्यवती, पति के समान वृत का पालन करने वाली, उग्र तपस्या से युक्त तथा सदा सत्य बोलने वाली थीं। पुण्यात्मा महर्षि व्यास के वरदान से वे दिव्य ज्ञान बल से सम्पन्न हो गयी थीं अतः रणभूमि का दृश्य देखकर अनेक प्रकार विलाप करने लगीं। 📜 बुद्धिमी गान्धारी ने नरवीरों के उस अदभूत एवं रोमान्चकारी समरांगण को दूर से ही उसी तरह देखा, जैसे निकट से देखा जाता है। वह रणक्षेत्र हडिडयों, केशों और चर्बियों से भरा था, रक्त प्रवाह से आप्लावित हो रहा था, कई हजार लाशें वहां चारों ओर बिखरी हुई थी। हाथी सवार, घुड़ सवार तथा रथी योद्धाओं के रक्त से मलिन हुए बिना सिर के अगणित धड़ और बिना धड़ के असंख्य मस्तक रणभूमि को ढंके हुए थे। 📜 हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा थ। सियार, बुगले, काले कौए, कक्क और काक उस भूमि का सेवन करते थे। वह स्थान नरभक्षी राक्षसों को आनन्द दे रहा थ। वहां सब ओर कुरर पक्षी छा रहे थे। अमगलमयी गीदडि़यां अपनी बोली बोल रही थीं, गीध सब ओर बैठे हुए थे। उस समय भगवान व्यास की आज्ञा पाकर राजा धृतराष्ट्र तथा युधिष्ठिर आदि समस्त पाण्डव रणभूमि की ओर चले। 📜 जिनके बन्धु-बान्धव मारे गये थे, उन राजा धृतराष्ट्र तथा भगवान श्रीकृष्ण को आगे करके कुरूकुल की स्त्रियों को साथ ले वे सब लोग युद्वस्थल में गये। कुरूक्षेत्र में पहुंचकर उन अनाथ स्त्रियों ने वहां मारे गये अपने पुत्रों, भाइयों, पिताओं तथा पतियों के शरीरों को देखा, जिन्हें मांस-भक्षी जीव-जन्तु, गीदड़ समूह, कौए, भूत, पिशाच, राक्षस और नाना प्रकार के निशाचर नोच-नोच कर खा रहे थे। 📜 रूद्र की क्रीडास्थली के समान उस रणभूमि को देखकर वे स्त्रियां अपने बहूमूल्य रथों से क्रन्दन करती हुई नीचे गिर पड़ीं । जिसे कभी देखा नहीं था, उस अदभूत रणक्षेत्र को देख कर भरतकुल की कुछ स्त्रियां दु:ख से आतुर हो लाशों पर गिर पड़ीं और दूसरी बहुत सी स्त्रियां धरती पर गिर गयीं। उन थकी-मांदी और अनाथ हुई पान्चालों तथा कौरवों की स्त्रियों को वहां चेत नहीं रह गया था। 📜 उन सबकी बड़ी दयनीय दशा हो गयी थी। दु:ख से व्याकुलचित हुई युवतियों के करूण-क्रन्दन से वह अत्यन्त भयंकर युद्वस्थल सब ओर से गूंज उठा। यह देखकर धर्म को जानने वाली सुबलपुत्री गान्धारी ने कमलनयन श्रीकृष्ण को सम्बोधित करके कौरवों के उस विनाश पर दृष्टिपात करते हुए कहा- कमलनयन माधव। मेरी इन विधवा पुत्र वधुओं की ओर देखो, जो केश बिखराये कुररी की भांति विलाप कर रही हैं। 📜 वे अपने पतियों के गुणों का स्मरण करती हुई उनकी लाशों के पास जा रही हैं और पतियों, भाईयों, पिताओं तथा पुत्रों के शरीरों की ओर पृथक- पृथक् दौड़ रही हैं । महाराज कहीं तो जिनके पुत्र मारे गये हैं उन वीर प्रसविनी माताओं से और कहीं जिनके पति वीरगति को प्राप्त हो गये हैं, उन वीरपत्नियों से यह युद्धस्थल घिर गया है। पुरुषसिंह कर्ण, भीष्म, अभिमन्यु, द्रोण, द्रुपद और शल्य जैसे वीरों से जो प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी थे, यह रणभूमि सुशोभित है। ©N S Yadav GoldMine #boat हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत