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somnath gawade
एखाद्या विषयात 'बाप' होण्यासाठी तो विषय 'आई' होऊन समजून घ्यावा लागतो. 😎😎 #विषय
अमोल राजेंद्र उबाळे
आपण नेहमी बोलतो की विषय का ? वाढला आपण हा विचार कधीच नाही करत की विषय च का निघला ✍️ अमोल उबाळे विषय
vs dixit
तिल तिल को मर रहे गरीब और किसान। पेट्रोल डीजल छू रहा आसमान। मँहगाई पर मचा है घमासान। बेरोजगारी भर रही उड़ान। शिक्षा का होता अवसान। गरीब ढूँढता अपनी जमीन और मकान। पर आजकल विषय है एनकाउंटर हिन्दू और मुसलमान। ©vs dixit #विषय
CalmKrishna
................... पसंदीदा विषय...! #तुम #विषय #लिखना #बात #विचार
rekha jain
चिंतनीय विषय स्वयं से मंथन करेंगे तो कुछ देर-सवेर सभी प्रश्न हल हो जाएंगे अगर दुसरो से बहस करोगे तो अनेकों नये प्रश्न खड़े हो जायेंगे। डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद ©rekha jain चिंतनीय विषय
rekha jain
विचारणीय विषय जिन लोगों की हंसी खूबसूरत होती है याद रखना कि उनके जख्म बहुत गहरे होते हैं। डॉ रेखा जैन ©rekha jain विचारणीय विषय
rekha jain
विचारणीय विषय पहले जब हम लोग सोते थे तो शरीर को आराम मिलता था और आज जब हम सोते हैं तो फोन को आराम मिलता है। डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद ©rekha jain # विचारणीय विषय
Vikas Sharma Shivaaya'
कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार । हलके हलके तिरि गए बूड़े तिनि सर भार !। कबीर कहते हैं कि जीवन की नौका टूटी फूटी है जर्जर है उसे खेने वाले मूर्ख हैं-जिनके सिर पर विषय वासनाओं का बोझ है वे संसार सागर में डूब जाते हैं–संसारी हो कर रह जाते हैं दुनिया के धंधों से उबर नहीं पाते –उसी में उलझ कर रह जाते हैं पर जो इनसे मुक्त हैं –हलके हैं वे तर जाते हैं-पार लग जाते हैं- भव सागर में डूबने से बच जाते हैं। 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' विषय वासना
Ajay Kumar Dwivedi
विषय - पर्यावरण प्रकृति स्वक्ष बनाने को, पर्यावरण बचाने को। आओं कदम बढ़ाये हम, मिलकर वृक्ष लगाने को। वृक्ष हमें देता है जीवन, मार उसे हम देतें हैं। मिठे मिठे फल देता वो, काट उसे हम देते हैं। ऐसा करना ठीक ना होगा, जीवन नर्क हो जायेगा। आने वाली पीढ़ी का, बच्चा - बच्चा पछतायेगा। मंहगी - मंहगी गाड़ी लेकर, हम खूब इतराते है। इच्छा अपनी पूरी करते, प्रदूषण फैलाते है। ठंड़क पाने को आतुर हम, एसी घर में रहते हैं। वो बचपन के बाग _ बगीचे, कहीं नहीं अब दिखते हैं। बड़े बुजुर्गों ने हमको तो, अच्छा मार्ग दिखाया था। वृक्ष लगाकर बागों में , गांवों को स्वर्ग बनाया था। कटवा कर वो बाग - बगीचे, हमनें पाप किया भारी। आक्सीजन की हुईं कमीं, अब तड़प रहीं दुनियां सारी। अब भी यदि न समझें हम तो, कोईं नहीं बच पायेगा। प्रदूषण बन काल हमें, एक क्षण में निगल जायेगा। अजय कुमार द्विवेदी ''अजय'' ©Ajay Kumar Dwivedi #अजयकुमारद्विवेदी विषय - पर्यावरण