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Richhpal Singh Kajla
हम जानवर है इशान नहीं, परन्तु हम आज मोहब्बत कि इस दुनीया मै, ईशानो से जयादा, वफादार होते है॥ ©Richhpal Singh Kajla #जंगल #जंगली #gurpurab
shivi voice
जंगल के फूल मुझे जंगली फूल पसंद है, क्योंकि वो जल्दी मुरझाते नही, और आजाद जंगल में आजादी से अपनी सुगंध को बिखेरते है उन्हे अभिमान नही होता अपने रंग बिरंगे और सुंदर होने का, ना ही वो किसी के बगीचे के गुलाम है अपनी सुरक्षा के लिए उन्हे माली की जरूरत नही, ना ही किसी की सुंदरता और इजहार का जरिया बनने की चेष्टा, वे समाज से अलग कुदरत का श्रृंगार करते है बिना किसी स्वार्थ के। मुझे भी जंगल के फूल की तरह बनना है, गुलाब से अलग, माली से दूर आजाद सुगंध, इक आजाद जंगल में।,, ©shivi voice #जंगलकेफूल
Sameer Mansoory
वो ख़ुशी के पल नही हैं अब.. इन मकानो के जंगलों में रहना नही है अब.. न वो बचपन की चहक,न वो बुढ़ापे का दुलार हर एक साथी घर से निकलता नही है अब.. #जंगलों_के_मकान...।।
#जंगलों_के_मकान...।।
read moremotivational writter Surendra kumar bharti
भयानक जंगल की कोफनाक दास्ताँ ☠️ डर का वो मंजर जो हर किसी की दिल की धड़कन रोक दे😰 ऐसा भयानक मंजर जो भी देख ले उसकी सांसे थम जाए😱 लेकर आ रहे है आपके लिए ऐसी ही दिल दहला देनी वाली कहानी बस थोड़ा सा इंतजार ना जाने कब शुरू हो जाये भयानक जंगल की दास्ताँ☠️ ©Surendra kumar bharti #जंगलकिडरावनिदास्ताँ #safarnama
#जंगलकिडरावनिदास्ताँ #safarnama #हॉरर
read moreVikas Sahni
जंगलों से जुदा ना आपको जुदाई की आग में त्याग; होश में आ ऐ मेरे दिल! जल्दी जाग। **** **** **** **** कर रहा है मनुष्य पूर्णतया खुद को जंगलों से जुदा ऐ खुदा! बचा बाग। **** **** **** **** मात्र मकान या दुकान ही नहीं बल्कि बगीचे बना, जितना खरीदा भू-भाग **** **** **** **** और मत पढ इस कविता को कभी अगर तुझे लगता है मेरा विचार नाग।। ...✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni #जंगलों_से_जुदा #leaf
Surya Rabari Sankhwas
#जंगल_के_उसूल_वही_जानते_है, #जिनकी_यारी_शेरों_के_साथ_होती_है #जंगल_के_उसूल_वही_जानते_है, #जिनकी_यारी_शेरों_के_साथ_होती_है Surya Rabari Sankhwas
#जंगल_के_उसूल_वही_जानते_है, #जिनकी_यारी_शेरों_के_साथ_होती_है Surya Rabari Sankhwas #शायरी
read moreBANDHETIYA OFFICIAL
आजकल बाल के साथ दाढ़ी नहीं बनती, पूछता है नाई,बनानी है दाढ़ी, कारण-रकम अलग से या शौक की बात, कल जाके नाखून, वैसे सैलून में काटे नहीं जाते, मगर कटे भी नाई से तो, सवाल सब काट दूं , पैरों के तो परे ही परंपरा से है, वजह--शादीशुदगी, खैर, नाखून सब काट दूं, हाथों की उंगलियों की ही सही, शौक तो यह भी चर्राया- बड़े नाखून एक-दो रख लें, फिर कोई क्यूं पूछे- नाखून क्यूं बढ़ते हैं, तुर्रा ये- पैसों के पीछे मनुष्य का जंगलीपन बढ़ गया है, हक मारने की मन-मंशा। ©BANDHETIYA OFFICIAL जंगलीपन शहरी आदमी में ! #Life
जंगलीपन शहरी आदमी में ! Life #जानकारी
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