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Neel
प्रेम पर ग्रंथ एक लिख दूं या कह दूं अनगिनत किस्से, प्रेम से इतर क्या है यहां, कितने हैं अनछुए हिस्से। कोई आंखों से पढ़ता है, कोई होठों से गढ़ता है, कोई हाथों की नरमी से, दिल की हर बात कहता है। कोई कहकर भी न समझे, कोई जाने अनकहे ही, कोई चाहे न रहकर साथ, कोई पूजे बिन मिले ही। प्रेम की न कोई भाषा, प्रेम की न कोई बोली, जिसने मन राम बन साधा, सीता बन वो उसकी हो ली। प्रेम अनवरत बहता झरना, प्रेम पावन गंगा- यमुना, प्रेम सा कुछ पवित्र न जग में, प्रेम के जैसा दूजा सम ना। कितना कुछ कह चुके हैं लोग, कितना कहना अभी बाकी, प्रेम पर कितना कुछ लिख दूं, कितना लिखना अभी बाकी। प्रेम पर ग्रंथ एक लिख दूं, या कह दूं अनगिनत किस्से, प्रेम से इतर क्या है यहां, कितने हैं अनछुए हिस्से।। 🍁🍁🍁 ©Neel प्रेम ग्रंथ 🍁
Jaymala Bharkade
व्यवस्थेला कधी पाझर फुटेल !! माय हारणी मया बापाची ही काळी धरती माय वावराला काटे कुपाटे लावून राबे रात्रं-दिन संपत्ती काय तर म्हणे मई बैलाची जोडी लय हाय बैल गाडी हाकतो राजाच्या छाताडावणी कुणात हिम्मत नाय बाप्पा मया शेतकरी बापवणी ऊना तानात राबून नांदे झोपडीत महलावानी शेतकरी करे कष्टाने घामाचं सोन कधी उनाने बेजार कधी पुराने बेहाल उभा संसार सारं निसर्गाचं हाती किती कष्ट करे.. याच अंदाज नाय !! जगले कित्येक मया बापाच्या भरोशी व्यापारी तर त्यांनीच पोसले खरे तरी आता हतबल झाला कसा शेतकरी म्हणे पेरणी ला घेतलेली कर्ज कस फेडू ? निराधार कसा झाला हा उभ्या जगाचं पोशिंदा म्हणे महागाई फार, नाय भाव मालाला या व्यवस्थेला कधी पाझर फुटेल !! ©Jaymala Bharkade Farmer..life 💔 & The entire system..which make him depressed 🥲 #व्यवस्थेला कधी पाझर फुटेल
Sangeeta Kalbhor
बाकी असणारचं आहे.. वाटतात गाडून टाकाव्यात मनातल्या भावना अगदी खोल खोल...त्या कोणाच्याही नजरेस येऊच नयेत...किंबहुना मीही कधी त्या उकरायच्या म्हंटल्या तरी त्याचे माणिकमोती बनावेत आणि यावे त्या विचारांनी आपल्या दुसऱ्या रुपात... हे असे म्हणण्या पाठीमागचे कारण असे आहे ना की काही भावना उगाचंच आपले मानसिक स्वास्थ्य खराब करतात... काही काही देणेघेणे नसताना... येते मरगळ मनाला आणि नंतर शरीराला आणि मग एकूणच जगण्याला..तेव्हा मग नको नको जीव होतो... शांत व्हायला आणि त्यातून बाहेर पडायला मनाची आणि विचारांची कोण मशागत करावी लागते काय सांगू... आणि मला तर या विचारांचा आणि भावनांचा जाम त्रास होतो...अगदी नको नकोसा करणारा.. एक ठराविक वेळ आणि काळ जाईपर्यंत हे विचारांचे गारुड नाही हटत ध्यान पटलावरुन... सारखे आपले तेचं तेचं आठवून आणि साठवून होतो त्रागा जो कधीकधी मलाही कळत नाही का आणि कशासाठी... तसं पाहिले तर या जीवसृष्टीमध्ये कोण कोणाला समजून घेते हो...अगदी जीवातला जीव जरी काढून ठेवला तरी एखाद्या दगडाला तो काय समजणार? निर्दयी त्या जीवाला मारेल ठोकर आणि म्हणेल... " बसं...की अजून काही' ' अशा वेळेस हा आपला मुर्खपणा असतो तो कळतो आपणास पण जेव्हा जीव हेका धरतो ना तेव्हा सगळ्या जाणीवा आणि विचारांना तिलांजली मिळालेली असते.. शहाण्यातला शहाणा आणि लहाणातला लहाणही या मनाच्या आणि जीवाच्या पुढे गुडघे टेकवतो.. स्वतःला अपराधी मानतो...हताश होतो... हे थोडे अधिक प्रत्येकाच्या बाबतीत झालेले असते...असावे... मग यावर उपाय काय तर मनावर लगाम घालायचा ...हासूड मारायचा आणि तरीही विचार नाहीत थांबले तर सरळ वेसन घालायची... जरा जरी इकडे तिकडे विचार किंवा भावना झाली की लगेचच इकडून दोर कसायचा...जाम...म्हणजे लागेल ओढ आणि थांबेल विचार रुपी जनावर..तिथल्या तिथे आणि राहील शांत जिथे आपल्याला हवे असेल... मला तरी असे वाटते की आपण आपले असतोच कुठे जेणेकरून आपण झोकून द्यावे एखाद्या भावनेत आपल्याला... अनेक नात्यांची गुंफण बनली की एक अख्खं आयुष्य आपल्याला मिळते...महत्प्रयासाने.. काय अधिकार असतो आपला आपल्यावर... नक्कीच नाही... जेव्हा केव्हा येतील भावनांचे ढग एकवटून तेव्हा आवश्यक असेल तर त्या ढगांना होऊ द्यावे रिक्त मनसोक्तपणे... कुठलाही आणि कोणाचाही विचार न करता जावे आपण आपल्या अंतःकरणाच्या प्रांगणात...प्यावे वारे आणि व्हावे टपोरे थेंब...सर्वांगावरुन अलगद ओघळणारे आणि तनामनाच्या संपूर्ण जाणीवांना नखशिखांत मुग्ध करणारे... व्हावा आपणच आपला सखा आणि लावावे पळवून दुःखा..... जमेल का हे मला तरी जे मी माझ्या लेखणीतून स्त्रवू दिलेय.... कदाचित...नव्हे ...नक्कीच होईल... आताच पहा ना माझी भावनांची उतरंड बरीच वरपर्यंत रचत चालली होती पण जसजसा मी उतरंडीच्या पहिल्या गाडग्याचा विचार केला आणि पाहिले आत तर खरंच काही नाही सापडले हो...तिथे केवळ रिक्त पोकळी होती जिच्यात मला हवे ते भरता येईल अशी....असेच वरच्या प्रत्येक गाडग्यात आढळले... मग मी प्रत्येक गाडग्याचा विचार केल आणि भरुन टाकले मला घडविणाऱ्या विचारांनी... आता ना कुठला विचार ना कुठली भावना... आता आहे फक्त नव्याने आपल्याशा केलेल्या भावना आणि त्यांना जगविण्यासाठी स्वतःला जगविण्याचा अट्टाहास..... बाकी असणारच आहे लेखणीत नेहमी मी माझी..... गढलेली...दडलेली आणि वेढलेली..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #Hope बाकी असणारचं आहे.. वाटतात गाडून टाकाव्यात मनातल्या भावना अगदी खोल खोल...त्या कोणाच्याही नजरेस येऊच नयेत...किंबहुना मीही कधी त्या उकरा
Dk Patil
N S Yadav GoldMine
भगवान राम को विष्णु के सबसे महत्वपूर्ण अवतारों में से एक माना जाता है:- जानिए और रोचक कथा !! 🌱🌱{Bolo Ji Radhey Radhey} मर्यादा पुरुषोत्तम राम:- 🌌 भगवान राम या श्री रामचंद्र भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। वह हिंदू महाकाव्य रामायण के मुख्य पात्र हैं, जिन्होंने लंकापति रावण का वध किया था और उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से जाना जाता है। राम हिंदू धर्म के कई देवताओं में से एक हैं और विशेष रूप से वैष्णव धर्म के लोग राम की को ही परमेश्वर मानते हैं। उनके जीवन पर आधारित धार्मिक ग्रंथ और शास्त्र दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया की कई संस्कृतियों में एक प्रारंभिक घटक रहे हैं। कृष्ण के साथ, राम को विष्णु के सबसे महत्वपूर्ण अवतारों में से एक माना जाता है। श्रीराम का जन्म कथा:- 🌌 राजा दशरथ की 3 पत्नियाँ थीं, कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा। अपनी तीनों पत्नियों से संतान पाने में असफल रहने के बाद, उन्होंने पुत्रकामेष्टि यज्ञ (पुत्रों को जन्म देने के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान) किया। इससे, अनुष्ठान के अंत में खीर का एक बर्तन प्राप्त किया गया था। कहा जाता है कि कौशल्या ने इसे एक बार लिया और राम को जन्म दिया, कैकेयी ने एक बार भरत को जन्म दिया और सुमित्रा ने इसे दो बार लिया और इसलिए उन्होंने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। इसी से अयोध्या के राजकुमारों का जन्म हुआ। भगवान राम की एक बड़ी बहन, शांता, दशरथ और कौशल्या की बेटी थी। जय श्री राम जी:- मर्यादा पुरुषोत्तम राम की पत्नी और पुत्र:- 🌌 हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन भगवान राम का विवाह सीता से हुआ था। भगवान राम और उनकी पत्नी सीता के दो जुड़वां बेटे लव और कुश थे। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम की मृत्यु के बाद, यह उनके बड़े बेटे कुश थे, जिसे नया राजा बनाया गया था। श्राम के नाम का मतलब:- 🌌 कहा जाता है कि भगवान राम का नाम रघु वंश के गुरु वशिष्ठ महर्षि द्वारा दिया गया था। उनके नाम का एक महत्वपूर्ण अर्थ था, क्योंकि यह दो बीज अक्षरों से बना था - अग्नि बीज (रा) और अमृत बीज (मा)। जबकि अग्नि बीज ने उनकी आत्मा और शरीर को महत्वपूर्ण बनाने के लिए सेवा की और अमृत बीज ने उनको सारी थकान से उबार दिया। 🌌 पुराणों में लिखा है कि दुष्ट रावण को हराने के बाद, राम ने अपने राज्य अयोध्या पर 11,000 वर्षों तक पूर्ण शांति और समृद्धि का शासन किया। 🌌 कहा जाता है कि एक बच्चे के रूप में, भगवान राम ने एक बार अपने खिलौने को चंचलता से फेंक दिया और इसने मन्थरा की पीठ पर चोट की। मंथरा ने कैकेयी के माध्यम से अपना बदला लिया और भगवान राम को 14 साल के वनवास पर भेज दिया। मृत्यु के समय हनुमान को भेज दिया था नागलोक:- 🌌 कहा जाता है कि श्रीराम ने मृत्यु के वक्त हनुमान को अलग करने के लिए अपनी अंगूठी को फर्श में आई दरार में डाल दिया था और हनुमान जी से उसे लाने के लिए कहा था। जब हनुमान नीचे गए तो वह नागों की भूमि में पहुंच गए और राजा वासुकी से राम की अंगूठी मांगी। राजा ने उन्हें एक अंगूठियों के विशाल पहाड़ को दिखाते हुए कहा कि वह अंगूठी ढूंढ लें। जब बजरंगबली ने पहली अंगूठी उठाई वह भी श्री राम की थी और बाकी सभी श्रीराम की ही थी। तब राजा वासुकी ने उन्हें समझाया कि जो भी पृथ्वीलोक पर आता है उसे एक दिन सबकुछ छोड़कर जाना ही पड़ता है। भगवान विष्णु के 1000 नामों में से 394वां नाम है:- राम. 🌌 भगवान राम का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था, जिसकी स्थापना भगवान सूर्य के पुत्र राजा इक्ष्वाकु ने की थी। इसीलिए भगवान राम को सूर्यवंशी भी कहा जाता है। विष्णु सहस्रनाम नामक पुस्तक में भगवान विष्णु के एक हजार नामों को सूचीबद्ध किया गया है। इस सूची के अनुसार, राम भगवान विष्णु का 394 वां नाम है। 14 साल तक नहीं सोए थे लक्ष्मण:- 🌌 कहा जाता है कि राम और सीता की रक्षा के लिए, लक्ष्मण को 14 साल तक नींद नहीं आई! यही कारण है कि, वह गुदाकेश के रूप में जाने जाते हैं, जो कि नींद को हराने वाला व्यक्ति था। इसके बजाय, लक्ष्मण की पत्नी, उर्मिला जो अयोध्या में थी, 14 साल तक सोती रही, क्योंकि उन्होंने अपनी और लक्ष्मण के हिस्से की नींद को पूरा किया था। उर्मिला रामायण की कहानी में एक कम ज्ञात चरित्र थी। लंकापति रावण को मिला था श्राप:- 🌌 पौराणिक मान्यतानुसार, भगवान शिव के द्वारपाल नंदी ने रावण को एक बार भगवान शिव से मिलने से रोक दिया। रावण ने नंदी के प्रकट होने का मजाक उड़ाया और इससे नंदी नाराज हो गए। फिर उन्होंने रावण के राज्य को शाप दिया, लंका को बंदरों द्वारा नष्ट कर दिया जाएगा। यह शाप तब सच हुआ जब हनुमान ने लंका को जलाया। युद्ध जीतने के लिए रावण ने किया था यज्ञ:-🌌 कहा जाता है कि लंकापति रावण ने युद्ध जीतने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया। तब राम जी ने बाली के पुत्र अंगद की मदद मांगी और लंका में अराजकता पैदा करने की मांग की। लेकिन रावण तब भी टस से मस नहीं हुआ और यज्ञ करता रहा। फिर अंगद ने रावण की पत्नी मंदोदरी के बाल खींचने शुरु किए ताकि रावण यज्ञ से उठ जाए और यज्ञ अधूरा रह जाए। शुरुआत में रावण स्थिर रहा लेकिन जब मंदोदरी ने उससे मदद की गुहार लगाई तो उसे यज्ञ छोड़ दिया। एन एस यादव।। ©N S Yadav GoldMine #Holi भगवान राम को विष्णु के सबसे महत्वपूर्ण अवतारों में से एक माना जाता है:- जानिए और रोचक कथा !! 🌱🌱{Bolo Ji Radhey Radhey} मर्यादा पुरुषोत
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} 🎆 पूजा का किसी भी धार्मिक व्यक्ति के जीवन में बहुत अधिक महत्व होता है। कोई भी व्यक्ति अपने किसी ईष्ट को, अपने किसी देवता को, किसी गुरु को मानता है, तो वह उनकी कृपा भी चाहता है। वह चाहता है कि उसके ईष्ट, देवता हमेशा उसके साथ रहें, गुरु का उसे मार्गदर्शन मिलता रहे। इसी कृपा प्राप्ति के लिए जो भी साधन या कर्मकांड अथवा क्रियांए की जाती हैं, उन्हें पूजा विधि कहते हैं। धर्मक्षेत्र के अलावा कर्मक्षेत्र में भी पूजा का बहुत महत्व है इसलिये काम को भी लोग पूजा मानते हैं। 🎆 जिस प्रकार हर काम के करने की एक विधि होती है, एक तरीका होता है, उसी प्रकार पूजा की भी विधियां होती हैं, क्योंकि पूजा का क्षेत्र भी धर्म के क्षेत्र जितना ही व्यापक है। हर धर्म, हर क्षेत्र की संस्कृति के अनुसार ही वहां की पूजा विधियां भी होती हैं। मसलन मुस्लिम नमाज अदा करते हैं, तो हिंदू भजन कीर्तन, मंत्रोच्चारण हवन आदि, सिख गुरु ग्रंथ साहब के सामने माथा टेकते हैं, तो ईसाई प्रार्थनाएं करते हैं। इस तरह हर देवी-देवता, तीज-त्यौहार आदि को मनाने के लिए, अपने ईष्ट - देवता को मनाने की, खुश करने की अलग-अलग पद्धतियां हैं, इन्हें ही पूजा-पद्धतियां कहा जाता है। 🎆 जिस प्रकार गलत तरीके से किया गया कोई भी कार्य फलदायी नहीं होता, उसी प्रकार गलत विधि से की गई पूजा भी निष्फल होती है। जिस प्रकार वैज्ञानिक प्रयोगों में रसायनों का उचित मात्रा अथवा उचित मेल न किया जाये, तो वह दुर्घटना का कारण भी बन जाते हैं, उसी प्रकार गलत मंत्रोच्चारण अथवा गलत पूजा-पद्धति के प्रयोग से विपरीत प्रभाव भी पड़ते हैं, विशेषकर तंत्र विद्या में तो गलती की माफी नहीं ही मिलती। ये कर्म काण्ड है, और भगवान श्री कृष्ण की मन से की गई भक्ति सर्वोत्तम और सर्वोपरि तथा सर्वसश्रेष्ठ हैं।। ©N S Yadav GoldMine #bachpan {Bolo Ji Radhey Radhey} 🎆 पूजा का किसी भी धार्मिक व्यक्ति के जीवन में बहुत अधिक महत्व होता है। कोई भी व्यक्ति अपने किसी ईष्ट को, अप
bhim ka लाडला official
Sangeeta Kalbhor
आठवून बघ आठवतय का तुला मी तक्रार केल्याची.. हो ,नाही असं नाही...केली असेल पण ती फक्त आणि फक्त तुझ्या सहवासात राहण्यासाठी ...बाकी नसतेच रे तुझ्याकडून मला काही हवं असणं.. आणि सांग ना..का असायला हवं काही तुझ्याकडून मला.. असंही आपलं शब्दांचं नातं..शब्दाशब्दांनी फुललेलं आणि शब्दांपुरतचं उरलेलं.. तसा मी माळलाय श्वास माझ्या श्वासात तुझा.. पण..पण...तुला हे कसे कळावं.. आणि तुला कळून यायला तरी मी कुठे हट्ट केलाय.. ठरवलेच होते तसेच आणि तसेच वागतेय मी.. शब्दांतून जगतेय तुला..शब्दांतूनच जगवतेय मला.. तक्रार..सांग ना कुठल्या गोष्टीची करु... तू ना कधी भेटलास मला ना कधी भेटणार... निर्विकार असं एक रुप तुझं जे शब्दाशब्दात मला गवसत..त्याकडे कशी बरं तक्रार मी करायची.. मला तरी नाही रे जमणार...मग काहीही झाले तरी.. तू मला तुझी मानतोस की नाही या फंद्यातही नाही पडायचे मला..कारण त्याने माझ्यात काहीही फरक पडणार नाही...तसूभरही... मी तुला मानते..मी तुला माळते एवढे बस आहे माझ्यासाठी आणि तुझ्यावर असलेल्या प्रीतीसाठी.. नकोचं भेट आणि नकोचं बोलणं थेट... शब्द आहेत की भाव व्यक्त करायला आणि तुझ्यावरचे प्रेम व्यक्त करायला... आताशा मला कसलाही त्रास होत नाही रे..कसलाचं.. तू मला block कर अथवा unblock मी मस्त असणार आहे माझ्या विचारात ..माझ्या शब्दात ..ज्या शब्दात तू असणार आहेस.. तू नसूनही असणारचं आहेस शब्दात तेव्हा देहरुपाने असाणाऱ्या अस्तित्वापेक्षा निश्चल ,निर्विकार रुप मला भावतं..फक्त मी मग्न आहे ना याला महत्त्व आणि हेचं बघ माझं तत्व.. नको असताना झाली प्रीती आणि बसले मी चित्त तुला अर्पूण... आता यायला हवी अविस्मरणाची लाट जी मला माझेपण हरवून दूर घेऊन जाईल...क्षितीजापल्याड..जिथे जाणीवचं हरवून जाईल... माझी नसण्याचीही.. आणि उरणार नाही मग त ही तक्रारीचा जो तुझी तक्रार करु शकेल... कळत नकळत ..... पण ऐक हं... तू कितीही दूर गेलास किंवा लपलास कुठेही..तरी नाही कमी व्हायची माझी प्रीती जी माझ्यावरही नाही होऊ शकणार माझ्याच्याने कधीचं... कळेल का एवढे रे तुला..मी न सांगता न मागता देशील का माझ्या शब्दात माळण्याचा हक्क...जो मला हवा आणि हवाचं आहे....कायमस्वरूपी..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #ballet आठवून बघ आठवतय का तुला मी तक्रार केल्याची.. हो ,नाही असं नाही...केली असेल पण ती फक्त आणि फक्त तुझ्या सहवासात राहण्यासाठी ...बाकी नसत