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Rashmi painuly
"बसंत ऋतु" छटा -अन्ध कुहासा बडा घनेरा,रश्मि व्योम अम्बर से जागे पर्वत पर लुक-छुप करते बदरा,शुभ आशीष धरा से मांगे तोय संगिनी बनी नदियां संग,छल-छल चल-छल ध्वनि गाजे मिट्टी की खुशबू से महके,वन-वृक्ष भूमि प्रिय अति लागे प्रीत-रस खिले उपवन में, मधुर-मधुर करे गुंजन सैर करे है पंख पसारे,मिचे कोई अंखियन मृग नैना से मयूर वाटिका,झूम-झूम कर नाचे नवबेला की सुन्दर छवि को,देख प्रकृति मन भावे ताज इन्द्र -धनुष का नभ पे, सतरंगी सा चोला पीली-पीली सरसों की चादर पे,करता कोई ठिठोला श्रृंगार करे है पुष्प वसुंधरा,प्रेम पड़े है बन्धन स्वागत में देव खड़े कहे,बसन्त ऋतु का है आगमन । 💞 Rashmi painuly 💞 बसन्त ऋतु
CalmKazi
खुला है बसंत का शटर, बिक रही राहतें । जमा करें थोड़ी उदासी, खुशियाँ किराये पर मिलती हैं । #बसंत #बसन्त #ऋतु #CalmKaziWrites #YQBaba #YQDidi #हिंदी #कविता #NaPoWriMo #Poetry #Poem #5345Poem
Kumar Manoj Naveen
**** बसन्त चितचोर ****** माघवा महिनवा में दिन सुसूमाए, ठीक भोरहरिया तन सिहरावे, कुहूके कोयलिया भोरे-भोर, ए राजा देखि,आईल बसन्त चितचोर। मनवा में उठेला हिलोर, ए राजा देखि,आईल बसन्त चितचोर। पीयर-पियर तेलहन के फूलवा फुलाईल, पीपरा आ निमीया में टूसा बा आईल, सुनर लउके चारो-ओर, ए राजा देखि,आईल बसन्त चितचोर। आम मोजराईल, महुआ कोचियाईल, बगिया में फुलवा खूबे कोढियाईल, भईल प्रकृति के रुपवा बेजोड़ , ए राजा देखि,आईल बसन्त चितचोर। बगयिचा में नाचे खूबे मोर, ए राजा देखि,आईल बसन्त चितचोर। ****नवीन कुमार पाठक **** ©Kumar Manoj बसन्त
REETA LAKRA
ऋतुराज न ग्रीष्म वर्षा शरद न शिशिर और न हेमंत, करने शीत का अंत आ रहा है वसन्त। भारत की छह ऋतुओं में से एक, आकर अपना सौंदर्य देती है फेंक। सर्दी हो जाती है कम, मौसम हो जाता सुहावन। हर पेड़ पर नये पत्ते लगते, आम तो सीधे बौराने लगते। अलसी सरसों के खेत पीली चादर लेते ओढ़, ऋतुराज लाता फलराज, करता रंगों से सराबोर। बसन्त पंचमी मनती, महाशिवरात्रि मनती, राख बुधवार से उपवास परहेज़ की शुरूआत होती और मनती है रंग पंचमी, धुलेंडी। बसन्त के प्रादुर्भाव पर क्या-क्या असर होता है देखो.. धरा पर इसके अवतरण पर कहाँ-कहाँ असर होता है देखो.. हवा सनसनाती, प्रकृति झूमती, वृक्ष नव पल्लव का पालना लगाते, रंग बिरंगे फूलों के परिधान बनाते। बयार अपनी ठंडक का त्याग करती, कोयल फिर अपना राग सुनाती, जन वासन्ती पोशाक धारते, वादन - गायन - नर्तन में विभोरते। पुष्पों की आकर्षक छटा गमों को देती है घटा। ठंड की न रहती कंपकंपी, न होता गर्मी का पसीना, दिवस अपनी लम्बाई बढ़ाता, दिवाकर अपना ताप बढ़ाता। जमी झीलें पिघलने लगतीं, बहतीं धरा को भिगोने लगतीं। प्राकृतिक सौंदर्य में योगदान देती, रंग बिरंगी तितलियाँ मंडरातीं। नभ का नीलापन अलसाता जीवन आंगन में उल्लास छलकता। हो गया बसन्त से अनुराग अनायास, चलूँ मैं बैठूँ उसके पास, राजाधिराज ऋतुराज बसन्त कहीं न जाए भाग - कहीं न जाए भाग।। ४३/३६५@२०२१ मधु ऋतु भी कहलाता है यह बसन्त। कई परिवर्तन होते हैं। सबके लिए अनन्त आनन्द लेकर आ रहा है बसन्त। #बसन्तमधुऋतु G yreeta-lakra-9mba
Vikas Jain
जिस प्रकार मनुष्य जीवन में यौवन आता है उसी प्रकार बसंत इस प्रकृति का यौवन है । "बसंत ऋतु" और माँ सरस्वती के पावन पर्व पर सभी मित्र जनो को हार्दिक सुभकामना । बसन्त विहार खेरोट www.hindisugam.com बसन्त पर्व
Shashikant
परछाईयों की दोस्ती में ,किरदार अधूरा रह गया । बर्फ का टुकडा़ धूप में ,पानी बन कर बह गया।। ©SAURABH #ख्वाब_का_इश्क #बसन्त
Shashikant
कोहरा छटा तो चाँद छत पर आया बसन्त फिर मेहमान बनकर आया शिकायत ना रहे इन ओस की बूँदो से ठण्ड फिर तापमान बनकर आया ©SAURABH #ख्वाब_का_इश्क #बसन्त