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Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
Jogendra Singh writer
आपके अनुसार Nojoto का पर्यायवाची क्या है Answer in comment section ©Jogendra Singh Rathore 6578 nojoto ka पर्यायवाची #Light
pramod malakar
मां के चरणों का मैं धूल हूं , पिता के सपनों का मैं सुगंधित फूल हूं । कई रंग भर दिए हैं मुझमें उन्होनें , पंखुरी नोच कर ले गए मिलकर कई रुहों ने । बची सिर्फ आत्मा है मेरे तन में , घृणा बहुत है पर खुशी भरा है मेरे मन में । बिखरे टुकड़े जोड़ रहा हूं चुपचाप बैठ कर , मन में शुद्ध विचार रखा हूं अब तक सैतकर। पत्थर बहुत उछलते देखा है मैंने दिल पर , कई कांटे भी आकर चुभते हैं मेरे शरीर पर । अंधेरा बहुत है दुनिया रूपी इस कमरे में , कठोरता भी बहुत है मेरे हर अंग के चमड़े में । मैं शिव के चरणों का रक्षा कवच त्रिशूल हूं , मैं प्रमोद मां कौशल्या के चरणों का धूल हूं।। बेसुध पड़ा हूं मैं मानवता के जर्जर सोच पर , दिल दहलता नहीं थोड़ा इंसानियत के खरोंच पर। मेरा बचपन प्यार का तैरता सागर रहा है , मेरी सोच मेरी कलम न जाने क्या क्या सहा है। भारत माता के इतिहास का मैं वसूल हूं , मां के चरणों का मैं घूल हूं।। ************************************* प्रमोद मालाकार की कलम से ©pramod malakar #मां के चरणों का मैं धूल हूं
Rashmi singh raghuvanshi "रश्मिमते"
कपड़े की सिलवटे और छत की धूल कुछ समय बाद ख़ुद ही ठीक हो जाती है लेक़िन माथे की सिकन और जिंदगी की धूल साफ करते नही हटती। ©rashmi singh raghuvanshi #धूल
Anjali Nigam
हर वक्त किरकिरी सी क्यों होती है अब इन आँखों में कोई तिनका भी नहीं गिरा कोई धूल भी अभी नहीं उड़ी शायद कोई किरचा यादों का टूटकर रह गया होगा इनमें क्यों धुंधला नजर आता है चश्में में धूल भी जमी नहीं एक आंधी चली थी सालों पहले उसी की धूल है शायद जमी हुई !! ©Anjali Nigam #धूल
माधुरी शर्मा "मधुर"
*धूल* करती रही साफ़ दीवारों पर लगा मकड़जाल, घर के कोने-कोने में छिपी धूल को, पर उस धूल का क्या? जिसने धूमिल कर दिए इन्सान के हृदय, या फिर वो धूल.... जो दिमाग के किसी कोने का हिस्सा थी? क्यूँ नहीं पहचान पाई मैं, अपने ही हृदय की पारदर्शिता को, हाँ,पारदर्शिता ही तो है, जो मेरे तेरे सबके हृदय का अंश है, जान लूँ पहचान लूँ , दिल में छिपे परिंदे को नया सा आयाम दूँ , ताकि फिर से साफ़ करनी पड़े मुझे , हृदय पर पड़ी धूल...हाँ, मेरे ही हृदय पर पड़ी धूल।। ©माधुरी शर्मा मधुर #धूल
Parasram Arora
गीता और कुरआन पर मोटीपरत धूल की चढ़ चुकी है किस कदर धर्म और ग्रंथो की धज़्ज़ीयां उड़ रही है कई बार लगा चुके है हम आग कभी मस्जिदों मे कभी शिवालों मे इबादत तो केवल दिखावे की हो रही है हर तरफ खून खराबा फरेब और जालसज़ी हो रही है ये दुश्मनी भी हमें न जाने क्या क्या रंग. दिखा रही है ज़ो जवाब हमने दिए... अच्छे लगे थे जिंदगी को फिर क्यों जिंदगी की रोज नए नए सवाल पूछने की आदत जा नहीं रही है हमे जरूरत थीं एक अच्छी साफ सुंदर जिंदगी की पर ज़ो मिली - बदरंग है वो ईतनी कि हमें आँख बंद करने की जरूरत पड़ रही है ©Parasram Arora धूल......