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Parasram Arora
कोई पुरखो को पानी पहुंचा रहा हैँ कोइ गंगाओ मे पाप धो रहा हैँ कोई पथर की प्रतिमाओं के सामने बिना भाव सर झुकाये बैठा हैँ धर्म के नाम पर हज़ार तरह की मूढ़ताएं प्रचलन मे हैँ धर्म से संबंध तो तब होता हैँ जब आदमी जागरण की गुणवत्ता हासिल कर लेता हैँ जहाँ जागरण होगा वहा अशांति कभी हो ही नहीं सकती क्यों कि जाग्रत आदमी विवेकी होता हैँ इर्षा क्रोध की वृतियो से ऊपर उठ चुका होता हैँ औदेखा जाय तो धर्म औऱ शांति पर्यायवाची शब्द हैँ धर्म औऱ शांति...... पर्यायवाची शब्द हैँ
Praveen Jain "पल्लव"
प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" हिंसा का अधिकार #पल्लव_की_डायरी
मिथिलेश मुन्तज़िर
हर तरफ से उठ रही है चीखे , कुछ तो छिपा राज है देश का दिल जल रहा है , किसने लगायी आग है । हमसे कोई पूछे तो , लालकिले की प्राचीर से बोलू इस हिंसा का "वारिस" , दिल्ली का शाहिन बाग है ।। कुछ लोग है इस मुल्क मे , जो बनते " धार्मिक सरताज" है हिंसा की इन घटनाओं को , बताते फिरते जगेगी ना कोई विधवा होगी , ना जलती तस्वीर दिखेगी । प्रगति के पथ पर चलता , कल और आज होगा फिर ना कभी दिल्ली मे , इस कदर का शाहिन बाग होगा ।। हिंसा का शाहिन बाग
Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
manoj kumar jha"Manu"
धरती का दुःख क्यों, समझते नहीं तुम। धरा न रही अगर, तो रहोगे नहीं तुम।। सुधा दे रही है वसुधा हमें तो, भू को न बचाया, तो बचोगे नहीं तुम।। "भूमि हमारी माता, हम पृथिवी के पुत्र"* वेदवाणी कह रही, क्या कहोगे नहीं तुम।। (स्वरचित) * माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या: (अथर्ववेद १२/१/१२) धरती का दुःख हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा। इसमें धरती के पर्यायवाची शब्द भी हैं।
Durgesh Mishra
इस भेड़ चाल में हम भी चल रहे थे मुख्य बिन्दुओ से हटकर हिन्दू मुस्लिम कर रहे थे इंसायनियत पल पल हरपल मर रही थी हम लाशो से उसका धर्म पूछ रहे थे जो दोस्त कभी साथ बैठकर खाया करते थे आज वो एक दूसरे की जान लेने के लिए घूम रहे थे जो कभी एक तिरंगें के नीचे राष्ट्रगान गया करते थे आज हरे में इस्लाम और केसरिया में हिन्दू ढूंढ रहे थे पता नहीं किस दौर में हम खुद को ढकेल रहें थे आने वाली नस्लों को भी हिन्दू मुस्लिम की आग में झोंक रहे थे जल रहे थे घर दोनो के उस नफ़रत की आग में जिसे लगा कर हम सुनहरे भविष्य का सपना देख रहे थे मुझे नहीं पता हम कब तक लड़ते रहंगे और कब तक सहेंगे शायद इंसानियत के खात्मे तक हम एक दूसरे से लड़ते रहंगे हिंसा का धर्म या धर्म की हिंसा 🇮🇳🇮🇳🙏🙏
CK JOHNY
चुप थी मैं अब चुप न रहुँगी बहुत सहा अब और न सहुँगी। गाली दी हाथ उठाया सब जुल्म सहा छुप छुप के रोई कभी किसी से न कहा। अपने हक की आवाज बुलंद करुँगी। तेरी बन के रही तुझे रहना न आया जहाँ कद्र नहीं मेरी वहाँ न रहूँगी। ऐ पति तुझे परमेश्वर माना था बहुत हुआ पैर की जूती न बनुंगी। फख्त जिस्म में कैद नहीं वजूद मेरा आजाद रुह हूँ आजाद ही रहूँगी। तेरे लिए सोलह श्रृंगार किए अब अपने लिए सजू संवरुंगी। मेरी संभावनाओं को नजरअंदाज करनेवाले अपनी तकदीर की ईबारत खुद लिखूंगी। चुप थी मैं अब चुप न रहुँगी बहुत सहा अब और न सहुँगी। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ महिलाओं के खिलाफ हिंसा का उन्मूलन
Jogendra Singh writer
आपके अनुसार Nojoto का पर्यायवाची क्या है Answer in comment section ©Jogendra Singh Rathore 6578 nojoto ka पर्यायवाची #Light
md shadab
आज मेरा देश हिंसा की आग मै जल रहा है , ये हिंसा जिसने भी फ़ैलाई है वो घर बैठ कर मजे ले रहा है, इस हिंसा मै हिन्दु मुस्लिम नहीं एक इंसान जल रहा है , अगर गोर से देखो तो आपस का भाईचारा जल रहा है, आज मेरा देश हिंसा की आग मै जल रहा है, ये हिंसा जिसने भी फ़ैलाई है वो घर बैठ कर मजे ले रहा है, इस आग मै सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे देश वासी जल रहे हैं, ना हिन्दु जल रहा है ना मुसलमान जल रहा है . #हिंसा