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Thakur
Rajput city mall mumbai ©Thakur हमारे लोकेंद्र सिंह चौहान जी का नया मॉल मुंबई में #BuildingSymmetry
Lokendra Thakur
संवेदना के आंगन में जब क्रूरता घर कर जाती हैं मर जाती हैं शुचिता और कर्मण्यता मर जाती हैं करूणा,वेदना, हो गये मनुज स्वभाव के विलोम मनुष्य के इन कृत्यो से तो पशुता भी ड़र जाती हैं।। लोकेंद्र की कलम से ✍️😔 #RIPHUMANITY#लोकेंद्र
Lokendra Thakur
मैं उम्मीद से उम्मीद जोड़ता हूँ ख्वाबो का थोड़ा कद बढ़ता हूँ वैसे ही जैसे ताश के पत्तो का एतिहात के साथ महल बनाना पर आखरी छोर आते ही कौन कर देता हैं हवा से चुगली वो आती हैं बस टूट जाती हैं उम्मीदे, बिखर जाते हैं वो ख्वाब ताश के पत्तो की तरह पर हवा से कह देना रूका नहीं हूं मैं ।। (लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से
Lokendra Thakur
रूकना नहीं, बहुत वक्त हैं शाम आने के लिए मैं दिन हूं तेरा, पर हूं बस गुजर जाने के लिए। पत्थर की ठोकर से संभले हो, तो शुक्रिया कहो चंद मिलती हैं मोहलत,यहां संभल जाने के लिए । जिंदादिल पर तुम्हारी आसमां भी रक्स़ करे वरना आये तो सब हैं,जमीं पर मर जाने के लिए । मन्नत के धागे बांध कर, इत्मीनान तो कर लेना पर सब करना तुम्हें ही, कुछ कर जाने के लिए । अब के दुआये उनकी काम कर जाये तो अच्छा है कितना डूबेगें हम, दरिया पार कर जाने के लिए । इश्क़ लिखे बिना, दिल को तसल्ली नहीं है लोकेंद्र ये शे़र जरूरी हैं उनका दर्द कम कर जाने के लिए । लोकेंद्र की कलम से #लोकेंद्र की कलम से
Lokendra Thakur
🖋""कुछ लिख सकूं""🖋 (लोकेंद्र की कलम से) शीर्षक की अभिव्यक्ति में शब्द चयन, अर्थ तर्क की शक्ति में असमंजस के युद्ध में घिरा यही प्रयत्न हैं, विजय की हठ रखूं हृदय प्रिय लगे,ऐसा कुछ लिख सकूं काव्य,रस, से परिचित नही भाषा का कण मात्र हूं मैं कोई क्षितिज नही भावना के ताल को प्रवाहमान कर यही प्रयत्न हैं विशाल समुद्र रख सकूं । हृदय प्रिय लगे,ऐसा कुछ लिख सकूं । तम रूपी अज्ञान को कब भेदेगी रश्मियां ज्ञान की इसी तपस्या में लीन हूं नया इतिहास रच सकूं हृदय प्रिय लगे, ऐसा कुछ लिख सकूं। #लोकेंद्र की कलम से
Lokendra Thakur
""खामोशी"" कोरा कागज, महज कोरा नहीं है उस पर मेरी खामोशी लिखी हैं तुम चुपके पढ़ लेना सब कुछ और लिख देना कुछ अल्फाज ताकि और कोई पढ़ न सके मेरी खामोशी को। (लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से
Lokendra Thakur
२ मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु, इतना अवश्य प्रयत्न करूंगा मन की यक्ष वेदना को, मेघो के संग तुम्हारे नगर भेजूंगा चिंताओ की रेखाएं अनगिनत विलुप्त तुम्हारे भाल से होगी कपोल पर स्पर्श अनुभूति मेरी बरखा संग शीत बयार से होगी विचारो की कालरात्रि में, भौर का विश्वास पर रखना मन का संपूर्ण तमस हरने को, प्रकाश प्रखर भेजूंगा मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु....................... श्याम घटा छंट जाने के पूर्व तुम उनमें उष्ण आस भर देना कह देना मेघो से अपने सब भाव और उनमें तुम सांसे भर देना उन सांसो को मेघ से लेकर स्वयं को अजर अमर समझूंगा मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु................ (लोकेंद्र की कलम से ) #लोकेंद्र की कलम से
Lokendra Thakur
इश्क़ की गजल आसमां पर लिख दूं , ताकी हर बादल पढ़ता हुआ गुजरे बरसे जमीं पर जब वो बारिश बनकर तो साथ बरसे मेरे शेऱ के मिसरे । (लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से
Lokendra Thakur
मेहनत मंजिल नजर में है, रास्ता भँवर में है मैं मेहनतकश तो हूँ, पर तकदीर सफर में है... (लोकेन्द्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से