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Dharminder Dhiman
उस हमउमर को तब एहसास हुआ, कि मैंने क्या कहा, जब उसके यह कहने पर, की "अंकल मैं भी बैठ जाऊं यहाँ" बेझिझक जब मैंने भी कहा, "हां बेटा बैठ जाओ" की "अंकल मैं भी बैठ जाऊं यहाँ" बेझिझक जब मैंने भी कहा, "हां बेटा बैठ जाओ"
Ashay Choudhary
ईदी (Write up in caption) हैलो! हां बेटा, कब तक निकलेगा तू यहां आने के लिए सब तुझे बड़ा याद कर रहे हैं। अम्मी मुझे छुट्टी नहीं मिलती है, मन तो बड़ा है अाने का लेकिन त
खामोशी और दस्तक
कश्मीर फाइल्स और मैं एक फिल्म जिसने एक तरह से आज पूरे देश को हिला दिया है या यूं कहें गढ़े मुर्दे उखाड़ दिये हैं और उसकी गंध थियेटर से निकले हर भारतीय को परेशान कर रही है,उस समय जो कुछ भी हुआ आज आईने की तरह साफ है, फ्रेम दर फ्रेम इसमें उभरती तस्वीरें महीनों दिल से चिपकी रहेगी ये एक ऐसा आइना हैं जिसे देखना यथावत स्वीकार करना हर किसी के बस की बात नहीं जिनमें मैं भी शामिल हूं। मैंने ये फिल्म नहीं देखी, ना ही इतनी हिम्मत है कि कभी देख सकूंगी। "कश्मीर फाइल्स" जब ये नाम सुना था पहली बार ज़हन में अनजाने ही एक शिक्षिका घूमने लगी। मैं आठवीं या नवीं कक्षा में थी उस समय। हिंदी आरंभ से ही मेरा प्रिय विषय रहा है जिसकी वजह हमारी पूजा मैम थी।साधारण कद व शालीन स्टाफ रूम से अधिक हमारी कक्षा में ही बैठती थी लंच भी हमारे साथ ही करती थी। हंसमुख थी साथ ही मितभाषी भी चूंकि मैं भी अंतर्मुखी थी उनसे एक जुड़ाव महसूस होता था।उनकी आवाज़ मधुर थी, उनका हमें पढ़ाने का तरीका सबसे अलग था, सबसे अच्छी बात हमें गृहकार्य कभी कभी ही मिलता था सारा काम वो कक्षा में ही करवाती थी। मेरे साथ साथ आधी क्लास की पसंदीदा शिक्षीका थी।करीब एक वर्ष उन्होंने हमें पढ़ाया फिर अचानक उन्होंने हमारा शहर छोड़ दिया। मुझे आज भी अच्छी तरह से वो दिन याद है जब वो शाम के वक्त मेरे पड़ोस में आई थी शायद उनको पहले से जानती थी।कब आई मैंने नहीं देखा था लेकिन जाते जरूर देखा था मैं बाहर अपने आंगन में आई तब वो आंटी से बात कर रही थी बात करते करते उनकी आंखों से आंसू टपक रहे थे साथ ही आंटी के भी ,पूजा मैम आंटी के गले लगी और फफक फफक कर रोने लगी मैंने अपनी मम्मी को ये बात बताई वो झट से अपना काम छोड़कर उनके पास गई कुछ पल रूकी फिर वो वो रोने लगी तीनों को रोता देख मैं बहुत असहज हो गई दौड़ कर उनके पास गई मुझे देख तीनों चुप हो गई मैंने उनसे जब पूछा आप सब क्यूं रो रहे थे बात बदलने के लिए मम्मी ने कहा आपकी मैम आंटी के लिए कुछ गमले लाई है एक आपके लिए भी है अपनी पसंद का गमला ले लो।मैम ने कुछ गमले उनके यहां दिये थे, सभी फूलों के थे जिनमें एक गुलाब का था हल्के गुलाबी रंग का पूरा पौधा फूलों से लदा था भीनी भीनी खुशबू आ रही थी मैंने मैम से पूछा ये ले लूं मैम ने चहक कर कहा हां बेटा लेकिन ये कश्मीरी गुलाब है इसका विशेष ध्यान रखना पड़ेगा, ध्यान रख लोगी ना? मैंने हां में सर हिला दिया और गमला लेकर घर आ गई। दूसरे दिन से हमारी वार्षिक परीक्षा थी पूरी परीक्षा के दौरान पूजा मैम नहीं दिखी छुट्टियां शूरू हो गई हम स्कूल को लगभग भूल गए हां कभी कभी पूजा मैम की याद आ जाती।मै जब भी मम्मी या आंटी से उनके बारे में पूछती दोनों का एक जवाब होता कुछ दिनों के लिए वो अपने घर गई है साथ ही उनके चेहरे पर एक खामोशी छा जाती उनके बारे में ज्यादा सवाल करने पर मुझे डांट देती, पूरी छुट्टीयों में उनके बारे में बस इतना पता चल सका था कि वो कश्मीर से थी।मैं उनको लगभग भूल ही गई थी, जब इस फिल्म का नाम सुना मुझे उनकी याद आई और मैंने मम्मी से उनके बारे में पूछा मुझे आश्चर्य हुआ जब मैंने जैसे ही उनका नाम लिया मम्मी को वो याद आ गई पहले तो उन्होंने टाला फिर जो भी बताया आज पूरे एक सप्ताह से मैं ठीक से सो नहीं सकी सोचती हूं उस समय मेरी मम्मी और आंटी के लिए कितना मुश्किल हुआ होगा सामान्य दिखना ना जाने कितने महीनों तक वो जागी होंगी ... क्रमशः ....... ©खामोशी और दस्तक कश्मीर फाइल्स और मैं एक फिल्म जिसने एक तरह से आज पूरे देश को हिला दिया है या यूं कहें गढ़े मुर्दे उखाड़ दिये हैं और उसकी गंध थियेटर से निकल
Dr. Vishal Singh Vatslya
●●●●●●●●●●●●●● { Read in Caption } Dr.Vishal Singh #yostowrimo #तीसरादिन #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi ●आशीष सुनो ना..... सुनो ना यार..... हां बोल सुन तो रहा हूँ क्या
Mahima Jain
{ HORREDY } •| पढ़ाकू निल्लू और बूढ़ी दादी की म्यूज़िकल स्टोरी |• (कैप्शन में) { HORREDY } •| पढ़ाकू निल्लू और बूढ़ी दादी की म्यूज़िकल स्टोरी |• "एक दादी थी प्यारी सी, एक उल्लू को वो तकती थी। चोरी चोरी चुपके चुपके, उस
Preet Gaba
*कोशिश जिंदगी की* *कोशिशें जिंदगी की* मैं अवनी कुछ 13-14 साल की थी। मेरी बड़ी बहन रितु जिसे पेंटिंग का बहुत शौक था। रितु दीदी हर सुबह अपनी
Hrishabh Trivedi
लेखन का प्रभाव मेरा एक सवाल था, लेखक क्यों सामाजिक मुद्दों पर कुछ लिखते हैं? हालांकि मैं खुद को लेखक नहीं कह सकता लेकिन कई दफा मैं भी ये फिजूल का काम करने
Hrishabh Trivedi
Welcome to Ajoobanagar डिस्क्लेमर:- कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं, इन्हें अपने ऊपर ना लें, और प्लीज़ मुझे भी इनसे ना जोड़े...... धन्यवाद 😊 ओपन द डोर,
Stunning Rahul
#बेटा हां आज हालात ऐसे हैं वो बैठा है थक हार कर ।। मजबुर है पर मज़बूत भी उतना ही, ख़ामोश है पर कमज़ोर नहीं, अपनी जिम्मदारियों को समझता है, अपनी गलतियां समझता है । उम्र से पहले जो बरा हो गया आज, घर का वही वो बरा बेटा है ।। सौ सौ नखरे करने वाला हज़ारों ख्वाहिशें रखने वाला आज उसे कुछ नहीं चाहिए। घर का वही बेटा है , सपने बहुत छोटे हैं उसके पर जो है वो उसके हैं जिसका वो है.. मां- पापा #बेटा #बेटा