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Vaishnavi Pardakhe
गरीबी में मैंने जनाब, सब कुछ खो दिया, ये ग़रीबीने ना खाने दिया, ना ही जीने दिया। स्वाभिमान की बात कहाँ करूँ जनाब , जब हो साथ भूख। आज खाली पेट सोना ना पड़े, इसीमें है हमारा सुख। ❤️❤️Vaish-New❤️❤️ ©Vaishnavi Pardakhe #Apocalypse
Pallavi pandey
परदेश जाते वक्त मां सहेजने लगती है मेरा जरूरी सामान , मेरे खाने की चिंता में बांधने लगती है अचार, पापड़, घी, मसाले, दाल,चावल की छोटी , बड़ी पोटली ... मैं कहती हूं परदेश में भी मिलती है ये सारी चीज़े , पर जानती हूं नहीं होता उनमें मां के हाथ का स्वाद . इन पोटलियों में वो बांधती है सामान के साथ ढेर सारा प्यार जीवन के फीकेपन में स्वाद , आज दाल में जायका कम है परदेश में बैठी तुम्हारी बिटिया तुम्हें याद करते हुए खा रही अचार के साथ भात –दाल मम्मी ! मेरी तुम्हारे होने से ही है जीवन में स्वाद.... © Pallavi pandey #Apocalypse
UNCLE彡RAVAN
तुम पढ़ना चाहो तो, तुम ही हमारी शायरी का किताब हो, तुम इजाज़त दो तो, तुम ही हमारी मोहब्बत का किस्सा हो, तुम अपनो में गिनों तो, तुम ही हमारे अपनो में हिसाब हो, तुम साथ निभाओं तो, तुम ही हमारी जिंदगी का हिस्सा हो...!! ©UNCLE彡RAVAN #Apocalypse
Shubhanshi Shukla
पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है, आजकल हवा के लिए रोशनदान कौन रखता है... अपने घर की कलह से फुरसत मिलें तो सुनें, आजकल पराई दीवार पर 'कान' कौन रखता है... खुद ही पंख लगाकर उड़ा देते हैं चिड़ियों को, आज कल परिंदों में अपनी 'जान' कौन रखता है... हर चीज मुहैया है मेरे शहर में किश्तों पर, आजकल हसरतों पर लगाम कौन रखता है... बहलाकर छोड़ आते हैं वृद्धाश्रम में मां-बाप को, आजकल घर में पुराना सामान कौन रखता है... सबको दिखता है दूसरों में इक बेईमान इंसान, खुद के भीतर मगर अब ईमान कौन रखता है... *फिजूल की बातों पे सभी करते हैं वाह वाह, अच्छी बातों के लिये अब जुबान कोम रखता है... ©Shubhanshi Shukla #Apocalypse