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Preeti Rani Dietitian
ट्री पोज में आप अपने बच्चों को एक पैर पर खड़ा होने का अभ्यास करवाएं। यानि कि आप बच्चे के दायें पैर को मोड़ते हुए उसके बांई जांघ पर टिकाएं
ट्री पोज में आप अपने बच्चों को एक पैर पर खड़ा होने का अभ्यास करवाएं। यानि कि आप बच्चे के दायें पैर को मोड़ते हुए उसके बांई जांघ पर टिकाएं
read moreरजनीश "स्वच्छंद"
मुर्गे सा बांग मैं देता हूँ।। मुर्गे सा बांग मैं देता हूँ। पर सत्य टांग मैं देता हूँ। मर्यादा होती धूमिल रही, बरबस लांघ मैं देता हूँ। अन्तरबल मेरा क्षीण रहा, और ताल जांघ मैं देता हूँ। जहां दरवेशों की भीड़ रही, बेहिसाब मांग मैं देता हूँ। अवधारण ही जो धारित था, जमा पांव छलांग मैं देता हूँ। थोथी दलीलें बहुरूपिये, और एक स्वांग मैं देता हूँ। दरबारी जो इतिहास रहा, एक अवशेषांग मैं देता हूँ। जीवित रहे बस तान भृकुटि, दण्डवत शाष्टांग मैं देता हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" मुर्गे सा बांग मैं देता हूँ।। मुर्गे सा बांग मैं देता हूँ। पर सत्य टांग मैं देता हूँ। मर्यादा होती धूमिल रही, बरबस लांघ मैं देता हूँ।
#कान्हाकहतेहैं
दुरात्कार कर मर्द समझना, आख़िर कब तुम काँपोगे खुली जांघ से मन की विकृति को कब तक तुम झांपोगे दोषारोपण करने की भी कोई तो सीमा होगी तीन माह की
दुरात्कार कर मर्द समझना, आख़िर कब तुम काँपोगे खुली जांघ से मन की विकृति को कब तक तुम झांपोगे दोषारोपण करने की भी कोई तो सीमा होगी तीन माह की #Poetry #justiceforasifa #कान्हाकहतेहैं
read moreDevesh Dixit
अत्याचार की दुकान बन रहा अपना हिन्दुस्तान पल रहे कितने बेईमान कर रहे इसको शमशान बेशर्मी को लिया बांध अपराधों को लिया टांग दिखा रहे अपनी खुली हुई जांघ और कर रहे इसको जबरन बदनाम संकट में है अब लाज आते नहीं अब भी बाज कब तक सहेगा ये समाज बढ़ रहा जुर्म का ये राज न सुरक्षा का इंतजाम खुले घूम रहे हैं सांड वो भी बिलकुल बेलगाम कैसे होगा समाधान अत्याचार की दुकान बन रहा अपना हिन्दुस्तान पल रहे कितने बेईमान कर रहे इसको शमशान ........................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #अत्याचार#nojotohindi अत्याचार अत्याचार की दुकान बन रहा अपना हिन्दुस्तान पल रहे कितने बेईमान कर रहे इसको शमशान
#अत्याचार#nojotohindi अत्याचार अत्याचार की दुकान बन रहा अपना हिन्दुस्तान पल रहे कितने बेईमान कर रहे इसको शमशान
read moreRavendra
नीलगाय को मारकर किया घायल बाबागंज। रुपईडीहा इलाके में नीलगाय को अज्ञात लोगों के द्वारा मारकर घायल कर दिया गया जिससे क्षेत्र में आक्रोश व्या #न्यूज़
read morekavi manish mann
कितनी बार कहा तुमसे, न मर मरकर जिया करो। न डरो इन दरिंदों से, न खून के आंसू पिया करो। फूलन देवी सा बन जाओ, ऐसा तुम इतिहास रचो। लेकर हाथों में कटार, इनके रक्त से तिलक किया करो। बीते कुछ सालों से हमारे में देश में जो घटनाएं घटित हो रही हैं उन सभी घटनाओं में दरिंदगी एक बड़ा मुद्दा है। यह एक संक्रमण की भांति फैलता चला
बीते कुछ सालों से हमारे में देश में जो घटनाएं घटित हो रही हैं उन सभी घटनाओं में दरिंदगी एक बड़ा मुद्दा है। यह एक संक्रमण की भांति फैलता चला #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine #कितनीबारकहा
read moreसुसि ग़ाफ़िल
तेरी देह की आकाशगंगाओं पर बनाने थे चित्र नाभि पर दीया तने सहित फूलों का गुच्छा तेरी देह की आकाशगंगाओं पर बनाने थे चित्र तेरी पीठ पर बनानी थी मुझे एक कबिलाई झोपड़ी जिसका मुख्य द्वार बनाता
तेरी देह की आकाशगंगाओं पर बनाने थे चित्र तेरी पीठ पर बनानी थी मुझे एक कबिलाई झोपड़ी जिसका मुख्य द्वार बनाता
read moreआशीष गौड़
हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना! क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है! कुरुवंशज की नीति वहां पर मौन खड़ी थी, भरी सभा में जब सन्नाटे चीख रहे थे! बंधित लाये रंगमंच पर रजस्वला को, दुःशासन की जांघें व्याकुल दीख रहे थे! अपितु हमारा प्रश्न दूसरा है इति से अब, विध्वंसों में तुम क्यों दक्ष बने फिरते हो! प्रश्नों के उत्तर से चिन्तित होने वालों, अंधियारों में फिर क्यों यक्ष बने फिरते हो! सब ग्रंथों के उपसंहार में, नारी क्यों भयभीत मिला करती है! हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना, क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है! महीपति तब भी चक्षुविहीन हुआ करते थे, द्वापर में भी छल से काफी काम हुए थे, आलौकिक थी त्रेता की वह प्रेम कहानी, तुलसी की रामायण में संग्राम हुए थे! योजन नापे रघुनंदन ने सेतु बनाकर, संयोजकता के बल पर वह सफल हुए थे! दम्भ में उलझे नृपों को मही में पिघलाकर, पर महिजा को पाने में वह विफल हुए थे! आसक्ति हमारी माता सिय से पूछ रही है! अग्निपरीक्षा देकर भी क्या प्रीत मिला करती है! हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना, क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है! आशीष गौड़ हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना! क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है! कुरुवंशज की नीति वहां पर मौन खड़ी थी, भरी सभा में जब स
हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना! क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है! कुरुवंशज की नीति वहां पर मौन खड़ी थी, भरी सभा में जब स
read moreरजनीश "स्वच्छंद"
मैं बस लिखता हूँ।। कभी सवेरे तो कभी मैं सांझ लिखता हूँ। मन के बर्तन को राख से मांज लिखता हूँ। खाली चढ़ा चूल्हे पे जो जल रहा कल था, उम्मीद की आंखें टिकाए पल रहा कल था। सूखा दूध छाती में रहा बर्तन भी खाली था, रहा जो पक चूल्हे पे वो तो बस ख्याली था। मां की आर्द्र आंखें थी, बच्चे घूरते चूल्हा, दबाये पेट अपना और टिकाये जांघ पे कुल्हा। नई सदी के नींव की थी माटी रही कच्ची, भूख में बालक पले भूखी हर एक बच्ची। किसी के आंसुओं पे बन रहा एक देश प्यारा था, वही टूटा रहा जिसके लिए हर एक नारा था। जलते इस उपले की मैं तो आंच लिखता हूँ। कभी सवेरे तो कभी मैं सांझ लिखता हूँ। देखो वहां कुत्तों के संग जूझता है कौन, भूख देखो भौंकती है, आत्मा है मौन। मानव पशु के मेल की ये भी निशानी है, जूठन को लड़ते रहे संग रात बितानी है। उनकी हंसी उनकी खुशी का दायरा है पेट, भूख से लड़ते रहेंगे, आ जाएंगे फिर खेत। सोच है की चांद को भी हम फतह कर लें, पर पहले तय जीवन की हम वजह कर लें। भूख में जिंदा है उसकी तो चांद रोटी है, जो पेट है खाली तो सारी बात खोटी है। मैं सच और झूठ, खुद जांच लिखता हूं। कभी सवेरे तो कभी मैं सांझ लिखता हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" मैं बस लिखता हूँ।। कभी सवेरे तो कभी मैं सांझ लिखता हूँ। मन के बर्तन को राख से मांज लिखता हूँ। खाली चढ़ा चूल्हे पे जो जल रहा कल था, उम्मीद क
Pankaj Singh Chawla
"बलात्कारी आँखे" (अनुशीर्षक पढ़े) "बलात्कारी आँखे" आज घिन्न आती है इन आँखों पर मुझे, ये आँखे बलात्कारी हो चुकी है, मिली थी ये आंखे दुनिया देखने समझने को, आज ये आँखे भ्रष्ट ह
"बलात्कारी आँखे" आज घिन्न आती है इन आँखों पर मुझे, ये आँखे बलात्कारी हो चुकी है, मिली थी ये आंखे दुनिया देखने समझने को, आज ये आँखे भ्रष्ट ह #Rape #yqbaba #yqdidi #आंखें #pchawla16 #RapefreeIndiA #बलात्कारमुक्तभारत
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