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पंकज गिरि
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं, मांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं, जिस पर हमारी आंख ने आंसू बहाए रात भर, भेजा वही कागज उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं , एक शाम की दहलीज पर बैठे रहे वो देर तक, आंखों से की बातें बहुत मुंह से कहा कुछ भी नहीं।। जगजीत सिंह जी🙏
Vedantika
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो। लौटा दो मुझे वो बचपन की ज़िंदगानी। वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी। बचपन की कहानी अब लगती हैं पुरानी। वो मिट्टी की गुड़िया संग सहेली सी बातें, वो तारों के नीचे ही गुजरती थी जो रातें। एक नया शहर रोज सपनों का बनाना, हुई दुश्मनी को एक पल में भूल जाना। उस बचपन की यादों में बीती जवानी, आँखों में उतर आया कश्ती का पानी। पेड़ो पर चढ़कर आम अक्सर चुराना, मालिक के डर से नीचे फिसल जाना। वो अम्मा के आंचल से खुद को छुपाना, बाबा की साइकिल पर चक्कर लगाना वो जिंदगी ही क्या थी वो बचपन भी क्या था? लगता हैं सुन रहे हम जैसे कोई एक कहानी। ये काग़ज़ की कश्ती ये बारिश का पानी..... ये काग़ज़ की कश्ती ये बारिश का पानी..... जगजीत सिंह एवं चित्रा सिंह की एलबम (वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी) #cwpowrimo #cwpowrimo3 #cascadewriters #क़िर्तास_ए_ज़ीस्त
Raj Mani Chaurasia
ႽႩႩkპႠ
मुझसे बिछड़ के...खुश रहते हो!!!! मेरी तरह तुम भी झूठे हो!!!! इक टहनी पर चाँद टिका था.... मैं ये समझा.... तुम बैठे हो!!!! उजले-उजले फूल खिले थे.... बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो!!!! मुझको शाम... बता देती है.... तुम कैसे कपड़े पहने हो!!!! तुम तन्हा दुनिया से लडोगे!!!! बच्चों सी... बातें करते हो!!! जगजीत सिंह साहब की गाई ग़ज़ल