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somnath gawade
पोटाचा वाढणारा 'घेर' हा तुमच्या जीवाला 'घोर' लावत असेल तर तुम्ही अजूनही तरुण आहात. 🤣😂 #घोर
Prashant Mishra
मैं गर 'मैसेज' नहीं भेजूँ, या 'Status' नहीं डालूँ तो कोई बात की 'शुरूआत' भी करता नहीं मुझसे --प्रशान्त मिश्रा "घोर परायापन"
"घोर परायापन"
read moreEk villain
भारतीय संस्कृत मूल रूप से आदरणीय संस्कृत है अपने वैराग्य इसकी आत्मा शंकराचार्य ने अपने ग्रंथ विवेक चुंडी मणि में मोक्ष प्राप्ति के साधनों में वैराग्य को प्रथम स्थान देकर इसकी महत्ता को रेखांकित किया है वैराग्य जीवन में सुख शांति पाने तथा दुख निवृत्ति का साधन भी है अन्य मानवीय भाव की तरह वैराग्य भी सबके अंतर मीय में सुरक्षित अवस्था में रहता है मन की प्रवृत्तियों के अनुसार जागृत होता है पुनर्जन्म के संस्कार भी इस के जनक है वैराग्य का अर्थ सन सारिक पद्धति में आसक्त का भाव है यद्यपि सच्चा वैराग्य कभी मनुष्य को अपने कर्तव्य पथ से विरत नहीं करता आपूर्ति निस्वार्थ भाव से प्राणी मात्र की सेवा के लिए प्रस्तुत करता है त्याग का मंगल भाव वैराग्य की पवित्र भूमि पर ही अंकुरित और पल्लवित होता है अतः वैराग्य हमारी त्याग मूलक संस्कृति का आधार है और मानवता का पोषक भी जन्मजात भी है अर्जित भी है कारण जितने भी होता है पूर्ति भी होता है महा ऋषि शुरू कर दे में जन्मजात विरागे के उदाहरण है जन्म से ही पूर्व उनमें वैराग्य भाव इतना प्रबल था कि इसमें इस माया जनहित संसार में आना ही नहीं चाहते थे पिता हुआ व्यास द्वारा एक क्षण भी ना रोकने का वचन देने पर ही गर्व से बाहर आए शंकराचार्य को भी जन्म से वैराग्य था परंतु मां का प्यार उस में बाधक था तभी तो स्नान करते समय मायावी ग्रह ने उन्हें तब छोड़ा जब हमारे घर से जाने का वचन दे दिया ©Ek villain #वैराग्य का मांगलिक भाव #selflove
राजेश कुमार बी.जी
"घोर आस्था " मंदिर बनाए थे एहसास के लिए और तुमने घोर आस्था लगा ली पत्थर को तोड़ा, तराशा और एक मूर्ति बना दी दानी सजनो ने धन दिया वो मन्दिर सजा दी पत्थर की तकदीर ही बदल दी मजदूर ने पत्थर बन बैठा माँ काली और तुमने घोर आस्था लगा ली बस मंदिर जाने से कहाँ ज्ञान मिलता है बहुत मुश्किल से यहां इंसान मिलता है मेहनत से पत्थर बदला मूर्त में जो भी है तन के अंदर है तू उलझ गया है सूरत में नित जेब तेरी हो रही है खाली और तुमने घोर आस्था लगा ली पेट बच्चों का पलता नही है तू प्रसाद कबूले बिन चलता नही है पाखंड में बचत खो रहा है और सोचता धंधा फलता नही है सिंचता है आपने हाथों से पौधों को तो बगिया हरी बरी है कब बादलों को ताकत है माली और तुमने घोर आस्था लगा ली ....राजेश बडगुज्जर घोर आस्था
घोर आस्था
read moreRahul Nirbhay
#घोर_कलयुग_है_भाई, अब वक्त ऐसा आ गया है कि गलत को गलत बताना भी गलत है.! ✍️ घोर कलयुग
घोर कलयुग #घोर_कलयुग_है_भाई
read moreKavita Bhardwaj
घोर कलियुग ये कैसा छाया हर घर बिक रहे जहां इंसान, मोल रिश्तों का समझ में ना आया। माटी के पुतले सा हो गया जीवन सब आदर्शों को रद्दी के भाव जलाया, पग पग चले सब अपनी शर्तों पर बुरे मंसूबों ने है गहरा जाल बिछाया। समय की है ये बेबस डोर चार दिन की जिंदगानी फिर भी कैसा.. ये बेहिसाब चाहतों का शोर । ना करे कोई भरोसा किसी पर ना ही दुख बंटे घर - द्वार, चहुं ओर छलावे का परचम अपनों पर नहीं किसी को ऐतबार। घोर कलियुग ये कैसा छाया एक-दूजे से ज्यादा, प्यारी सबको माया, बज रहा सब तरफ लोभ का डंका जो अब ना संभले तो समझो, लग गई इंसानियत की लंका। ©Kavita Bhardwaj #घोर #कलियुग