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Kumar Manoj Naveen
जब-जब फगुआ आवेला, लरिंकईया याद करावेला। होली जरावे खाती उ लकड़ी के जूगाड़, होली जारला के बाद उ भांजल लुकाड़, रंग घोरि फिचकारी,संग कईल खेलवाड, उ मस्ती अपार ,बड़ी गुदगुदावेला। जब-जब फगुआ आवेला... माई के बनावल पूवा-ठेकुआ अउर पकौड़ी के स्वाद, कटहर के तरकारी प पूड़ी अउर ओह प दही -सजाव, रंग से सनाइल हाथ से खाईल उ पकवान खास, सोचि-सोंचि के जिया हरसावेला। जब-जब फगुआ आवेला... गाँव-टोला के झुंड संगे घरे-घर जाके उ खेलल होली, ढोलक -झाल प फगुआ,जोगीरा अउर बोलल उ लगहर बोली, केहू संगे प्रेम से ,त केहू संग बरियरियो खेलल होली , होली के उ आनन्द अब कहाँ आवेला। साँझी के बेरा ,नाया -नाया कपड़ा पहिनल, घरे-घरे घूमिके,बड-छोट संग अबीर खेलल, बड-जेठ,काका-बाबा, के आशीर्वाद लिहल, गाँव के उ संस्कार ,बड़ी मनभावेला। जब-जब फगुआ आवेला... ***नवीन कुमार पाठक *** ©Kumar Manoj फगुआ बचपन में
Rahul Shastri worldcitizens2121
Safar July 10,2019 सत्संग का अर्थ होता है गुरु की मौजूदगी! गुरु कुछ करता नहीं हैं, मौजूदगी ही पर्याप्त है। ओशो सत्संग का अर्थ