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Shravan Goud
अकडपन खत्म हो जाता है जब वक्त की आंधी आती है और लचीलापन अपनी क्षमताओं से बचाव करता है। अकडपन खत्म हो जाता है जब वक्त की आंधी आती है और लचीलापन अपनी क्षमताओं से बचाव करता है।
Atul Sharma
*📝“सुविचार"*📝 🖊️*“7/1/2021”*🖋️ 📘✨ *“गुरुवार”*✨📙 *“संबंध” में यदि “लचीलापन” ना हो, “अभिमान” की “दृढ़ता” हो तो वह “संबंध” भी बिखर जाते है* *तो लाइए यह “लचीलापन” अपने “संबंधों” में ताकि “कल” कोई “समस्या” आए तो यह “संबंध” टूटे नहीं,* *यदि इस “आकाश” में देखें तो “सूर्य” भी “चंद्रमा” को देख कर “झुक” जाता है हम तो “साधारण” से “मनुष्य” है...* ✨ *अतुल शर्मा🖋️📝📙* *📝“सुविचार"*📝 🖊️*“7/1/2021”*🖋️ 📘✨ *“गुरुवार”*✨📙 #“संबंध” #“लचीलापन”
Atul Sharma
*सुविचार* *Date-28/5/19* *Day-Tuesday* 🌱... *इस पौधे को देखिए* कितना "कोमल".. कितना "लचील" यदि इस पर थोड़ा-सा भी "दबाव" डालें तो झुक जाता है.. "पौधे" तो होते ही हैं ऐसे... थोड़ा-सा "दबाव" डालोगे तो "झुक" जाएंगे इसके लचीलेपन कारण... किंतु इनका ये *"लचीलापन"* *"आंधियों"*, *"चक्रवातो"* में टूटने से बचाता है.. यदि इनके स्थान पर कोई *"अक्रिय"* या कोई *"वृक्ष"* 🌳हो तो *"पवन"*🌪 की *"तीव्र"* *"गति"* को वह *सह* नहीं पाते उसका *"सामना"* नहीं कर पाते, *"टूट"* कर *"गिर"* जाते हैं... कुछ इसी प्रकार होते हैं हमारे *"संबंध"*... यदि उनमें वह *"लचीलापन"* ना हो, *"अभिमान"* की *"दृढ़ता"* हो, तो वह *"संबंध"* भी बिखर जाते है, तो लाईए यह *"लचीलापन"* अपने *"संबंधों"* में ताकि *"कल"* यदि कोई *"समस्या"* आए तो यह *"संबंध"* टूटे नहीं... यदि इस *"आकाश"* में देखें *"सूर्य"*☀ भी *"चंद्रमा"* 🌕 को देखकर झुक जाता है हम तो साधारण से मनुष्य है.... तो *"संबंधों को झुकाना"* नहीं *"संबंधों के समक्ष झुकना"* सिखिए... Bý-Åťüľ Şhãřmå🖊️🖋️✨✨ *सुविचार* *Date-28/5/19* *Day-Tuesday* 🌱... *इस पौधे को देखिए* कितना "कोमल".. कितना "लचील" यदि इस पर थोड़ा-सा भी "दबाव" डालें तो झुक जाता
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
" प्रश्नचिन्ह " *********** वो काली घटा सा मंजर था या तपिश थी चांद-तारो की , मेरे ही दिल की धड़कन थी या कोई दस्तक किनारों की …! भटकती रुह सी भटकन या डर था कुछ तूफानों का , ऐसा ही कुछ मंजर था वो उन बिछड़ी बहारो का ..! सलोनी बात थी कोई या लचीलापन था अश्कों का , गले में फस गया था जो वो शायद खौफ था गम का …! नमी आंखो मे कम ना थी मगर लब पर हसी भी थी , खामोशी के मौसम में यें बातें बेवजह क्यूं थी…. ! मेहरबानी हवाओं की या कोई आहट दुआओ की , कभी मुझ तक ना पहुंची जो वो ही बातें सजा सी थी…..! उम्र के इस किनारे पर ये सारे प्रश्नचिन्ह क्यों है.. वो लाचारी थी जीवन की या कमी कुछ मेरी राहों की….!!! ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) " प्रश्नचिन्ह " *********** वो काली घटा सा मंजर था या तपिश थी चांद-तारो की , मेरे ही दिल की धड़कन थी या कोई दस्तक किनारों की …! भटकती रुह स
सुसि ग़ाफ़िल
सच मानो तो अकाल मृत्यु का टैंट लग चुका है उदासियों के दूत आते हैं शाम सुबेरे भोज करने मोह भंग हो गया तुम्हारा तुम दूर हट गई हो मुझसे तुम जानती हो जितना उतना मैं भी नहीं जानता मुझे महसूस होता है मुझे हर पल महसूस होता है मुझ
अशेष_शून्य
"मानसिक जड़ता" (शेष अनुशीर्षक में) हम जिस भी विचार से ,व्यक्ति से परिस्थिति से , विश्वास से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं उसे या तो बार बार दोहराना चाहते हैं; या उसे एक झटके
Rajeshwari Thendapani
सफलता की राह सफलता का मार्ग सीधा नहीं है, विफलता नामक एक वक्र है, एक लूप जिसे भ्रम कहा जाता है, गति-कूबड़ दोस्तों, लाल बत्ती दुश्मन कहा जाता है
Divyanshu Pathak
क्या ग़ज़ब आसार बनते जा रहे कैसे ये नर नार बनते जा रहे ? धर्म ढूंढे से कहीं मिलता नहीं मजहबी मक्कार बढ़ते जा रहे ! नफरतों की आंधियां है उठ रही आग मतलब की लगाते जा रहे ! कौन माँ की लाज की रक्षा करे संत भी खूँखार बनते जा रहे ! 💕☕#good evening💕 : खाके रबडी दूध मक्ख़न संतरे सबके सब बीमार बनते जा रहे ! शुद्ध कुछ ढूंढे यहां मिलता नहीं मिलाबट के बाज़ार बनते जा रहे ! : देश
Osho Jain
... Greatness of lines.... "अब तो पथ यही है" कहने का तरीका देखिए! कैसे ढाल लिए अपने को हर प्रकार की समस्याओं के लिए जीवन में यह लचीलापन साधना बहुत कठिन है, पर दुष्यं