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Piyush Tiwari

Shivam Pandey

हे पार्थ क्यूँ अधीर हो...
तुम युद्ध मे प्रवीण हो...
हृदय गति को थाम लो.. 
ना कर्म से विराम लो .. 
अधर्म को ना मोल दो.. 
उठा धनुष ये बोल दो.. 
मैं जीत मैं ही हार हूं... 
मैं न्याय की पुकार हूं।।। 1।।
प्रत्यक्ष सब प्रमाण है 
विपक्ष अति महान है। 
हैं वीर सब बड़े बड़े.... 
समक्ष युद्ध को खड़े.. 
पर ध्येय मे प्रथक है वे
हाँ भ्रात कुल शतक है वे 
पुष्प की दशा मे अनिष्ट है वे शूल है 
जो है घनिष्ट रक्त से स्वभाव मे वे क्रूर है। 
वे पुत्र वध के पाप है 
वे नारी का प्रलाप है 
वे सब नियति के श्राप है.. 
अधर्म के अलाप है.. 
फिर क्यूँ ना आज साथ उन को काल का ही प्राप्त हो 
हे सखे तुम पांच ही परिणाम को पर्याप्त हो.. 
द्वापर की इस अनीति का यही सफल निदान है .. 
ना हो तनिक अचेत शंभू को तेरा संज्ञान है। 
मै द्वंद अंत तक तेरे इस रथ पर सवार हूं। 
हे पार्थ मैं ही युद्ध का आरम्भ औ परिणाम हूं।। 2।।
सखा समय समीप है..
सुनो क्या युद्ध नीति है.
अभिमन्यु का अब बोध लो ... 
पांचाली का प्रतिशोध लो..
 देवदत्त की गुहार दो.. 
फिर शत्रु को निहार लो ..
जो हैं शिथिल पड़ी हुई... 
भुजाओं को प्रसार दो .. 
कमान मे मचल रहे .. 
उन बाणों को प्रहार दो। 
ना हो दया ना मोह तीर ...
धड़ के आर पार हो... 
मैं जन्म से इस द्वंद का आरम्भ औ परिणाम हूं... 
हे सखे मैं कृष्ण मैं ही न्याय का विधान हूं।। 3।।

©Shivam Pandey #KavyanjaliAntaragni21
#KavyanjaliAntaragni21

Aditi Singh

वैवस्वत सिंह

#Kavyanjali

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यूं ही इश्क़ से खुफ्तगू करते करते, कुछ बात ये हुई,
इश्क़ ने बोला तुम जीते पर हार भी तो गए, मैं हारा पर जीत गया,
ये कह कर इश्क़ ने फिर एक बार मेरी ओर रुख किया और मुझे निहारते हुए फिर मुझसे बोला (व्यंगात्मक शैली में)-

जो ये थोड़ी तेरी आजादी है,
मैं वो भी ले लूंगा,
थोड़ा आओ तो सही,
तुम्हे जीने नहीं दूंगा,
मरना चाहे तो तुझे मारने ना दूंगा,
बड़ी नासार लगती है मेरी जुदाई,
साथ रहता हूं तो कितना खलती है,
रोना चाहोगे तुम,
पर रो भी ना पाओगे,
अंदर से रो कर,
बाहर सिर्फ मुस्कुराओगे,
इतना क्या तुम सेह पाओगे?

इतना कह कर इश्क़ थोड़ा रुका, फिर कुछ सोच कर वो हसने लगा, उसको हस्ता देख में भी थोड़ा सेहमा, थोड़ी देर शांत रहा फिर मैंने उसे पूछा की ए इश्क तू यूं क्यों हंस रहा है, ऐसी क्या बात है जो यूं बीच में रुक गया है। मुझे देख कर फिर इश्क़ बोला -

अपनों में थोड़ा टेढ़ा दिखता हूं,
दूसरों में थोड़ा सोना दिखता हूं,
बाहें खोल कर अपनो तो सही,
चंगुल में अपनी मैं तुम्हे फंसा भी लूंगा,
अभी तुम मुस्करा लो,
थोड़ा ही सही पर रुला मैं दूंगा,
तुम वफ़ा करना,
मैं तुम्हे बेवफ़ा भी दूंगा,
तुम इश्क़ करना,
मैं तुम्हे मतलब भी दूंगा,
जो बची तेरी आज़ादी है,
थोड़ी थोड़ी कर के तुझसे मैं लूंगा,
तू मुस्कुरा ले, मैं तुझे रुला भी दूंगा।
 
ये कह कर इश्क़ फिर मुस्कुराने लगा मुझे छू कर फिर इतराने लगा, मैं बात सुन कर उसकी थोड़ा सोच में पड़ गया। जो बोला ये, तो क्या अब मैं डर गया? बड़ी कश्मकश की मैंने इश्क़ से, थोड़ा सोचा, फिर मैंने भी इश्क़ से बोला -

मैं हसुंगा और थोड़ा मुस्करा भी लूंगा,
थोड़ा रो कर चुप करा भी लूंगा,
कुछ जिल्लत भी मिलेगी राहों में मुझे,
उनसे लड़ कर, थोड़ी ठोकर भी खा लूंगा,
मरने की कोई मुझे ख्वाइश ना है,
थोड़ा जी लूंगा, थोड़ा ज़िला भी दूंगा,
रहमत जो होगी रब की,
तुझे पा कर, तुझे हरा भी दूंगा,
मेरी आज़ादी कहा कैद होगी,
आसमानों से मैं, ये बतला भी दूंगा,
तू बेवफा दे मुझे,
मैं उसे भी अपना बना ही लूंगा।
- वैवस्वत सिंह। #Kavyanjali

Alfisha Qureshi

Piyush Kumar

हिमालय से फूटी नदियां
नदियों से धाराएं
धाराओं से विचार
विचारों से कविताएं
और कविताओं से मैं।

सूर्य से फूटी किरणें
किरणों से यात्राएं
यात्राओं से अनूभूति
अनूभूतियों से कविताएं
और कविताओं से मैं।

कलियों से फूटे फूल
फूलों से छंद
छंदों से उन्मुक्तता
उन्मुक्तता से कविताएं 
और कविताओं से मैं।

अंबर से फूटे बादल
बादलों से वसंत
वसंत से सौन्दर्य
सौन्दर्य से कविताएं
और कविताओं से मैं।

संगीत से फूटे स्वर
स्वरों से धुन
धुनो से चैतन्य
चैतन्य से कविताएं
और कविताओं से मैं।

आलिंगन से फूटे नयन
नयनों से विश्वास
विश्वास से मानव बोध
मानव बोध से कविताएं 
और कविताओं से मैं।

मसि से फूटे वर्ण
वर्णों से प्रतिबिंब 
प्रतिबिंबो से आत्मीयता
आत्मीयता से कविताएं
और कविताओं से मैं।

प्रकृति से फूटा श्वास
श्वास से जीवन
जीवन से काल
काल से कविताएं
और कविताओं से मैं।

इन सभी प्राकृतिक इन्द्रियों
 से जन्मा नन्हा शिशु
जिसके कंठ से फूटी ध्वनि
उस ध्वनि से कविता और
कविताओं से सृष्टि।
                 --पियूष

©Piyush Kumar #kavyanjaliAntaragni21

Shreya Mishra

Divya Saxena

खोती हुई मानवता 

कुछ रास्ते बंद से है,
शायद ये लोगों का अहंकार है!
मानवता की दहलीज पे !!!
सच कहने का ये अभिमान है !! 
 क्योंकि मानवता की ;
आखरी सांस ही धर्म की पहचान है!!

सच की तस्वीर बस थोड़ी सी बेदाग है;
शायद लोगों के सर पे चकाचौंध का भ्रम मात्र है!!
असुर रूपी ! दिखने वाले;
मनुष्य की अब असुर होना ही 
पहचान है।

कुछ रास्ते बंद से है,
शायद लोगों का अहंकार है!
मानवता की दहलीज पे !!!
सच कहने का ये अभिमान है!!
 क्योंकि मानवता की ;
आखरी सांस ही धर्म की पहचान है!!

हार कर बैठ जाऊं मैं ; दुनियां से?
ऐसा कहां मेरे होने का अर्थ है!!!
लड़ जाऊं सच का साथ देने को!!!
ऐसा मेरे होने का अभिप्राय है।

धर्म कहो या कर्म कहो!!!
सब का सार गीता का अर्थ है!!!
कलयुग की ये काली छवि ;
श्री कृष्ण से सुनी हर बात आज सच है!!!
मानवता से कोसों दूर दिखता आज मुझे हर मानव का रूप है!!! 
हर मानव का रूप है......।

©Divya Saxena #KavyanjaliAntaragni21

Anwesha

- अन्वेषा राय
B.el.ed Department
Lady Shri Ram College for Women,
Delhi University

©Anwesha #KavyanjaliAntaragni21

Anmol Singh

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