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Shivam Pandey
हे पार्थ क्यूँ अधीर हो... तुम युद्ध मे प्रवीण हो... हृदय गति को थाम लो.. ना कर्म से विराम लो .. अधर्म को ना मोल दो.. उठा धनुष ये बोल दो.. मैं जीत मैं ही हार हूं... मैं न्याय की पुकार हूं।।। 1।। प्रत्यक्ष सब प्रमाण है विपक्ष अति महान है। हैं वीर सब बड़े बड़े.... समक्ष युद्ध को खड़े.. पर ध्येय मे प्रथक है वे हाँ भ्रात कुल शतक है वे पुष्प की दशा मे अनिष्ट है वे शूल है जो है घनिष्ट रक्त से स्वभाव मे वे क्रूर है। वे पुत्र वध के पाप है वे नारी का प्रलाप है वे सब नियति के श्राप है.. अधर्म के अलाप है.. फिर क्यूँ ना आज साथ उन को काल का ही प्राप्त हो हे सखे तुम पांच ही परिणाम को पर्याप्त हो.. द्वापर की इस अनीति का यही सफल निदान है .. ना हो तनिक अचेत शंभू को तेरा संज्ञान है। मै द्वंद अंत तक तेरे इस रथ पर सवार हूं। हे पार्थ मैं ही युद्ध का आरम्भ औ परिणाम हूं।। 2।। सखा समय समीप है.. सुनो क्या युद्ध नीति है. अभिमन्यु का अब बोध लो ... पांचाली का प्रतिशोध लो.. देवदत्त की गुहार दो.. फिर शत्रु को निहार लो .. जो हैं शिथिल पड़ी हुई... भुजाओं को प्रसार दो .. कमान मे मचल रहे .. उन बाणों को प्रहार दो। ना हो दया ना मोह तीर ... धड़ के आर पार हो... मैं जन्म से इस द्वंद का आरम्भ औ परिणाम हूं... हे सखे मैं कृष्ण मैं ही न्याय का विधान हूं।। 3।। ©Shivam Pandey #KavyanjaliAntaragni21 #KavyanjaliAntaragni21
Aditi Singh
Mai aur tum Ek Mai aur tum Kabhi hum na hue Is duniya k tamaan rishto m koi chunn na ske Bs tum aur Mai reh gae Unn srd raton m chupke jb milte the hm do ajnabee Ajnabbrr se dost hue Dost se jismaani hue Jismaani se ruhaani hui Ek benaam se rishte me bandhe Iss rishte ka naam kya thaa pta ni Bs ehsaas khubsurat tha Mohabbat se bikhre hm aadhi ruh s the Aur tmne hi kaha tha toote bikhre log nashur bn jaate hai Pr dekha h maine tmhe apna sukoon bnte Mujhe Tri khushi bnte Tri chuaan ko mujhe apna kehte Teri baahon m khudko ghr jaate Tri Ankhon ko mre talash m rhte Meri Sanson m Tri khusbu baste dekha tha maine Dekha tha maine Main aur tum Tum aur Mai Ek benaam se rishte m bandhe Ek dusre ki himmat bane Jismo se aage badhe Khwabon m ghar kiye Pr Har ehsas Har Khwab hr shabd s tm mre liye Par iss duniya k nazar m hm aaj bhi ajnabee Tum kehte the ye rishta humara hai Bs Mai aur tum Chlo ye bhi mana Ye bhi mana ki Ye Mai aur tm kabhi hum to ho ni skte Pr ye Mai aur Tim ka saath duniya ke nazron se bachana tha Iss rishte ka naam jo ni Mila tha Chlo ye bhi mana tha maine Aaj 3 saal hue iss rishte ko Mai puchna chahti hu tmse Kaisa rishta hai ye Jo Har pal ab jhuth sa lgta hai Kaisa ehsaas hai ye jo khubsurat hoke bhi Najayaz sa lgta hai Kaisa sukoon hai ye jo ab bechain sa krta hai Kaisi nazdeekiyan hai ye humari jo duri s lgti hai Kaisa rishta hua humara jo Mai aur tum m simat krenreh gya Wo Mai aur tum se shuru aaj Mai aur tum tk reh gya ©Aditi Singh #KavyanjaliAntaragini'21
#KavyanjaliAntaragini'21 #कविता
read moreवैवस्वत सिंह
यूं ही इश्क़ से खुफ्तगू करते करते, कुछ बात ये हुई, इश्क़ ने बोला तुम जीते पर हार भी तो गए, मैं हारा पर जीत गया, ये कह कर इश्क़ ने फिर एक बार मेरी ओर रुख किया और मुझे निहारते हुए फिर मुझसे बोला (व्यंगात्मक शैली में)- जो ये थोड़ी तेरी आजादी है, मैं वो भी ले लूंगा, थोड़ा आओ तो सही, तुम्हे जीने नहीं दूंगा, मरना चाहे तो तुझे मारने ना दूंगा, बड़ी नासार लगती है मेरी जुदाई, साथ रहता हूं तो कितना खलती है, रोना चाहोगे तुम, पर रो भी ना पाओगे, अंदर से रो कर, बाहर सिर्फ मुस्कुराओगे, इतना क्या तुम सेह पाओगे? इतना कह कर इश्क़ थोड़ा रुका, फिर कुछ सोच कर वो हसने लगा, उसको हस्ता देख में भी थोड़ा सेहमा, थोड़ी देर शांत रहा फिर मैंने उसे पूछा की ए इश्क तू यूं क्यों हंस रहा है, ऐसी क्या बात है जो यूं बीच में रुक गया है। मुझे देख कर फिर इश्क़ बोला - अपनों में थोड़ा टेढ़ा दिखता हूं, दूसरों में थोड़ा सोना दिखता हूं, बाहें खोल कर अपनो तो सही, चंगुल में अपनी मैं तुम्हे फंसा भी लूंगा, अभी तुम मुस्करा लो, थोड़ा ही सही पर रुला मैं दूंगा, तुम वफ़ा करना, मैं तुम्हे बेवफ़ा भी दूंगा, तुम इश्क़ करना, मैं तुम्हे मतलब भी दूंगा, जो बची तेरी आज़ादी है, थोड़ी थोड़ी कर के तुझसे मैं लूंगा, तू मुस्कुरा ले, मैं तुझे रुला भी दूंगा। ये कह कर इश्क़ फिर मुस्कुराने लगा मुझे छू कर फिर इतराने लगा, मैं बात सुन कर उसकी थोड़ा सोच में पड़ गया। जो बोला ये, तो क्या अब मैं डर गया? बड़ी कश्मकश की मैंने इश्क़ से, थोड़ा सोचा, फिर मैंने भी इश्क़ से बोला - मैं हसुंगा और थोड़ा मुस्करा भी लूंगा, थोड़ा रो कर चुप करा भी लूंगा, कुछ जिल्लत भी मिलेगी राहों में मुझे, उनसे लड़ कर, थोड़ी ठोकर भी खा लूंगा, मरने की कोई मुझे ख्वाइश ना है, थोड़ा जी लूंगा, थोड़ा ज़िला भी दूंगा, रहमत जो होगी रब की, तुझे पा कर, तुझे हरा भी दूंगा, मेरी आज़ादी कहा कैद होगी, आसमानों से मैं, ये बतला भी दूंगा, तू बेवफा दे मुझे, मैं उसे भी अपना बना ही लूंगा। - वैवस्वत सिंह। #Kavyanjali
Alfisha Qureshi
मैं हूं कोंन ये बात में ना जानू क्यों में खुद को ना पहचानूं क्या कोई नहीं इस दुनिया में मेरा कब होगा मेरी ज़िन्दगी में सवेरा क्या करूं में कहा जाओ किस को अपना साथी बनाओ खुद को में समझ ना पाऊं सबकी बातों में यूं ही आजाओ खुद से खुद का रिश्ता बनाना चाहूं पर में तो खुद से खुद में ही उलझ जाऊं में हूं कोन ये बात में ना जानूं क्यों में खुद को ना पहचानूं ©Alfisha Qureshi #kavyanjaliAntaragni21
Piyush Kumar
हिमालय से फूटी नदियां नदियों से धाराएं धाराओं से विचार विचारों से कविताएं और कविताओं से मैं। सूर्य से फूटी किरणें किरणों से यात्राएं यात्राओं से अनूभूति अनूभूतियों से कविताएं और कविताओं से मैं। कलियों से फूटे फूल फूलों से छंद छंदों से उन्मुक्तता उन्मुक्तता से कविताएं और कविताओं से मैं। अंबर से फूटे बादल बादलों से वसंत वसंत से सौन्दर्य सौन्दर्य से कविताएं और कविताओं से मैं। संगीत से फूटे स्वर स्वरों से धुन धुनो से चैतन्य चैतन्य से कविताएं और कविताओं से मैं। आलिंगन से फूटे नयन नयनों से विश्वास विश्वास से मानव बोध मानव बोध से कविताएं और कविताओं से मैं। मसि से फूटे वर्ण वर्णों से प्रतिबिंब प्रतिबिंबो से आत्मीयता आत्मीयता से कविताएं और कविताओं से मैं। प्रकृति से फूटा श्वास श्वास से जीवन जीवन से काल काल से कविताएं और कविताओं से मैं। इन सभी प्राकृतिक इन्द्रियों से जन्मा नन्हा शिशु जिसके कंठ से फूटी ध्वनि उस ध्वनि से कविता और कविताओं से सृष्टि। --पियूष ©Piyush Kumar #kavyanjaliAntaragni21
Shreya Mishra
यादें दोपहर की तपिश में आंखों में चमक आना। या सर्द हवाओं में दिल का बहक जाना।। उस कप को देखकर याद आने वाली बातें। या फिर बेधड़क, बेमौसम की वो बरसातें।। गलियारे के शोर में छिपे वो झगड़े, वो वादे । कुछ यूं हर लम्हे में बसे हो तुम और तुम्हारी यादें।। यादें जिसमें बसा है सुनहरे ख्वाबों का वो शहर। उफ्फ! कैसे छोड़ूँ वहाँ जाना हर घड़ी, हर पहर।। लतीफों को सुनकर अब भी खिलखिलाती हूं । फिर ना जाने क्यों यकायक सहम सी जाती हूं।। खुशियों की चाह में वो बेवजह मुस्कुराना । सन्नाटे की गूंज में मौन रहकर चीखना-चिल्लाना।। आंखों की गागर से सूखे आंसू बहाना । मानो शुष्क धरा पर तपती रेत का आना।। सच बोलूं तो तुमसे नाराजगी बहुत है। तुम्हें खोने के दुख में न पर ताजगी बहुत है।। अब इन यादों के झरोखों में बेखौफ रोना है। वापस पाने की चाह में तुमको फिर से खोना है।। ©Shreya Mishra #KavyanjaliAntaragni21
Divya Saxena
खोती हुई मानवता कुछ रास्ते बंद से है, शायद ये लोगों का अहंकार है! मानवता की दहलीज पे !!! सच कहने का ये अभिमान है !! क्योंकि मानवता की ; आखरी सांस ही धर्म की पहचान है!! सच की तस्वीर बस थोड़ी सी बेदाग है; शायद लोगों के सर पे चकाचौंध का भ्रम मात्र है!! असुर रूपी ! दिखने वाले; मनुष्य की अब असुर होना ही पहचान है। कुछ रास्ते बंद से है, शायद लोगों का अहंकार है! मानवता की दहलीज पे !!! सच कहने का ये अभिमान है!! क्योंकि मानवता की ; आखरी सांस ही धर्म की पहचान है!! हार कर बैठ जाऊं मैं ; दुनियां से? ऐसा कहां मेरे होने का अर्थ है!!! लड़ जाऊं सच का साथ देने को!!! ऐसा मेरे होने का अभिप्राय है। धर्म कहो या कर्म कहो!!! सब का सार गीता का अर्थ है!!! कलयुग की ये काली छवि ; श्री कृष्ण से सुनी हर बात आज सच है!!! मानवता से कोसों दूर दिखता आज मुझे हर मानव का रूप है!!! हर मानव का रूप है......। ©Divya Saxena #KavyanjaliAntaragni21
Anwesha
- अन्वेषा राय B.el.ed Department Lady Shri Ram College for Women, Delhi University ©Anwesha #KavyanjaliAntaragni21
#KavyanjaliAntaragni21 #Poetry
read moreAnmol Singh
कागजों को घूरता चला मैं, इनमें ज़रा स्याही नहीं है। शख्शियत अपनी इसी पन्हा मिटा दूं, बस मेरे पास तेज़ाब नहीं है। मुर्दों की दौड़-ए-जन्नत लंबी नहीं है, खाल जो उधड़ी, पैगाम दो खुदा को यहां शमशान नहीं है। निज़ाम खुद का खुद से ज़ाहिर करो, क्या तुम्हारी नीयत नहीं है? फिर खुद से खुद की निगाहें मिलाओगे और कहोगे के आईना नहीं है। नफरत अपनी बयाँ तो करो, क्या तुम्हारे पास वक़्त नहीं है? फिर किसी दिन शिद्दत-ए-इश्क़ करोगे और कहोगे के दिल नहीं है। मुसलसल घुटन है यहाँ, आज़ादी नहीं है। पर आज़ाद तूफानों में परिंदे भी रो दें , "यहां कफ़स नहीं है"। __________________________ क़त्ल हुआ तो क्या, जिस्म अभी बचा है। मेरी एक ही जान ली, लाखों क्यों छोड़ गए? जिस्म-ए-चराग हुआ, कंकाल पर ज़िंदा है अस्थियाँ बहाई, तो ज़िक्र-ए-बाहर छोड़ गए। अनूठा रम्ज़ है ये, जो कागज़ी ज़मीन मेरी छीनी तबाह करना था? फिर आसमान क्यों छोड़ गए? कैद करने को, मोटी जंजीर से जकड़ा ये लोहा है जनाब, तुम शमशीर छोड़ गए। सुर भले लेलो, आवाज़ यहीं रहेगी ज़ेवर-ए-खुदा लूटे, मगर खुदा छोड़ गए। कलम मुझसे नोची, स्याही मेरे करीब है स्याही भी सुखादी? फिर लहू क्यों छोड़ गए? ©Anmol Singh #KavyanjaliAntaragni21