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Alfisha Qureshi
मैं हूं कोंन ये बात में ना जानू क्यों में खुद को ना पहचानूं क्या कोई नहीं इस दुनिया में मेरा कब होगा मेरी ज़िन्दगी में सवेरा क्या करूं में कहा जाओ किस को अपना साथी बनाओ खुद को में समझ ना पाऊं सबकी बातों में यूं ही आजाओ खुद से खुद का रिश्ता बनाना चाहूं पर में तो खुद से खुद में ही उलझ जाऊं में हूं कोन ये बात में ना जानूं क्यों में खुद को ना पहचानूं ©Alfisha Qureshi #kavyanjaliAntaragni21
Anmol Singh
कागजों को घूरता चला मैं, इनमें ज़रा स्याही नहीं है। शख्शियत अपनी इसी पन्हा मिटा दूं, बस मेरे पास तेज़ाब नहीं है। मुर्दों की दौड़-ए-जन्नत लंबी नहीं है, खाल जो उधड़ी, पैगाम दो खुदा को यहां शमशान नहीं है। निज़ाम खुद का खुद से ज़ाहिर करो, क्या तुम्हारी नीयत नहीं है? फिर खुद से खुद की निगाहें मिलाओगे और कहोगे के आईना नहीं है। नफरत अपनी बयाँ तो करो, क्या तुम्हारे पास वक़्त नहीं है? फिर किसी दिन शिद्दत-ए-इश्क़ करोगे और कहोगे के दिल नहीं है। मुसलसल घुटन है यहाँ, आज़ादी नहीं है। पर आज़ाद तूफानों में परिंदे भी रो दें , "यहां कफ़स नहीं है"। __________________________ क़त्ल हुआ तो क्या, जिस्म अभी बचा है। मेरी एक ही जान ली, लाखों क्यों छोड़ गए? जिस्म-ए-चराग हुआ, कंकाल पर ज़िंदा है अस्थियाँ बहाई, तो ज़िक्र-ए-बाहर छोड़ गए। अनूठा रम्ज़ है ये, जो कागज़ी ज़मीन मेरी छीनी तबाह करना था? फिर आसमान क्यों छोड़ गए? कैद करने को, मोटी जंजीर से जकड़ा ये लोहा है जनाब, तुम शमशीर छोड़ गए। सुर भले लेलो, आवाज़ यहीं रहेगी ज़ेवर-ए-खुदा लूटे, मगर खुदा छोड़ गए। कलम मुझसे नोची, स्याही मेरे करीब है स्याही भी सुखादी? फिर लहू क्यों छोड़ गए? ©Anmol Singh #KavyanjaliAntaragni21
Kamlesh Kumar
हुं मैं भी एक इंसा! ख़ुदा के इस जहां ने, हमें भी इंसाँ बख्शा है… क्या इंसाँ ने भी हमें, इंसाँ बख्शा है… रूप अनोखा नहीं, रहता हूं, मैं भी तो यहां… ख़्वाब अनोखे नहीं, हूं मैं भी तो, एक इंसाँ… आसमां को यूहीं मैं, देखता रहूं, खुद को मैं खुद में यूहीं, खोजता रहूं... मांगा नहीं था, मैंने ये जहां… रूप अनोखा नहीं, हूं मैं भी तो, एक इंसाँ अलग - अलग है, नाम मेरे पहचान मेरी है, अलग - अलग खो गया हूं, मैं तो यहां… ख्वाब अनोखे नहीं, रहता हूं, मैं भी तो यहां क्यों तू मुझे, अपनाता नहीं डरता है मुझसे क्यों, क्या मैं इंसाँ नहीं ठुकराया है मुझको अब जो, जाऊं कहां… रूप अनोखा नहीं, हूं मैं भी, एक इंसाँ अलग - अलग है, जिस्म मेरे रूह तो नहीं है, अलग अलग ढूंढूं, अपने जैसा कहां… ख्वाब अनोखे नहीं, है घर, मेरा भी यहां रूप अनोखा नहीं, रहता हूं, मैं भी तो यहां… ख़्वाब अनोखे नहीं, हूं मैं भी, एक इंसाँ… ©Kamlesh Kumar TTA - 3rd year #KavyanjaliAntaragni21
Samyak Jain
ख़ुद में और ख़ुद से: इससे पहले की मौत का जनाजा आ जाये, मुझे ख़ुद में और ख़ुद से बहुत कुछ बदलना होगा, होशियारी से हौसला रखकर, भविष्य से अपने झगड़ना होगा, उम्मीदें न रखकर जिंदगी से, अपनी हर हसरत को हकीकत में बदलना होगा, कहते है कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, इसीलिए अपने हर अफसोस को अवसर में बदलना होगा, बातें न कर-कर ज़ुबान से ज्यादा, ख़ुद ही अंधेरों से रोशनी की ओर चलना होगा, लड़खड़ा जाऊं अगर कहीं मैं, तो ख़ुद के बलबूते ही संभलने का जज़्बा रखना होगा, मेरे सीमित समय का मौहताज है ये वक्त, और इसके हिसाब से मुझे हर प्रयास करना होगा, यही रहेगी हर चीज़ इस दुनिया की, पर अब मुझे अपनी फुर्सत को जाने का फरमान करना होगा, हर फ़रिश्ते से माफ़ी और फरियाद मैं दिल से करता हूं, क्योंकि अब मुझे अपनी फितरत को बदलना होगा, और फिलहाल तो यूं है, कि इससे पहले की मौत का जनाजा आ जाये, मुझे ख़ुद में और ख़ुद से बहुत कुछ बदलना होगा।। आपका धन्यवाद नमस्कार ©Samyak Jain #KavyanjaliAntaragni21