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R.J...Laik Ahmed
मतलाब की दुनिया फरेबी बहुत है, आपस में हम दो हैं, पर किस्मत में सिर्फ एक है ...! ©Laik Ahmed कैसेट हल्का है .... #Cassette
NEERAJ SIINGH
पहले कैसेट में जब गाने भरवाना पड़ता था तब वो जाकर हमारे प्लेयर में बजता था , सांग्स की चाहत और प्रेम की चाहत , अतरंगी रंग भरा करती थी समा में ,और लता मंगेशकर से लेकर मोहम्मद रफी , और इंडियन पाप सांग्स से लेकर जगजीत सिंह , और बड़े बड़े उस्ताद लोगो के गाने नुसरत फतेह अली खान साब के गाने , देखो ये जो प्रेम ना गानों से लेकर लोक गीतों तक , लोकगीतों से लेकर गजलों तक , गजलों से लेकर कवालियों तक कहाँ कहाँ नही सफर किया , मस्त बात ये है कि आज भी मैं अपने जहन में ये याद रखकर आज लिख रहा हूँ , वो कैसेट के कवर में रंगीन दुनिया का अपना अलग ही क्रेज था , और फिर क्या प्ले , फारवर्ड , रिवाइंड के बटन पर थिरकती उंगलियां उफ्फ .. #neerajwrites कैसेट का जमाना , इश्क पुराना
LOL
समेट रहा हूँ कुछ किस्से जो इक लड़ी सी बन गए हैं ठीक वैसे ही जैसे कभी समेटता था किसी उलझी हुई कैसेट की रील को मैं अपने मनपसंद गानों के लिए.. #कैसेट #yqdidi #yqbaba #vintage #yq #yqdiary #yqlove
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
ये दौर जो था हमने भींतो जीया है... इसमेंबहुत यादों कोभीं संजोया है... रविवार के जो थीआती रंगोली,... काम की वजह न सुन पाते थे... सुन लियातो ये फिर नहीं आते थे.. भरे गाने इसमें पूरा हफ्ता सुन लिया.. मनोरंजन का एक यहीं तो साधन था.. क्योंकि पहले मोबाइल भी तो नहीं था.. दिन की शुरआत भजन से होती थी.. आरतीकेसंगकबीर दास जी के दोहे .. राजस्थानी फिल्मों की आवाजे भीं थी.. संत और देवों की गाथा भी सुन लिया.. काम से फ्री हुए फिर सुन लेते थे.. कभी कभी हम थिरक भीं लेते थे... शाम की आरती भीं इससे सुन लिया.. इस कैसेट की यादों को ऐसे कैद किया.. ये दौर जो था हमनें भी तो जिया हैं.. ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma वो कैसेट का ज़माना जो हमनें जीया है#कैसेट#Nojototeam Sudha Tripathi R. Kumar Ankita Tantuway Internet Jockey विवेक ... . . Dhyaan mira Pu
Anamika
ये उन दिनों की बात थी.. मेरे प्रिय नृत्य गीत पुराने गीत, पुरानी ओडियों कैसेट.. मेरा तीस साल पुराना गुजरा जमाना नहीं मेरे बस में उसे भूल जाना.😊 #ओडियो कैसेट #गुजरा_जमाना #संगीत की धुन में थिरकते थे पैर, आंगन में मास्टरजी की लगती थी क्लास.. ताथैया करते हुए ताल से ताल मिलाते पहन पांव
Raj k alfaz
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त