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Sudheesh Shukla
रात काफी हो चुकी है अब चिराग बुझा दीजिये एक हसीं ख्वाब राह देखता है आपकी बस पलकों के परदे गिरा दीजिये!!! शुभ रात्री !! गुड नाईट !!! ©sudheesh shukla शुभ रात्रि
Kuldeep Shrivastava
एक सताया हुआ मन,एक टूटा हुआ मन,जो सब कलह और उपद्रव से पलायन करना चाहता है,जिसने बाहरी संसार को नकार दिया है और अनुशासन और नियमबद्धता के द्वारा मंद और जड़ हो गया है--- ऐसा मन चाहे जब तक खोज में लगा रहे,यह जो कुछ पायेगा वह इसकी विकृतियों और इसके तोड़ मरोड़ का ही नतीजा होगा। ©Kuldeep Shrivastava शुभ रात्रि
01Chauhan1
उसकी आंखों में पढ़ा था मैंने शायद उसे कुछ कहा था मैंने उस कि मुस्कान देखा था मैंने चल अब सोते है उसे कहा था मैंने #शुभ रात्रि ©01Chauhan1 शुभ रात्रि
01Chauhan1
अकेलापन सिखा ही देता है कुछ करने को भूलना चाहा उसे कुछ लिखा दिया उस को आंखें बन्द हो रहा है अब सोने तो मुझ को फिर लिखूंगा कल तेरे बारे में सुबह जागने दो मुझ को ©01Chauhan1 शुभ रात्रि
Rishabh Saxena(INDIA)
#RajasthanDiwas @मेरे सुविचार शुभ रात्रि ©rishabh @शुभ रात्रि
sntosh patil
The problem is उदास 😢होने के लिए उम्र पड़ी है नजर उठाओ सामने जिदगी खड़ी है।.... अपनी हंसी 😊को होठो से न जाने देना ...क्युकी आपकी मुस्कुराहट☺️ के पीछे दुनिया पड़ी है.........😊 शुभ रात्रि😊 ©sntosh patil शुभ रात्रि
कुँवर_अजय
दो परिंदे एक पिजरे से रिहा हो गए है, हा हम दोनों अब जुदा हो गए है। एक ही काग़ज़ पर दोनों ने लिखी थी अपनी किस्मत, अब अलग अलग किताबो के सफा हो गए।। अब वो चांद हमारा बस नहीं रहा, उसमे अब बहुत सारे सितारे फिदा हो गए। जिनसे बिछड़ने क कभी सोचा न था, वो लोग भी अब अलविदा हो गए।। कुंवर_साहब शुभ रात्रि
सम्राट
तुम से जुदा हो के भी मैं तुम्हारी कोई बात नहीं भूला गुजर गये कई साल मगर वो पहली मुलाकात नहीं भूला यूं तो कह देता हूँ यारों से कि मुझे मोहब्बत नहीं मगर हकीकत ये है अब तक तुम्हारा साथ नहीं भूला हर रोज एक बार ही सही तुम्हें याद मैं कर लेता हूँ तुम्हारी बातों को सोच सोच अकेले ही मुस्कुरा लेता हूँ कोई देख लेता है अगर मुझे यूं हंसते हुए कभी तो कोई पुरानी बात है कह के मैं हंसी में उड़ा देता हूँ छिप छिप के तुम्हारी तस्वीर का दीदार कर लेता हूँ फिर आँख बंद कर कछ देर यादों में डूब जाता हूँ कुछ अलग ही एहसास होता है आज भी पुरानी यादों में डूब उन दिनो की याद में मैं आज को ही भूल जाता हूं । (VK SAMRAT) शुभ रात्रि
कुन्दन सिंह चौहान
वक्त का भी , कैसा चलन ये। स्वांस जैसे , चलते चलते, नासिका पर ही ठहरी। भूख जैसे , कूदती - उछलती, उदर में ही ठहरी। कंठ भी सूखा हुआ है, कितना बुझाएं? प्यास भी सागर सी गहरी। जागते नयन जैसे, नींद को सुला रहे हैं। पुकारते कितना उसे वे, मगर नींद भी बन गई है बहरी। ख्वाब तो भ्रम में हैं बस, हकीकत के खेत खलिहानों से थे, बन गए बस बनावटी से, लग रहें है अब वे भी शहरी। वक्त भी रेत सी, सरकती गई, खिसकती गई, कस के चाहे कितना ही ऐठों, मुठ्ठी में आखिर कब ये ठहरी? शुभ रात्रि।