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Mohan Sardarshahari
मेरा देश ,मेरी जान पहाड़, नदियां और मैदान जिसकी मिट्टी निपजे अन्न कई तरह के दलहन नकद फसल में तिलहन जिसमें बसता मेरा मन । पहाड़ों में जिसके है बागान सूखे मेवों पर मैं कुर्बान शीशम , साल और सांगवान इमारती लकड़ी की हैं खान केशर की खूशबू वाला देश जिससे बना है मेरा तन। कल कल नदियां कल कल झरने हमेशा रहे जिसकी शान सभ्यताओं की पुर पहचान शील, संस्कारित मेरा ज्ञान यही मेरी विश्व पहचान। प्रायद्वीपीय दक्षिण क्षेत्र हमेशा समुद्री व्यापार का केन्द्र मिशाईल परीक्षण और उत्पादन दिलाता तकनीकी में मान मेरे देश की खूबियों पर मैं सौ सौ बार जाऊं कुर्बान।। ©Mohan Sardarshahari पुर पहचान
Vilas Bhoir
अंधारलेल्या रात्रीचं सावट मनामध्ये घर करून बसलय, रिमझिम पडणाऱ्या पावसाने धो-धो पडण्याचं सोंग घेतलय! जीवनवाहिनीच्या प्रवासात अडकलेत बहुजन दिसतंय चोहीकडे पाणीच पाणी, अडकलेल्या प्रत्येकाची सुटका व्हावी हीच देवाकडे एक बोली! ओसांडुन वाहणारे नदी-नाले घुसलेत काहींच्या घरात, पुन्हा २६ जुलै सारखं होतय की काय हीच धडकी भरलीय उरात! ~ विलास भोईर ~ भयभीत पुर ..........
ranjit winner
चंद शब्दो मे कैसे भर लू तुम्हे शब्द कहाँ जो टोके तुम्हे क्षितिज सा है,तुम्हारा अंजन छवि से तू रंजन। वट के जड़ सा कभी तो कभी छुई-मुई सा मन अधरों में असीम से चुप्पी तो कभी जवानी में भी खिलखिलाता बचपन छवि से तू रंजन। जग-जीवन मे जब रिश्तों की बात आई निकल के "यारी" हमारी कुंदन सी चमक आई निस्वार्थ हमारा बन्धन छवि से तू रंजन। ...जीत ©ranjit winner #रंजन
sachu bihaniya
मेरे दिल के तुम अरमान हो पुनम की रात हो तो क्या मेरी जान हो दर्द बहुत होता है तुमसे दुर होकर पर तुम इस बात से अनजान हो रंजन
ranjit winner
चंद शब्दो मे कैसे भर लू तुम्हे शब्द कहाँ जो टोके तुम्हे क्षितिज सा है,तुम्हारा अंजन छवि से तू रंजन। वट के जड़ सा कभी तो कभी छुई-मुई सा मन अधरों में असीम से चुप्पी तो कभी जवानी में भी खिलखिलाता बचपन छवि से तू रंजन। जग-जीवन मे जब रिश्तों की बात आई निकल के "यारी" हमारी कुंदन सी चमक आई निस्वार्थ हमारा बन्धन छवि से तू रंजन। ©ranjit winner #रंजन