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Rakesh Kumar Sah
AJAY NAYAK
हम ताल ठोक कर दावा करते हैं कि दुनिया के सबसे बुद्धिमान प्राणी है! इसलिए आज भी हमारी दुनिया मे एक लड़के के चाह के लिए भ्रूण हत्याएं पढ़े लिखे आदमी के हाथों से होती हैं! –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #2023Recap #भ्रूणहत्या हम ताल ठोक कर दावा करते हैं कि दुनिया के सबसे बुद्धिमान प्राणी है! इसलिए आज भी हमारी दुनिया मे एक लड़के के चाह के
Dr. Bhagwan Sahay Meena
#विषय - विदाई #विधा - गीत (कन्याभ्रूण हत्या पर) मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। जहां आंगन तेरे खेलती, ले फूल सी अंगड़ाई। पापा देख देख मुस्काती, मैं सहती नहीं जुदाई। मैं अंगुली पकड़े चलती मां, जग तेरी करें बढ़ाई। तात मात से दुनिया कहती, बेटी ही घर महकाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। देख जगत की यह करतूतें, आंखें मेरी भर आई। गर्भ से जब किए निष्पादन, बोटी - बोटी घबराई। मखमल सी मेरी काया को,यूं खंड खंड कटवाई। चीखें मेरी निकली होगी, मां गर्भाशय मरवाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। कैसे होगा मंगल गायन, कहां बजेगी शहनाई। पाप किया बेटे के खातिर, बेटी जिसने कटवाई। जब बहू ढूंढते जगत फिरें,तब याद गर्भ की आई। दुनिया बेटे की चाहत में, मां बेटी को मरवाई। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #maaPapa कन्या भ्रूणहत्या पर गीत विदाई
Dr. Bhagwan Sahay Meena
शीर्षक--- विदाई विधा - गीत (कन्याभ्रूण हत्या पर) मापनी - लावणी छंद/ 16-14 पर यति मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। जहां आंगन तेरे खेलती, ले फूल सी अंगड़ाई। पापा देख देख मुस्काती, मैं सहती नहीं जुदाई। मैं अंगुली पकड़े चलती मां, जग तेरी करें बढ़ाई। तात मात से दुनिया कहती, बेटी ही घर महकाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। देख जगत की यह करतूतें, आंखें मेरी भर आई। गर्भ से जब किए निष्पादन, बोटी - बोटी घबराई। मखमल सी मेरी काया को,यूं खंड खंड कटवाई। चीखें मेरी निकली होगी, मां गर्भाशय मरवाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। कैसे होगा मंगल गायन, कहां बजेगी शहनाई। पाप किया बेटे के खातिर, बेटी जिसने कटवाई। जब बहू ढूंढते जगत फिरें,तब याद गर्भ की आई। दुनिया बेटे की चाहत में, मां बेटी को मरवाई। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #Wochaand विदाई गीत कन्या भ्रूणहत्या पर
Satpal Das
Paramjeet kaur Mehra
poonam atrey
😔 कन्या भ्रूण हत्या 😟 माँ मैं तेरा अंश ही थी,क्यूँ मुझ पर छुरा चला डाला । मेरे कोमल से तन को तूने खण्ड खण्ड था कर डाला। मैं भी जीना चाहती थी, इस प्यारी सुंदर दुनिया में। सड़ा हुआ मैं अंग नही थी,जो मुझको कूड़े में डाला।। ©poonam atrey #भ्रूणहत्या Navash2411 वंदना .... shashi kala mahto Banarasi.. sana naaz शीतल चौधरी(मेरे शब्द संकलन ) hardik Mahajan ANIL KUMAR,) R K Mish
Mili Saha
तेरे भीतर ही तो धड़क रही थी माँ, धड़कन मेरी, तेरी सांँसों के साथ ही तो चल रही थी सांँसे मेरी। सहम गई थी मांँ, देख कर वो तेज धार हथियार, नज़दीक आ रहा था जब वो, करने मुझ पर वार। अकेली थी, पुकार रही थी माँ, तुझको बार-बार, अगले ही पल मुझे काटकर, कर दिया तार-तार। नन्ही मैं परी तेरी, लहुलुहान तेरे भीतर तड़पकर, मूंद ली आँखें थक गई थी माँ ज़िंदगी से लड़कर। तू तो बड़ी ही बेसब्री से कर रही थी इंतजार मेरा, फिर क्यों जालिमों के हाथ कत्ल होने दिया मेरा। क्यों तूने खुद से अलग कर दिया अपना ही अंश, मैं भी तो जीना चाहती थी मांँ, बन कर तेरा वंश। तेरी ही परछाई थी मांँ मैं तुझ में ही पल रही थी, तेरी गोद भी नसीब न हुई क्या मैं इतनी बुरी थी। दादा दादी मम्मी पापा भईया रिश्ते कितने प्यारे, इन सबका दुलार पाना था माँ आना था तेरे द्वारे। चलना चाहती थी हर कदम तेरी उंगली थामकर, सोना चाहती थी तेरी गोद में मीठी लोरी सुनकर। क्यों मुझसे छीन लिया गया आख़िर ये हक मेरा, जग में आने से पहले ही, क्यों छीन लिया सवेरा। जानती हूंँ माँ कि तुझको किया गया था मजबूर, बेटी थी मैं बेटा नहीं क्या यही था माँ मेरा कसूर। थोड़ी हिम्मत और कर, जो लड़ जाती संसार से, तो आज मेरी हत्या न होती, तेजधार हथियार से। ©Mili Saha कन्या भ्रूण हत्या #nojotohindi #nojotopoetry #poem #sahamili #Trending #बेटियां Bhardwaj Only Budana Kirti Pandey poonam atrey Sunit
Vedantika
(मातृत्व- एक तनाव भी) स्त्री इस संसार में एक ऐसी प्राणी है जिसे अगर इस संसार की गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण अंग कहा जाए तो गलत नहीं होगा। मानव जीवन का आरंभ एक स्त्री के गर्भ में उसके जन्म से नौ महीने पहले ही हो जाता है। एक शिशु जब भ्रूणावस्था में होता है तभी से एक माँ अपने बच्चे का पालन करना शुरू कर देती हैं। वह उसके जीवन को लेकर कितनी ही चिंता करने लगती हैं। उसके जीवन की छोटी-छोटी बातों की कल्पना करते हुए, उसके भविष्य को सुरक्षित करने की योजनाएं बनाते हुए, उसे अपने गर्भ में रखकर तमाम तरह की शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों से जूझते हुए उसके यह नौ महीने बड़े ही बेचैनी में गुजर जाते हैं। स्त्री इस संसार में एक ऐसी प्राणी है जिसे अगर इस संसार की गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण अंग कहा जाए तो गलत नहीं होगा। मानव जीवन का आरंभ एक स्त्र