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Mohit Mudita Dwivedi
Devesh Dixit
धन-दौलत (दोहे) धन-दौलत ये है बड़ी, इसका ही सम्मान। जो इससे पीछे रहा, कम कीमत ये जान।। मानवता बस नाम की, धन-दौलत से मान। अहंकार में डूब कर, बनता वह अनजान।। जूझ रहा इंसान है, धन-दौलत को आज। इसको पाने के लिए, करता कुछ भी काज।। धन-दौलत ही चाहिए, पाने को सम्मान। इसके बिन कुछ है नहीं, खोते सब अरमान।। अपराधी घूमें फिरें, करने को वह काज। धन-दौलत को लूटते, समझें खुद सरताज।। धन-दौलत की चाह में, भटक रहा इंसान। उसे झपटने के लिए, भूल रहा ईमान।। ......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #धन_दौलत #दोहे #nojotohindi धन-दौलत धन-दौलत ये है बड़ी, इसका ही सम्मान। जो इससे पीछे रहा, कम कीमत ये जान।। मानवता बस नाम की, धन-दौलत से मा
Devesh Dixit
दौर (दोहे) कलयुग के इस दौर में, खूब लूटते लोग। मदिरा भी सेवन करें, और पालते रोग।। कैसा ये अब दौर है, टूट गई जो आस। लाचारी में जी रहे, नहीं रहा विश्वास।। डरा रहे सब को यही, लेकर वे हथियार। छीना-झपटी भी करें, भूल सभी संस्कार।। दहशत भी फैला रहे, खूब कमाते पाप। खोल पिटारा जुर्म का, छोड़ रहे हैं छाप।। तरह-तरह के जुर्म हैं, दिखा रहे शैतान। किस-किस की गणना करें, रहा नहीं अनुमान।। इन्हीं खबर से है भरा, पूरा ही अखबार। पनप रहा ये दौर अब, लेकर अत्याचार।। घबराया इंसान है, देखा जो शैतान। जीवन संकट में पड़ा, कृपा करो भगवान।। .......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #दौर #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi दौर (दोहे) कलयुग के इस दौर में, खूब लूटते लोग। मदिरा भी सेवन करें, और पालते रोग।। कैसा ये अब
Vivek
खाना कहां गया ©Vivek पम्मी जी पिकनिक पर गए अकेले सोचा क्योंकि वो अकेले ही रहते थे आज उन्हें समय मिला तो खाना पैक करके निकल चले कार मे एक घंटे मे पहुंच गए जाते
kanchan sharma
HP
जीवन-क्रम में थोड़ी भूल हुई कि रोग-शोक, बीमारी और अकाल-मृत्यु ने झपट्टा मारा। झपट्टा
Mo. Asiph
कमरे की लाइट बन्द कर के फ़ोन चलाओ तो.... ये कीड़े मकोड़े मुँह पर ऐसे झपट्टा मारते हैं....😕 . . . . जैसे इन्ही के पतिदेव से चैट कर रही हूं...😜 😜😜😂😂😂 Good night कमरे की लाइट बन्द कर के फ़ोन चलाओ तो.... ये कीड़े मकोड़े मुँह पर ऐसे झपट्टा मारते हैं....😕 . .
Prerna Singh
आर्ट ही तो होता हैं सैकरीफाइस । हम अपने गम को मुस्कान में तब्दील कर देते हैं। और साने वाले ककको लगता हैं हम हृदयविहिन हैं..... ©Prerna Singh गलत नहीं #असभ्य व्यवहार हैं। अपना जल्दी जल्दी खाकर दुसरे के थाली से #छीन #झपट कर पीठ घुमा कर हंस हंस कर खाना...और कहना #सैक्रीफाइस भी कभी कभ
vishnu prabhakar singh
जब गुलाब भभरकर बिखर जाता है मन पलाश हो जाता है मैं नील गगन का स्वछन्द बाज होना चाहता हूँ (कृपया,शेष अनुशीर्षक में पढ़ें) चकाचौंध भरी ज़िन्दगी के पीछे गुमनामी की कुछ बेहद दर्दभरी सच्चाइयांँ छुपी रहती हैं उम्मीद की एक किरण मन में संजोए....... जब गुलाब भभरकर बिखर