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Ravendra
Ravendra
Ravendra
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Rabindra Kumar Ram
*** ग़ज़ल *** *** नुमाइश *** " क्यों ना तेरा तलबगार हो जाऊं कहीं मैं , मैं मुख्तलिफ मुहब्बत हूं इस दस्तूर से , क्यों ना तेरा बार बार मुसलसल हो जाऊं मैं , खुद को तेरी आदतों में कितना मशग़ूल किया जाये , तुझमें में मसरुफ़ कहीं जाऊं मैं , बात जो भी फिर कहा तक जार बेजार , तेरे ज़िक्र की नुमाइश की पेशकश की जाये , लो ज़रा सी इबादत कर लूं भी मैं , इश्क़ की बात हैं मुहब्बत कर लूं मैं , तेरे ख्यालों की नुमाइश क्या ना करता मैं , ज़र्फ़ तेरी जुस्तजू तेरी आरज़ू तेरी , फिर इस हिज़्र में फिर किस की ख़्वाहिश करता मैं , उल्फते-ए-हयात एहसासों को अब जिना आ रहा मुझे , जो तेरे ख्यालों के तसव्वुर से रफ़ाक़त जो कर रहा हूं मै . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** नुमाइश *** " क्यों ना तेरा तलबगार हो जाऊं कहीं मैं , मैं मुख्तलिफ मुहब्बत हूं इस दस्तूर से , क्यों ना तेरा बार बार मु
Yashpal singh gusain badal'
ज़िंदगी हसरतों को वक्त की आँधी निगल गई । इक खुशी की आश में; जिन्दगी निकल गई। लाखों जुगत किए उम्र-ए-दराज की । दम साध के रक्खा और सांसें निकल गई । सौंपे थे जिसको हमने जिन्दगी के फैसले । उसके ही हाथ कत्ल जिन्दगी निकल गई । आब-ए-हयात पी के भी न बच सका यहाँ । माटी का बना था सो माटी में मिल गई । नाज है किस बात का किसका गुरूर है । अच्छे-अच्छों की यहाँ हवा निकल गई । थामे थे जिसको भींच के दिल के करीब से । हाथों से वो प्यार की डोरी फिसल गई । "बादल" गलत उठे थे कदम राह-ए-शौक में, फिर सँभालते-संभालते जिन्दगी निकल गई।। ©Yashpal singh gusain badal' #retro ज़िंदगी हसरतों को वक्त की आँधी निगल गई । इक खुशी की आश में; जिन्दगी निकल गई। लाखों जुगत किए उम्र-ए-दराज की । दम साध के र
Pintu
औरत ऐसा मर्द ढूढ़ती हैं, जीश्के आगे वालl भविष्य अच्छा हों, और मर्द ऐसी औरत ढूढ़ता, जिसकी पीछे वाला भविष्य अच्छा हों ©Pintu #oddone औरत और मर्द की सचा ई
Krishna Rai
Ravendra
Deep Thapliyal
जिंदगी इक ज़रा सी दरकार है, जितनी आसान है उतनी दुस्वार है!! 🥺🥺 ©Deep Thapliyal दिखा तो देती है बेहतर हयात के सपने ख़राब हो के भी ये ज़िंदगी ख़राब नहीं...!!