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Ankit Singh
एक मनुष्य भोजन के लिए जानवरों को मारे बिना जीवित और स्वस्थ रह सकता है, इसलिए, यदि वह मांस खाता है, तो वह केवल अपनी भूख के लिए पशु जीवन लेने में भाग लेता है। ©Ankit Singh एक मनुष्य भोजन के लिए जानवरों को मारे बिना जीवित और स्वस्थ रह सकता है, इसलिए, यदि वह मांस खाता है, तो वह केवल अपनी भूख के लिए पशु जीवन लेने
Sethi Ji
💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝 💝 ज़िन्दगी की सच्चाई , ज़िन्दगी की अच्छाई 💝 💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝 ज़िन्दगी में कोई बुरा , कोई अच्छा होता हैं यहाँ हर कोई अपने हुनर के लिए सच्चा होता हैं फ़िर चले हैं मोहब्बत करने , तुड़वा कर अपना दिल क्या करें दोस्तों , यह दिल आखिर बच्चा होता हैं कभी मत रूठना अपने माँ बाप से कसम हैं ख़ुदा की उनका मन ऊपर से सख्त , अंदर से बिल्कुल कच्चा होता हैं 💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 ©Sethi Ji ♥️🌟 प्यार का दीदार 🌟♥️ ♥️🌟 प्यार का संसार 🌟♥️ हर इश्क़ का इज़हार नहीं होता मेहबूब का हर दीदार प्यार नहीं होता ।। जो खाता हैं एक बार दगा अपन
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
दर्द उगते रहे मैं गुनगुनाता रहा चोट खाकर भी,मुस्कुराता रहा हादसों की कितनी सूरत लिए वक्त आता रहा और'जाता रहा देवता मानने की, भूल हो गई पत्थरों पर सिर, टकराता रहा बस्ती के अंधेरे से घबरा गया रात भर उम्मीदें, जलाता रहा खुरच दी लकीरें हथेलियों से नसीब इस तरह मिटाता रहा मुर्दा एहसास की वो कहानी बेवज़ह सभीको सुनाता रहा तमाम उम्र गफ़लत में गुजरी हकीकत की मार खाता रहा ©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS #दर्द #उगते #रहे #मैं #गुनगुनाता रहा चोट खाकर भी,मुस्कुराता रहा हादसों की कितनी सूरत लिए वक्त आता रहा और'जाता रहा देवता मानने की, भूल हो
BS NEGI
उम्र भी कहाँ, रूकती है भला। अपने अंदाज में चली जा रही है। एक एक पल का हिसाब है,। जिंदगी के खाते में। ©BS NEGI खाता जिंदगी का
AJAY NAYAK
अब मंजिल दूर नही समंदर में भी कूद जाता हूं लहरों से लड़ना सिख लिया हूं किंतु परंतु के बीच नही फसता हूं तुरंत निर्णय लेना सिख लिया हूं खड़ा होता हूं और दौड़ पड़ता हूं अब गिरकर उठना सिख लिया हूं अंधेरा भी मुझसे खौफ खाता हैं जूगनुओं से दोस्ती करना सिख लिया हूं सूर्य चंद्रमा और तारों से अपनी यारी है सबकी इज्जत करना सिख जो गया हूं अब मंजिल से दूर नही हूं क़िस्मत से लड़ना सिख लिया हूं –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #lightpole अब मंजिल दूर नही समंदर में भी कूद जाता हूं लहरों से लड़ना सिख लिया हूं किंतु परंतु के बीच नही फसता हूं तुरंत निर्णय लेना सिख
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :- पहले जैसे अब नहीं , होते मयके मान । पर लड़की तो आज भी , इन सबसे अंजान ।। इन सबसे अंजान , खुशी से मयके रहती । भाई-भाभी मातु , उसी के घर को डसती ।। सौहर है चुपचाप , बीवियाँ होती दहले । इसीलिए तो आज ,बीवियाँ बोले पहले ।। बिटिया का घर द्वार वो , पाता नहीं उबार । देती रहती मातु जो , पग-पग नये विचार ।। पग-पग नये विचार , कलह भर घर में होता । मिलता नहीं सकून , बैठकर सौहर रोता ।। मिले नही उपचार , दर्द की खाता टिकिया । खुश होते वो लोग , वहम में रखकर बिटिया ।। पहले कसकर बाँध ले , तू अपने हर छोर । छूट न पाये फिर कभी , जीवन की ये डोर ।। जीवन की ये डोर , हाथ में अपने लेकर । देना सुख की छाँव , यहाँ जो भी हो बेघर ।। लेकिन रख लो याद , नही बनना तुम नहले । ये जग भोलेनाथ , तभी सौपेंगे पहले ।। नहले पे दहला बनो , तभी बनेगी बात । मानेगा संसार भी , तभी तुम्हें दिन रात ।। तभी तुम्हें दिन रात , प्रेम सबसे तुम भरना । बदी करे जब लोग , अँगुलियाँ टेढ़ी करना । बनकर भोले नाथ , करो फिर तांडव पहले ।। फिर मिले समाधान , बनोगे जब तुम दहले ।। सरसों के वह फूल सी , नाजुक लगती आज । करना चाहे हम सदा , दिल में उसके राज ।। दिल में उसके राज , यही हम अभी छुपाएँ । सोच रहा हूँ आज , उसे हम क्यों न बताएँ ।। मन में इतनी चाह , छुपाए कैसे बरसों । आ जाए जो पास , लगे वह नाजुक सरसों ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- पहले जैसे अब नहीं , होते मयके मान । पर लड़की तो आज भी , इन सबसे अंजान ।। इन सबसे अंजान , खुशी से मयके रहती ।
Singer Chandradeep Lal Yadav
Batish Nadeem
हाथ आया है निज़ाम जो एक मुद्दत के बाद ओसन खता है इनके ये बौखलाए हुए है तल्खी माजी की इन्हें चेन से जीने नहीं देती जख्म ताज़ा हे अभी कर्ब से बिलबिलाए होवे है।। ©Batish Nadeem #खाता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
sunset nature गीत :- छोड़ो अब ये रीति पुराना , रोता बच्चा दूध पिलाना । एक मातु की व्यथित कहानी , पर सिस्टम का नया बहाना ।। छोड़ो अब ये रीति पुराना .... जब तक हम संतोष करेंगे , घुट-घुट के हम सुनो जियेंगे । आओ मिलकर बदले सिस्टम , ऐसे न हम आगे बढ़ेंगे ।। ये न दिए अधिकार हमारा , इन सबने है मन में ठाना । छोड़ो अब ये रीति पुराना ... नहीं गुजारा होता सबका, मीलो और कारखानों से । इतना वेतन कभी न आता , उन ऊँचे बने मकानों से ।। जला भुनाकर हमको तोड़ें , रुपया घर में बने ठिकाना । छोड़ो अब ये रीति पुराना ... वही हाल गाँवों में देखा , हमने तो आज किसानों का । खाद बीज तो मँहगे-मँहगे , मिलता न दाम आनाजों का ।। रोता फाँसी खाता रहता , बोलो ये है नया जमाना । छोड़ो अब ये रीति पुराना .... ऊपर से नफ़रत फैलाना , जाति धर्म पर हमें लड़ाना । क्या विकास है क्या विनाश है , क्या ये जनता ने पहचाना ।। आज सियासत की बिसात पर , बनती जनता सुनो निशाना । छोड़ो अब ये रीति पुराना .... छोड़ो अब ये रीति पुराना , रोता बच्चा दूध पिलाना । एक मातु की व्यथित कहानी , पर सिस्टम का नया बहाना ।। ३१/०१ २०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR छोड़ो अब ये रीति पुराना , रोता बच्चा दूध पिलाना । एक मातु की व्यथित कहानी , पर सिस्टम का नया बहाना ।। छोड़ो अब ये रीति पुराना .... जब तक ह
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