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मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *

#दर्द #उगते #रहे #मैं #गुनगुनाता रहा चोट खाकर भी,मुस्कुराता रहा हादसों की कितनी सूरत लिए वक्त आता रहा और'जाता रहा देवता मानने की, भूल हो गई पत्थरों पर सिर, टकराता रहा

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दर्द उगते रहे मैं गुनगुनाता रहा
चोट खाकर भी,मुस्कुराता रहा 

हादसों की कितनी सूरत लिए
वक्त आता रहा और'जाता रहा 

देवता मानने की, भूल हो गई
पत्थरों पर सिर, टकराता रहा 

बस्ती के अंधेरे से घबरा गया
रात भर उम्मीदें, जलाता रहा 

खुरच दी लकीरें हथेलियों से
नसीब इस तरह मिटाता रहा 

मुर्दा एहसास की वो कहानी
बेवज़ह सभीको सुनाता रहा 

तमाम उम्र गफ़लत में गुजरी
हकीकत की मार खाता रहा

©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS #दर्द #उगते #रहे #मैं #गुनगुनाता रहा
चोट खाकर भी,मुस्कुराता रहा 

हादसों की कितनी सूरत लिए
वक्त आता रहा और'जाता रहा 

देवता मानने की, भूल हो गई
पत्थरों पर सिर, टकराता रहा

Ramkishor Azad

Rabindra Kumar Ram

" मेरे शामों को तुम अपनी सहर दे जा , हसरतें ख्याल जो हैं उसे तु अपनी तसबूर दे जा , रहे हैं जिस अंदाज में उसे अपनी हकीकत दे जा , मिल जरा तु कहीं तन्हाई से अपनी कुछ परछाईं दे जा , जो मैं गुनगुनाता उसे तेरे खातिर कहीं मैं गा सकु , मिल जरा तु मुझसे कहीं फिर कहीं जाकर खुद से मिल सकु . " --- रबिन्द्र राम

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" मेरे शामों को तुम अपनी सहर दे जा ,
हसरतें ख्याल जो हैं उसे तु अपनी तसबूर दे जा ,
रहे हैं जिस अंदाज में उसे अपनी हकीकत दे जा ,
मिल जरा तु कहीं तन्हाई से अपनी कुछ परछाईं दे जा ,
जो मैं गुनगुनाता उसे तेरे खातिर कहीं मैं गा सकु ,
मिल जरा तु मुझसे कहीं फिर कहीं जाकर खुद से मिल सकु . " 

                                    --- रबिन्द्र राम " मेरे शामों को तुम अपनी सहर दे जा ,
हसरतें ख्याल जो हैं उसे तु अपनी तसबूर दे जा ,
रहे हैं जिस अंदाज में उसे अपनी हकीकत दे जा ,
मिल जरा तु कहीं तन्हाई से अपनी कुछ परछाईं दे जा ,
जो मैं गुनगुनाता उसे तेरे खातिर कहीं मैं गा सकु ,
मिल जरा तु मुझसे कहीं फिर कहीं जाकर खुद से मिल सकु . " 

                                    --- रबिन्द्र राम

Rajat Kumar

जिंदगी में वो संगीत की तरह ही तो थी। बस फर्क इतना था कि पहले उसके नाम को होंठों से गुनगुनाता था अब उसकी यादों को आँखों से गुनगुनाता हूँ। #NojotoHindi #RajatKumar
#HamariAdhuriKahani #CTL #MeriKahani

manav raj(मानव)

नगमा ए दिल मनीषपाल सिंह(मानव)

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मैं अक़्सर यूँ ही गुनगुनाता हूँ यारों
अपने नग़मे खुदी को सुनाता हु यारोँ
अपनी हर नज़्म को दिल की दराजों में,
बढे करीने से सजाकर अक़्सर   
होले से परदों
को गिराता हु यारो।
हाँ में अक़्सर यूँ ही गुनगुनाता हु यारों। नगमा ए दिल
मनीषपाल सिंह(मानव)

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