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kumaarkikalamse
कुछ कहता भी नही मैं, और वो सब सुन भी लेती है, कौन कहता है कि किस्मत गूँगी, बहरी होती है!! #kumaarsthought #yqdidi #गूँगी #बहरी #किस्मत
Sourav Jangir
#OpenPoetry दिन अंधे और रात बहरी होने लगी है शायद ये दोस्ती अब ओर गहरी होने लगी है बेज़ान से चेहरे में भी जान रहने लगी है हर दर्द के पीछे भी मुस्कान रहने लगी है अकेलेपन की निशानियां अब दूर होने लगी है ज़िन्दगी अब दोस्ती के करीब होने लगी है लाख शिकायतों के बीच जिम्मेदारी रहने लगी है धीरे धीरे ही सही,दोस्ती असरदार होने लगी है ज़िद तो बस एक साथ रहने की लगी है वरना मुश्किले तो आज भी पीछे लगी हैं बिछुड़ कर जाने की ये बात सीधी दिल पे लगी है दोस्त,अब ये दोस्ती नही,ज़िन्दगी लगने लगी है बिन तेरे ये ज़िन्दगी उदास रहने लगी है बस तुझे पी जाने की प्यास गहरी लगी है दिन अंधे और रात बहरी होने लगी है शायद ये दोस्ती अब और गहरी होने लगी है #OpenPoetry
Abhishek Rajhans
सुन री रे सरकार लोकतंत्र का कर दिए हो व्यापार लगेगी हाय गिरेगी तू आँसुओं का एक एक कतरा मिल कर अब समंदर बन रहा है देख तुम्हारे पतन के लिए अब कोने-कोने से चाणक्य सड़क पर चल पड़ा है बेटियाँ, बहने अब सजने की जगह लड़ने निकल पड़ी है क्या तुम भूल गए हो तुम्हारा अस्तित्व हमसे है फिर भी तुमने हमे ही ललकारा है लाठियों के प्रहार ने जो दर्द दिया है उसका असर अब तुम्हारे अस्तित्व पर पड़ने वाला है सुन री रे गूंगी,बहरी सरकार तुमने घायल नहीं किया है हमारे बीस-पच्चीस भाई बहनों को तुमने बूढ़ी होती उस माँ की उम्मीदों को चोट पहुंचाया है जो खुद अनपढ़ रहकर अपने बेटे को शिक्षक बनाना चाहती थी तुमने खेतों में हल चलाते उस बाप के पसीने को धिक्कारा है तुमने उस कलम को तोड़ना चाहा है जो देश के नौनिहाल का भविष्य लिखना चाहता था अरे! काँपे नही तुम्हारे हाथ महिला सुरक्षा का दम्भ भरने वाले दंभी तुमने उन पर आखिर कैसे लाठी चलाया है आखिर तुम्हारे सुशासन बाबू का नकाब अब उतर ही आया है क्या तुम अपनी शक्ल देख सको ऐसा कोई आईना राजपथ पर लटकाया है धिक्कार है तुम्हे ओ री गूंगी, बहरी सरकार अगर नहीं करे पाये तुम अपेक्षित सुधार तो तुम्हारा जाना तय है इस बार—-अभिषेक राजहंस सुन री रे सरकार #Nojoto #NojotoHindi
आशीष
मेरे चाहत की अफवाहें,हाँ फैली थीं हाँ फैली हैं, ज़माने की दिवारें, कब से बहरी थीं हाँ बहरी हैं, हक़ीक़त है असल मे क्या,सुनो अब जान ही लो तुम मैं जिसका था,मैं उसका हूं,जो मेरी थी,हाँ मेरी है. मेरे चाहत की अफवाहें,हाँ फैली थीं हाँ फैली हैं, ज़माने की दिवारें, कब से बहरी थीं हाँ बहरी हैं, हक़ीक़त है असल मे क्या,सुनो अब जान ही लो तुम मैं जिसका था,मैं उसका हूं,जो मेरी थी,हाँ मेरी है.
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