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Best धनी Shayari, Status, Quotes, Stories

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कवि मनोज कुमार मंजू

व्रत करता है नित हर दरिद्र, वरदान धनी ले जाता है। 
ओढ़े बैठे सब खाल यहाँ, रावण साधू बन जाता है।।

©कवि मनोज कुमार मंजू #व्रत 
#दरिद्र 
#वरदान 
#धनी 
#रावण 
#साधु 
#मनोज_कुमार_मंजू 
#मँजू

Pradyumn awsthi

#धनी

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zakikhanactor

#धनी हो सब धन तोहरे ना बताएं

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zakikhanactor

#धनी हो सब धन तोहरे ना बाटे

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Anukaran

एक ख्याल/वयंग


सभी दिल और जुबान से धनी नही हुआ करते,
आज तो सिर्फ लोग अपने मतलब से अमीर हुआ करते हैं।
अगर कोई दिल का अमीर और जुबान का धनी मिले तो संभाल कर रखना,
एक वही हैं जो हर पल, हर वक़्त सभी परिस्थितियों में साथ निभाएंगे ।

                                      अनुकरण #सभीदिल
#धनी
#अमीर
#अनुकरण
#कविता
#खयाल
#सच्चाई

Sagar Oza

जोगवा

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उभ्या दारी मागत फिरि तो जोगवा 
देवदासी का गावदासी मागत फिरि ती जोगवा 
उभा हा आयुष्य जोगवा 

नीवंतात मनाच्या आकांतात एक जोगवा 
नाव ना ध्यान त्याचा फ़क्त धनी त्याचा गाव तोचि जोगवा 
उभा आयुष्य झाला जोगवा 

दारोदारी मागत फिरे , दारोदारी लाज धरे कळ ना मनाची दिसे अश्रु भी ना कोनी पुसे येणारा येताना जाणारा जाताना वासना डोळ्यात दिसे तरी मन है सुखाच्या ओघाट घर बघत फिरे हा जोगवा 

नाव देवच्या करी इच्छा स्वताच्या पूर्ण करी हा मानवा जिचे हाथ धरि ती जोगवी कोना कड़े जाऊनि रडी स्वतःच्या अभ्रु वाचवत कोठे कोठे फिरि जाऊनि देउल जोगवा ती धरि 

कोन जाने जोगवा कुठून कोन बनी उभा आयुष्य हा जोगवा मागत फिरि मनी आक्रांत उभा होउनि हाथ लाचारी पटकरी देव ज्याले जग जानी तो भी दगड बनी उभा बघा तो शिलावरी तो भी झाला आता जोगवाचा धनी जोगवा

Kiran Bala

धनी वो नहीं शानो शौकत में नशे में व्यर्थ धन को उड़ाए

स्वस्थ जीवन जिसे मिल जाए जग में धनी  वही कहलाए #nojoto #nojotohindi #Worldhealthday #NojotoTopicalHindiQuoteStatic #2liner  #poetry #tst #kiranbala

RAAJ

जिन्हें मुगालता है स्वयं के 'धनी' होने का.. #nojotohindi #Quotes

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धनी

आँसुओं को मुस्कान दे दो
हो 'धनी' तो 'दिल' जोड़ने का सामान दे दो।

✍-राजकुमारी जिन्हें मुगालता है स्वयं के 'धनी' होने का..
#Nojoto
#nojotohindi
#quotes

KUNDAN KUNJ

##इज्जत से बढ़कर कोई #धनी है।

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मैं मोहताज नहीं उन किरदारों का
जो  सिर को मेरे झुका दे ।।
उस धन दौलत का क्या करूँगा?? 
जो  पंगु  मुझे  बना  दे ।। 
 ##इज्जत से बढ़कर कोई #धनी है।

Parul Sharma

imrohiinegi क्यों जरूरत पड़ रही है हिन्दीं दिवस मनाने कि ये जताने कि आज हिन्दी दिवस है आज हिन्दी का दिन है क्या हिन्दी का दर्जा कम हो गया है या हमने ये स्वीकार कर लिया है कि हिन्दी उन ऊँचाईयों पर नहीं है जहाँ इसे होना चाहिये था अपने देश में ही हिन्दी अपने अस्तित्व के लिये लड़ रही है हम कोई न कोई बहाना बनाकर अंग्रजी को गले लगा लते है और हिन्दी से हाथ छिटक देते है और अपनी ही भाषा को पराया कर देते है हम अंग्रेजों से तो आजाद हो गये पर अंग्रेजी के गुलाम हो गये और बही बने रहना चाहते है और होना भी चाह

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क्यों जरूरत पड़ रही है हिन्दीं दिवस मनाने कि ये जताने क कि आज हिन्दी दिवस है आज हिन्दी का दिन है क्या हिन्दी का दर्जा कम हो गया है या हमने ये स्वीकार कर ल्या है कि हिन्दी उन ऊँचाईयों पर नहीं है जहाँ  इसे होना चाहिये था अपने देश में ही हिन्दी अपने अस्तित्व के लिये लड़ रही है हम कोई न कोई बहाना बनाकर अंग्रजी को गले लगालते है और हिन्दी से हाथ छिटक देते है और अपनी ही भाषा को पराया कर देते है हम अंग्रेजों से तो आजाद हो गये पर अंग्रेजी के गुलाम हो गये और बही बने रहना चाहते है और होना भी चाहते है। और इस मानसिक गुलामी में न जान कब अपनी भाषा का अपनापन खो बैठेपता ही नहीं चला। पर ऐसा क्यों हुआ ऐसा कब से हुआ ये इसकी शुरूआत गुलाम भारत में अंग्रेजी शाशकों ने की गुलाम भारत में अंग्रेजी माध्यम क स्कूल खुलबाये बड़े और पैसे बाले लोगों से मित्रता की और जो गद्दार थे या उनके चाटुकार थे उनको धन से माला माल कर दीया कुछ लोग उन्हे शासक मान तो कुछ लोग चापलूसी में तो कुछ लोग उनके बिछाये जाल को अहसान मान कर उनकी बेषभूषा, चालढाल भाषा आदत का अनुसरण करने लगे उन्हें इन्हीं  धनी और उच्च पद पर आसीन लोगों जो देखा देखी और लोग इनकी नकल करने लगे जब तक अंग्रेज भारत छोड़ते तब तक अंग्रेजी ने पैर जामा लिये थे । भारत आजाद हुआ अब यह सोने की चिड़ीया भी न रहा और धनी लोग तो पहले से ही आधे अंग्रेज हो चुके थे और यहाँ तो भेड़ चाल खूब चलती है तो और इस तरह हिन्दी अपनी व्यापकता खोती गयी और अंग्रेजी सैंध जमाती गयी    
               पारुल शर्मा imrohiinegi 
क्यों जरूरत पड़ रही है हिन्दीं दिवस मनाने कि ये जताने कि आज हिन्दी दिवस है आज हिन्दी का दिन है क्या हिन्दी का दर्जा कम हो गया है या हमने ये स्वीकार कर लिया है कि हिन्दी उन ऊँचाईयों पर नहीं है जहाँ इसे होना चाहिये था अपने देश में ही हिन्दी अपने अस्तित्व के लिये लड़ रही है हम कोई न कोई बहाना बनाकर अंग्रजी को गले लगा लते है और हिन्दी से हाथ छिटक देते है और अपनी ही भाषा को पराया कर देते है हम अंग्रेजों से तो आजाद हो गये पर अंग्रेजी के गुलाम हो गये और बही बने रहना चाहते है और होना भी चाह
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